साढ़ेसाती के रहस्य -5

शनि साढेसाती के रहस्य-5

Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

यहां हम भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की कुंडली में समझेंगे की शनि ग्रह की साढेसाती का इनके जीवन पर क्या प्रभाव रहा। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इनकी जन्म तिथि 17 सितम्बर 1950 तथा जन्म का समय प्रातः 11ः00 बजे है, जन्म स्थान मेहसाना गुजरात है।
मोदी जी का जन्म शनि के नक्षत्र अनुराधा के द्वितीय चरण में हुआ है। इनकी कुंडली के लिए शनि ग्रह इनका नक्षत्र स्वामी है, इस लिए इनका जन्म शनि की महादशा में हुआ है। परंतु यहां हम शनि की साढेसाती अर्थात शनि के गोचरीय प्रभाव का विश्लेषण करेंगे। जन्म नक्षत्र अनुराधा के आनुसार इनकी की साढ़ेसाती के समय में शनि ग्रह का गोचर भ्रमण जब-जब चित्रा नक्षत्र में प्रवेश करेगा तब से शनि साढेसाती आरम्भ होगी और आरम्भ होकर पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में जब तक शनि ग्रह का गोचरीय भ्रमण रहेगा, तब तक शनि की साढ़ेसाती का समय रहेगा।
शनि की साढेसाती पूर्णायु वाले मनुष्य के जीवन में तीन बार आती है। अब हम देखेंगे साढ़ेसाती के सम्पूर्ण साढे 7 वर्ष के समय में पौने सात नक्षत्रों में शनि ग्रह के भ्रमण का प्रभाव इनके जीवन पर कैसा रहा है। प्रधान मंत्राी जी की कुंडली में हम यह देखेंगे की नक्षत्र द्वारा ज्योतिषीय गणना के अनुसार शनि ग्रह की साढेसाती के रहते, या साढेसाती के समय में मोदी जी को प्रधानमंत्री पद कैसे प्राप्त हुआ। चंद्रमा के नक्षत्र से देखने पर जिन पौने 7 नक्षत्रों में इनके लिए साढेसाती की सूचना मिलती है वह नक्षत्र इस प्रकार हैं-

1. चित्रा-मंगल। वेध-धनिष्ठा,मृगशिरा।
2. स्वाती-राहु। वेध-रोहिणी।
3. विशाखा-गुरू। वेध-कृतिका।
4. अनुराधा-शनि। वेध- भरणी
5. ज्येष्ठा-बुध। वेध-अश्विनी।
6. मूल-केतु। वेध-अश्लेषा।
7. पूर्वाषाढ़ा-शुक्र। वेध- पुष्य।

नैसर्गिक मैत्रि चक्र-
शनि ग्रह के मित्र-शत्रु
मित्र- बुध, राहु, शुक्र।
शत्रु- सूर्य, चंद्र, मंगल, केतु।
सम- बृहस्पति।

