साढ़ेसाती के रहस्य -4

शनि साढेसाती के रहस्य-4

Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

यहां जिस जातक की जन्म कुंडली में शनि ग्रह की साढ़ेसाती के फल का विचार करेंगे, उस की जन्म तिथि 07 मई 1994 तथा जन्म का समय मध्य रात्रि 03ः22 है, जन्म स्थान अक्षांश 26ः09 (उत्तर)। रेखांश 80ः09 (पूर्व)। इस जातक का जन्म का नक्षत्र उत्तराभाद्रपद तृतीय चरण है। देखेंगे की इस जातक की कुंडली के लिए शनि ग्रह की साढ़ेसाती के समय में शनि का गोचर जब धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण में प्रवेश किया है, तभी से शनि की साढ़ेसाती का आरम्भ हुआ है। और जब शनि ग्रह भरणी नक्षत्र के तीसरे चरण में आयेंगे तब तक शनि ग्रह की साढ़ेसाती का समय रहेगा। साढ़ेसाती के सम्पूण समय में यह जो पौने सात नक्षत्र होंगे, इनमें शनि ग्रह का भ्रमण रहेगा।

1. धनिष्ठा स्वामी-मंगल।
2. शतभिषा स्वामी-राहु।
3. पूर्वा भा. स्वामी-गुरू।
4. उ. भा. स्वामी- शनि।
5. रेवती स्वामी- बुध।
6. अश्विनी स्वामी-केतु।
7. भरणी स्वामी- शुक्र।

नैसर्गिक मैत्रि चक्र-
शनि ग्रह के मित्र-शत्रु
मित्र- बुध, राहु, शुक्र।
शत्रु- सूर्य, चंद्र, मंगल, केतु।
सम- बृहस्पति।

