भोजन
जैसा खायें अन्न वैसा होय मन:-
Dr.R.B.Dhawan
भोजन का असर शरीर पर तो होता ही है, परंतु शरीर के सभी अंगों तक भी उसी भोजन का रस पहुंचने के कारण उन सभी अंगों पर भी होता है, जो भोजन हम करते हैं, उसी भोजन के रस से ही शरीर के हर अंग को पुष्टि और संतुष्टि मिलती है। फिर चाहे वो दिल हो, दिमाग हो या फिर दिमाग का वो भाग हो जिसे हम मन कहते हैं। अब भोजन की बात करें तो भोजन सात्विक, राजसिक और तामसिक तीन प्रकार का बताया गया है, सात्विक भोजन में ज्यादातर शाकाहारी खाद्यान्न आता है (कुछ शाकाहार भी तामसिक गुणों वाला होता है)। और राजसिक भोजन का सम्बंध स्वार्थ, स्वाद ओर पैसे से होता है। तथा तामसिक मांसाहार या बेमन से बनाया गया भोजन अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार होते हैं। आइए देखें किस प्रकार के भोजन का हमारे शरीर या मन पर क्या असर पड़ता है।
इसको उद्धाहरण से समझ सकते है : –
तमसिक :- महाभारत में कहा है-
धनेन क्रयिको हन्ति खादकश्चोपभोगतः।
घातको वधबन्धाभ्यामित्येष त्रिविधो वधः॥
आहर्ता चानुमन्ता च विशस्ता क्रयविक्रयी ।
संस्कर्ता चोपभोक्ता च खादकाः सर्व एव ते॥
–महा० अनु० ११५/४०, ४९
’मांस खरीदनेवाला धन से प्राणी की हिंसा करता है, खानेवाला उपभोग से करता है और मारनेवाला मारकर और बाँधकर हिंसा करता है, इस पर तीन तरह से वध होता है । जो मनुष्य मांस लाता है, जो मँगाता है, जो पशु के अंग काटता है, जो खरीदता है, जो बेचता है, जो पकाता है और जो खाता है, वे सभी मांस खानेवाले (घातकी) हैं ।’
अतएव मांस-भक्षण धर्म का हनन करनेवाला होने के कारण सर्वथा महापाप है । धर्म के पालन करनेवाले के लिये हिंसा का त्यागना पहली सीढ़ी है । जिसके हृदय में अहिंसा का भाव नहीं है वहाँ धर्म को स्थान ही कहाँ है?
भीष्मपितामह राजा युधिष्ठिर से कहते हैं-
मां स भक्षयते यस्माद्भक्षयिष्ये तमप्यहम ।
एतन्मांसस्य मांसत्वमनुबुद्ध्यस्व भारत ॥
–महा० अनु० ११६/३५
‘ हे युधिष्ठिर ! वह मुझे खाता है इसलिये मैं भी उसे खाऊँगा यह मांस शब्द का मांसत्व है ऐसा समझो ।’
इसी प्रकार की बात मनु महाराज ने कही है-
मां स भक्षयितामुत्र यस्य मांसमिहाद्म्यहम् ।
एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्तिं मनीषणः
॥
–मनु0 ५/५५
’ मैं यहाँ जिसका मांस खाता हूँ, वह परलोक में मुझे (मेरा मांस) खायेगा। मांस शब्द का यही अर्थ विद्वान लोग किया करते हैं ।’
आज यहाँ जो जिस जीव के मांस खायेगा किसी समय वही जीव उसका बदला लेने के लिये उसके मांस को खानेवाला बनेगा । जो मनुष्य जिसको जितना कष्ट पहुँचाता है समयान्तर में उसको अपने किये हुए कर्म के फलस्वरुप वह कष्ट और भी अधिक मात्रा में (मय व्याज के) भोगना पड़ता है, इसके सिवा यह भी युक्तिसंगत बात है कि जैसे हमें दूसरे के द्वारा सताये और मारे जाने के समय कष्ट होता है वैसा ही सबको होता है । परपीड़ा महापातक है, पाप का फल सुख कैसे होगा? इसलिये पितामह भीष्म कहते हैं-
कुम्भीपाके च पच्यन्ते तां तां योनिमुपागताः ।
आक्रम्य मार्यमाणाश्च भ्राम्यन्ते वै पुनः पुनः ॥
–महा० अनु० ११६/२१
’ मांसाहारी जीव अनेक योनियों में उत्पन्न होते हुए अन्त में कुम्भीपाक नरक में यन्त्रणा भोगते हैं और दूसरे उन्हें बलात दबाकर मार डालते हैं और इस प्रकार वे बार- बार भिन्न-भिन्न योनियों में भटकते रहते हैं ।’
इमे वै मानवा लोके नृशंस मांसगृद्धिनः ।
विसृज्य विविधान भक्ष्यान महारक्षोगणा इव ॥
अपूपान विविधाकारान शाकानि विविधानि च ।
खाण्डवान रसयोगान्न तथेच्छन्ति यथामिषम ॥
–महा० अनु० ११६/१-२
’ शोक है कि जगत में क्रूर मनुष्य नाना प्रकार के पवित्र खाद्य पदार्थों को छोड़कर महान राक्षस की भाँति मांस के लिये लालायित रहते हैं तथा भाँति-भाँति की मिठाईयों, तरह-तरह के शाकों, खाँड़ की बनी हुई वस्तुओं और सरस पदार्थों को भी वैसा पसन्द नहीं करते जैसा मांस को।’
