मंगलीक दोष

जन्मकुंडली में यदि मंगल दोष है:-

Dr.R.B.Dhawan
कुंडली मिलान के समय विवाह योग्य युवक अथवा युवती में से किसी एक की जन्मकुंडली में यदि मंगल सप्तम स्थान या अष्टम भाव में स्थित हो अथवा इन स्थानों को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हो, और दूसरे की कुंडली में इस प्रकार का मांगलिक योग नहीं हो तो, ये मामला बहुत ही गंभीर हो जाता है। उत्तर भारतीय मतानुसार वर – वधू में से एक कि कुंडली में मंगल यदि पहले, चौथे, सातवें, आठवें, और बारहवें भावों में विराजमान हो तो जातक के विवाह को विघटन में बदल देता है, ऐसा माना जाता है कि यदि इन भावों में विराजमान मंगल स्वक्षेत्री हो, उच्च राशि में स्थिति हो, अथवा मित्र क्षेत्री हो, तो मंगल दोष नहीं होता है, परंतु इस सिद्धांत से में सहमत नहीं, मैने अपने जीवन में ऐसी अनेक कुंडलियों को देखा है, जिनमें वर-वधू में से एक कि कुंडली में स्वक्षेत्री अथवा उच्च का मंगल होने पर भी विवाह विघटन की स्थिती बनी। ऐसा भी कहा जाता है कि यदि जन्म कुन्डली के प्रथम भाव में मंगल मेष राशि का हो, द्वादस भाव में धनु राशि का हो, चौथे भाव में वृश्चिक का हो, सप्तम भाव में मीन राशि का हो, और आठवें भाव में कुम्भ राशि का हो, तो मंगली नहीं होता है, परंतु इस पर भी बहुत से विद्वान सहमत नहीं हैं। यदि जन्म कुन्डली के सप्तम, लग्न, चौथे, नौवें और बारहवें भाव में शनि विराजमान हो तो मांगलिक दोष नहीं होता है। हां इस सिद्धान्त में जरूर सत्यता है, इसी प्रकार यदि जन्म कुन्डली में मंगल गुरु अथवा चन्द्रमा के साथ हो, अथवा चन्द्रमा केन्द्र में विराजमान हो, तो भी मांगलिक दोष नहीं होता है। ये भी किसी हद तक सही है।

वर अथवा कन्या की कुन्डली में मंगल शनि या अन्य कोई पाप ग्रह एक जैसी स्थिति में विराजमान हो तो भी मांगलिक दोष नहीं लगता है. यदि वर कन्या दोनों की जन्म कुन्डली के समान भावों में मंगल अथवा वैसे ही कोई अन्य पापग्रह बैठे हों तो मांगलिक दोष नही लगता, ऐसा विवाह शुभप्रद दीर्घायु देने वाला और पुत्र पौत्र आदि को प्रदान करने वाला माना जाता है।

मंगली और गैरमांगलिक वर-वधु का विवाह विनाशकारी हो सकता है, यदि वर कन्या में से केवल किसी एक की जन्म कुन्डली में ही उक्त प्रकार का मंगल विराजमान हो, दूसरे की कुन्डली में नहीं हो तो इसका सर्वथा विपरीत प्रभाव ही समझना चाहिये, अथवा वह स्थिति दोषपूर्ण ही होती है, यदि मंगल अशुभ भावों में हो तो भी विवाह नही करना चाहिये. परन्तु यदि गुण अधिक मिलते हों तथा वर कन्या दोनो ही मंगली हो तो विवाह करना शुभ होता है। लग्न, चतुर्थ भाव सप्तम भाव और बारहवें भाव के मंगल के लिये वैदिक उपाय बताये गये हैं।

सबसे पहला उपाय तो मांगलिक जातक के साथ मांगलिक जातक की ही शादी करनी चाहिये, लेकिन एक जातक मांगलिक और उपरोक्त कारण अगर मिलते हैं तो दूसरे मे देखना चाहिये कि मंगल को शनि के द्वारा कहीं दृष्टि तो नहीं है, शनि ठंडा ग्रह है और जातक के मंगल को शांत रखने के लिये काफी हद तक अपना कार्य करता है, दूसरे पति की कुंडली में मंगल असरकारक है, और पत्नी की कुंडली में मंगल असरकारक नहीं है तो शादी नही करनी चाहिये।

ऐसी स्थिति में मंगली पति या पत्नी को शादी के बाद लालवस्त्र पहन कर तांबे के लोटे में चावल भरने के बाद लोटे पर सफेद चन्दन को पोत कर एक लाल फूल और एक रुपया लोटे पर रखकर पास के किसी हनुमान मन्दिर में रख कर आना चाहिये।

चांदी की एक डिब्बी में शहद भरकर रखने से भी मंगल का असर कम हो जाता है, घर में आने वाले मेहमानों को मिठाई खिलाने से भी मंगल का असर कम रहता है, मंगल शनि और चंद्र को मिलाकर दान करने से भी फायदा मिलता है, मंगल से मीठी शनि से चाय और चंद्र से दूध से बनी पिलानी चाहिये।

शास्त्रकारों का मत ही इसका निर्णय करता है कि जहां तक हो मांगलिक से मांगलिक का संबंध करें, फिर भी मांगलिक एवं अमांगलिक पत्रिका हो, दोनों परिवार अपने पारिवारिक संबंध के कारण पूर्ण संतुष्ट हो, तब भी यह संबंध श्रेष्ठ नहीं है, ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसे में अन्य कई कुयोग हैं, जैसे वैधव्य विषांगना आदि दोषों को दूर रखें, यदि ऐसी स्थिति हो तो ‘पीपल’ विवाह, कुंभ विवाह, शालिग्राम से विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराके कन्या का संबंध अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करें, मंगल यंत्र विशेष परिस्थिति में ही प्रयोग करें. देरी से विवाह, संतान उत्पन्न की समस्या, तलाक, दाम्पत्य सुख में कमी एवं कोर्ट केस इत्या‍दि में ही इसे प्रयोग करें, छोटे कार्य के लिए नहीं।

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जन्मकुंडली में यदि मंगल दोष है:- Dr.R.B.Dhawan कुंडली मिलान के समय विवाह योग्य युवक अथवा युवती में से किसी एक की जन्मकुंडली में यदि मंगल सप्तम स्थान या अष्टम भाव में स्थित हो अथवा इन स्थानों को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हो, और दूसरे की कुंडली में इस प्रकार का मांगलिक योग नहीं हो…