लघुपराशरी -9

अष्ठमेश – Dr.R.B.Dhawan (Guruji),Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience. भाग्यव्ययाधिपत्येन रन्ध्रेशो न शुभप्रदः।स एव शुभसन्धाता लग्नाधीशोेऽपि चेत्स्वयम् ।।९।। श्लोक नंबर 9 की व्याख्या करते हुए आचार्य वराहमिहिर बताते हैं- 1. अष्टम स्थान का स्वभाव कैसा होता है? अष्टमेश भाग्य का व्ययाधीश अर्थात भाग्य का व्यय करने वाला होने के कारण…

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