अब देखना होगा इस जातक के लिए किस-किस नक्षत्र के लिए शनि ग्रह का गोचर भ्रमण कैसा फल प्रकट करेगा।
1. प्रथम नक्षत्र है, धनिष्ठा, इस का स्वामी मंगल है। साधारण दृष्टि से शनि के लिए मंगल शत्रु है, और पंचधा मैत्री चक्र से देखने से इस नक्षत्र का स्वामी मंगल शनि के लिए सम है। इस लिए साढ़ेसाती की अवधि में साढेसाती आरम्भ में जब शनि भरणी नक्षत्र के तीनों चरण में भ्रमण करते होंगे तब जातक के शरीर में थोडी बहुत निर्बलता या मन को निराशा के अतिरिक्त कोई विशेष पीढा नहीं देंगे अर्थात यह समय 9-10 महीने में साढ़ेसाती के कारण कोई हानि नहीं होगी।
2. दूसरा नक्षत्र है, शतभिषा जो राहु का नक्षत्र है। इस लिए साधारण दृष्टि से शनि के लिए राहु ग्रह मित्र है, परंतु पंचधा मैत्री चक्र में देखने से शनि के लिए राहु अतिमित्र है। इस लिए साढ़ेसाती की इस नक्षत्र अवधि में जब शनि शतभिषा नक्षत्र में भ्रमण करते होंगे तब जातक के लिए यह समय शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक बल की वृद्धि होगी तथा परिवार में सुख-शांति शुभ की आशा, भूमि सम्बंधी लाभ और अर्थिक लाभ और उन्नति वाला समय होगा।
3. तीसरा नक्षत्र है पूर्वाभाद्रपद, इस नक्षत्र का स्वामी है गुरू ग्रह है। साधारण दृष्टि से शनि के लिए गुरू ग्रह सम है, यानि न्यूट्रल ग्रह है, और पंचधा मैत्री चक्र से देखने से गुरू शनि के लिए शत्रु है। इस लिए साढ़ेसाती की इस अवधि में जब शनि का भ्रमण पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में रहेगा तब इस एक वर्ष की समय अवधि में अवश्य कुछ अर्थिक कठिनाईयां रहेंगी।
4. चैथा नक्षत्र है, उत्तराभाद्रपद, इस का स्वामी स्वयं शनि ग्रह ही है। इस लिए शनि ग्रह का गोचर भ्रमण इस नक्षत्र की अवधि में शुभ ही होगा, यहां आर्थिक कष्ट समाप्त होंगे हालात में सुधार होगा।
5. अब यह पांचवां नक्षत्र है, रेवती, इस नक्षत्र का स्वामी बुध ग्रह है। साधारण दृष्टि से शनि के लिए बुध मित्र ग्रह है, और पंचधा मैत्री चक्र से देखने से बुध इस कुंडली में शनि के लिए अतिमित्र है। इस लिए साढ़ेसाती की इस अवधि में रेवती नक्षत्र में भ्रमण करते समय शनि ग्रह हानि बिलकुल भी नहीं देगा, बल्कि अचानक अधिक लाभकारी और शुभ फल देने वाला सिद्ध होगा।
6. छटा नक्षत्र है, केतु का नक्षत्र अश्विनी, इस जातक के लिए अश्विनी नक्षत्र साधारण दृष्टि से शनि के लिए शत्रु है, परंतु पंचधा मैत्रि चक्र में शनि के लिए केतु सम ग्रह अर्थात न्यूट्रल ग्रह है, इस लिए केतु के अश्विनी नक्षत्र में भ्रमण करते समय शनि एक न तो शुभ और न ही अशुभ फल देने वाले होंगे। शारीरिक, पारिवारिक, और आर्थिक परिस्थितियां सामान्य रहेगी।
7. अब सप्तम नक्षत्र भरणी शनि ग्रह के मित्र शुक्र का नक्षत्र है, इस जातक के लिए भरणी नक्षत्र के लगभग 3 चरण भाग ही साढेसाती में आता है। इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शुक्र होने से, साधारण दृष्टि से शनि के लिए शुक्र मित्र है, परंतु पंचधा मैत्रि चक्र में शनि के लिए शुक्र अतिमित्र है, इस लिए शुक्र के नक्षत्र भरणी में भ्रमण करते समय शनि एक बार अत्यंत शुभ और अनेक प्रकार से सुख के साधन उपलब्ध करवाने वाला रहेगा।
इस प्रकार इस जातक के लिए साढेसाती अर्थात इन पौने सात नक्षत्रों में भ्रमण के समय शनि ग्रह केवल तीसरे नक्षत्र पूर्वाभाद्रपद यानि गुरू के नक्षत्र में भ्रमण के समय अवश्य कुछ अर्थिक कठिनाईयां देंगे। शेष सभी नक्षत्रों में भ्रमण के समय शनि या तो अतिमित्र नक्षत्र में होंगे या फिर सम नक्षत्र में भ्रमण कर रहे होंगे, इस लिए इस जातक के लिए शनि की साढेसाती का लगभग अधिकांश समय सुखपूर्वक व्यतीत होगा।
इस प्रकार शनि ग्रह की साढेसाती हर एक कुंडली वाले जातक के लिए कष्टकारी नहीं होती। अब इस के बाद के वीडियो में मैं आपको बताऊंगा साढेसाती का विचार करते समय शनि शुभ होते हुए भी शुभ या अशुभ होते हुए भी अशुभ फल क्यों नहीं देता, या कौन सा ग्रह शनि के शुभ गोचर और अशुभ गोचर फल को रोक देता है। नहीं देने देता। इस स्थिति को ग्रह का वेध कहते हैं। वेध का क्या अर्थ है, जिन नक्षत्रों में शनि ग्रह या किसी भी ग्रह को गोचर भ्रमण के समय शुभ फल देना है, कभी कभी उस शुभ फल को कोई वेध करने वाला ग्रह रोक देता है। इसे कहते हैं, नक्षत्र वेध! अर्थात वेध करने वाले नक्षत्र में जो ग्रह होगा वह शनि ग्रह का शुभ या अशुभ फल रोक देगा।
अर्थात-रहस्य अभी ओर भी हैं।

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