सबसे पहले यह जान लेते हैं कि इनके अब तक के जीवन काल में शनि ग्रह की साढेसाती कब-कब रही। क्योंकि किसी व्यक्ति के जीवन की पूर्ण आयु में शनि ग्रह की साढेसाती के तीन चक्र आते हैं।
मोदी जी की कुंडली के अनुसार इनके जीवन में शनि साढेसाती का पहला चक्र लगभग 2 वर्ष की आयु से आरम्भ होकर 9 वर्ष की आयु तक रहा था। दूसरा चक्र 32 वर्ष की आयु से आरम्भ होकर 40 वर्ष की आयु तक रहा। और तीसरा चक्र सितम्बर 2011 से आरम्भ होकर जनवरी 2020 (62वें वर्ष से आरम्भ होकर 69वें वर्ष तक) तक रहा। शनि की साढेसाती के तीसरे चक्र के समय में मोदी जी ने दो बार भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
1. मोदी जी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ पहली बार 26 मई 2014 के दिन ली थी। इन दिनों में शनि ग्रह की साढेसाती चल ही रही थी, शनि साढेसाती के तीसरे चक्र में दो वर्ष का समय बीत चुका था, और साढे 5 वर्ष का समय अभी शेष था। शनि ग्रह की गोचरीय स्थिति उस समय विशाखा नक्षत्र में थी। नक्षत्रीय गणना (नवतारा गणना) के अनुसार शनि की गोचरीय स्थिति चंद्रमा के नक्षत्र अनुराधा से 27वें नक्षत्र विशाखा में थी। इस प्रकार शनि की स्थिति अतिमित्र तारा और नक्षत्र विशाखा में थी। विशाखा नक्षत्र बृहस्पति का नक्षत्र है, अर्थात इस नक्षत्र के स्वामी बृहस्पति हैं, जो शनि ग्रह के लिए नैसर्गिक दृष्टि से सम ग्रह (न्यूट्रल ग्रह) हैं, और इनकी कुंडली में पंचधा मैत्री चक्र से बृहस्पति शनि के लिए शत्रु हैं।
अब यहां साढेसाती और शत्रु ग्रह के नक्षत्र में शनि ग्रह कैसे प्रधानमंत्री पद दिलाने में सहायक हुये यह समझिये। शनि की स्थिति विशाखा नक्षत्र में होगी तब विशाखा नक्षत्र का वेध करने वाले नक्षत्र कृतिका में अवश्य सूर्य के अतिरिक्त किसी ग्रह का गोचर आवश्यक है, तभी इस शत्रु ग्रह बृहस्पति का अशुभ शुभ में बदल सकता है। तो यहां ध्यान देने वाली बात यह है की बृहस्पति के नक्षत्र विशाखा का वेध करने वाले नक्षत्र कृतिका में बुध ग्रह का भ्रमण प्रवेश 7 मई 2014 के दिन हो रहा था, और बुध कृतिका में 18 मई 2014 तक गोचर करते रहे। इन्होंने मोदी जी के लिए प्रधानमंत्री पद के लिए मार्ग खोल दिए। अब इसी 18 मई के दिन से ही इनके राशि तथा लग्न स्वामी मंगल का प्रवेश कृतिका नक्षत्र में हुआ। और अब मंगल ग्रह कृतिका में गोचर करते हुए शनि के नक्षत्र का वेध करने लगे। मंगल की कृतिका में स्थिति 7 जून 2014 तक रही, जो की अशुभता को शुभता में बदलने वाली सिद्ध हुई। यह थी 2014 के शपथ ग्रहण के समय की शनि ग्रह की गोचरीय स्थिति और शनि के वेध का प्रभाव जिसने विशाखा नक्षत्र में शनि के अशुभ प्रभाव को पलट दिया। अब 2019 पर आते हैं-
2. मोदी जी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ 30 मई 2019 के दिन ली थी। इस समय शनि ग्रह की साढेसाती का समय भी चल ही रहा था, और शनि ग्रह का गोचर भ्रमण शनि के मित्र शुक्र के नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा में था। नक्षत्रीय गणना (नवतारा गणना) के अनुसार शनि की गोचरीय स्थिति चंद्रमा के नक्षत्र अनुराधा से 4थे स्थान में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में थी। इस तरह शनि की गोचरीय स्थिाति ‘क्षेम तारा’ शुभ तारा में और शुक्र के नक्षत्र में थी। पंचधा मैत्रीचक्र के अनुसार शुक्र ग्रह शनि के लिए मित्र से सम हो रहे हैं, इस प्रकार न्यूट्रल शुक्र भी साढेसाती के इस समय में प्रधानमंत्री जी के लिए सहायक सिद्ध हुए।
प्रकार शनि ग्रह की साढेसाती का प्रभाव हमेशा और हर एक के लिए बुरा या कष्टकारी नहीं होता है। शनि ग्रह की साढेसाती को हमेशा कष्टकारी ही माना जाता है, यह धारणा गलत है।

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