इससे यह सिद्ध हो गया कि मांस मनुष्य का आहार कदापि नही हो सकता।
सात्विक भोजन:-
सात्विक अन्न केवल शाकाहारी भोजन नही बल्कि परमात्मा को समर्पित करके बनाया और खाया गया भोजन है। जैसे क्रोध से अगर खाना बनाया गया है, उसे सात्विक अन्न नही कहेंगे, इसलिए खाना बनाने वालों को कभी भी नाराज, परेशान स्थिति में खाना नही बनाना चाहिये। ये ध्यान में रखने वाली अत्यन्त ही महत्वपूर्ण बात है, किसी को डांट दो, गुस्सा कर दो और बोलो जाके खाना बनाओ! अब खाना तो हाथ बना रहा है, परंतु उसका मन क्या कर रहा है? अन्दर मन तो लगातार खिन्न है। यह न भूलें कि मन के भाव भी भोजन को गुण और स्वाद देते हैं। इस को समझने के लिए भोजन को तीन वर्गों में सात्विक, राजसिक और तामसिक दृष्टि से देखें :-
1. जो हम Hotel में खाते हैं, अथवा घर में कर्मचारी भोजन बनाते हैं।
2. जो घर की महिला (माँ, बहन, पत्नी या पुत्री) भोजन बनाती हैं (मन के भाव अनुसार राजसिक, सात्विक या तामसिक में कोई भी हो सकता है)।
3. जो हम मंदिर और गुरूद्वारा या भंडारा में खाते हैं।
आप देखेंगे कि तीनो प्रकार के भोजन का टेस्ट और गुण अलग-अलग होते हैं, क्योंकि तीनो मामलों में भोजन बनाते समय भोजन बनाने वाले के मन के भाव अलग-अलग होते हैं।
(1) जो भोजन Hotel में अथवा घर के कर्मचारियों द्वारा बनाया गया है, वह तामसिक है। उस भोजन को बनाते समय मन के भाव स्वार्थ युक्त होते हैं, (वहां आप खाओ और हम कमायें को महत्व दिया गया है) जो ज्यादा बाहर खाता है, उसकी वृति भी धन कमाने के अलावा कुछ और सोच नहीं सकती।
(2) घर की महिला प्रसन्नता पूर्वक और भाव पूरित जो खाना बनाती है।या एक बच्चा अपनी माँ को बोले कि..एक रोटी और खानी है, तो माँ का चेहरा ही खिल जाता है। कितनी प्यार से वो एक और रोटी बनाएगी। कि मेरे बच्चे ने रोटी तो और मांगी वो उस रोटी में बहुत ज्यादा प्यार भर देती है। अगर आप अपने Cook को बोलो एक रोटी और खानी है…. तो..? वो सोचेगा …रोज 2 रोटी खाते है, आज एक और चाहिए आज ज्यादा भूख लगी है, अब मेरे लिए तो काम बढ गया। अब और आटा गुंथना पड़ेगा एक रोटी के लिए..मुसीबत…!!! ऐसी रोटी नही खायें, ऐसी रोटी खाने से..ना खाना ही भला।
(3) जो भोजन मंदिर, गुरूद्वारा या भंडारा में बना हो वह केवल खाना ही नहीं प्रसाद बन जाता है, (वो किस भावना से बनता है) आप जानते ही हैं। वो भोजन परमात्मा को याद करके बनाया जाता है, क्यों न हम भी अपने घर में परमात्मा की याद में प्रसाद बनाना शुरू कर दें।
निष्कर्ष यह है कि भोजन बनानेवाले के मन के भाव भी भोजन को सात्विक, तामसिक या राजसिक गुण प्रदान करते हैं।
हमें करना क्या चाहिए:-
घर, रसोई साफ़, मन शांत, रसोई में सकारात्मक विचार और परमात्मा को याद करते हुए खाना बनायें।
घर में जो Problem हैं उसके लिए जो solution है, उसके बारे में परमात्मा को प्रार्थना करते हुए खाना बनायें।
परमात्मा को कहे मेरे बच्चे के कल exam है, इस खाने में बहुत शक्ति और ज्ञान भर दो.! शांति भर दो.! ताकि मेरे बच्चे का मन एकदम शांत हो, वह प्रावधान हो, ताकि उसकी सारी टेंशन ख़तम हो जायें।
हे परमात्मा, मेरे पति को Business में बहुत टेंशन है, और वो बहुत गुस्सा करते हैं, इस खाने में ऐसी शक्ति भरो, कि उनका मन शांत हो जाये।
हमेशा याद रखिए: जैसा होगा अन्न (भोजन) वैसा बनेगा मन। आप भी दो-तीन महीने तक प्रयोग करके देखें कि सात्विक अन्न खाने से आप अपने आप में क्या परिवर्तन महसूस करते हैं? और इस भोजन का आपके मन पर कैसा असर पड़ता है?
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जैसा खायें अन्न वैसा होय मन:- Dr.R.B.Dhawan भोजन का असर शरीर पर तो होता ही है, परंतु शरीर के सभी अंगों तक भी उसी भोजन का रस पहुंचने के कारण उन सभी अंगों पर भी होता है, जो भोजन हम करते हैं, उसी भोजन के रस से ही शरीर के हर अंग को पुष्टि और…