कुण्डली में चाण्डाल योग

कितने प्रकार का होता है, जन्मकुंडली में चाण्डाल योग? :-

Dr.R.B.Dhawan

चाण्डाल शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है क्रूर कर्म करनेवाला अथवा नीच (अप्रिय) कर्म करनेवाला इस चाण्डाल शब्द पर ज्योतिष-शास्त्र में एक योग अधिक प्रचलित है, जिसे कहते हैं- “गुरु चाण्डाल योग” आईये समझते हैं कैसे बनता है यह योग?- पौराणिक मान्यता के अनुसार राहू और केतु दोनों छाया ग्रह है, पुराणों में इन्हें राक्षस कहा गया है। राहू और केतु के लिए बड़े सर्प या अजगर की कल्पना की गई है, राहू सर्प का मस्तक है तो, केतु सर्प की पूंछ! ज्योतिष शास्त्र में राहू-केतु दोनों पाप ग्रह हैं, अत: यह दोनों ग्रह जिस भाव में या जिस ग्रह के साथ युति करते हों, उस भाव या उस ग्रह बुरे फल की सूचना मिलती हैं। यह दोनों ग्रह चाण्डाल जाति के हैं, इसलिए गुरु के साथ इनकी युति गुरु-चाण्डाल योग का निर्माण करती है।

वस्तुत: राहु और केतु जिस ग्रह के साथ युति करते हैं, उसी प्रकार का चाण्डाल योग बनाते हैं। जैसे गुरु के साथ युति होने पर गुरू-चाण्डाल योग बनाते हैं, इसी तरह अन्य ग्रहों के साथ भी चाण्डाल योग बनाते हैं, जो निम्न प्रकार के है :-

1. सूर्य-चाण्डाल योग : सूर्य के साथ राहू या केतु की युति हो तो, इसे रवि चाण्डाल योग कहते हैं, कहीं-कहीं इस युति को सूर्य-ग्रहण योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेने वाला अत्याधिक क्रोधी और जिद्दी होता है, उसे शारीरिक कष्ठ भी भुगतना पड़ता है। पिता के साथ मतभेद रहता है, और संबंध अच्छे नहीं होते, पिता का स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं रहता।

2. चन्द्र-चाण्डाल योग : चन्द्रमा के साथ राहू या केतु हो तो इसे चन्द्र चाण्डाल योग कहते हैं, इस युति को चन्द्र ग्रहण योग भी कहा जाता है।इस योग में जन्म लेनेवाला जातक शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होता, उसे माता सम्बंधित अशुभ फल मिलता है, अधिकांश मामलों में नास्तिक होने की भी संभावना रहती है।

3. भौम-चाण्डाल योग : मंगल के साथ राहू या केतु हो तो, इसे भौम चांडाल योग कहते हैं, इस युति को अंगारक योग भी कहा जाता है, इस योग में जन्म लेनेवाला जातक भी अत्याधिक क्रोधी, जल्दबाज, निर्दयी और अपराधी होता है, स्वार्थी स्वभाव, धीरज न रखनेवाला होता है। ऐसे जातक को आत्महत्या या अकस्मात् मृत्यु की संभावना भी रहती है।

4. बुध-चाण्डाल योग : बुध के साथ राहू या केतु हो तो, इसे बुध-चाण्डाल योग कहते है। बुद्धि और चातुर्य वाले बुध ग्रह के साथ राहू-केतु होने से बुध के कारत्व को हानि पहुंचती है, और जातक के लिए अधर्म के मार्ग पर चलने की संभावना, धोखेबाज और चोरवृति वाला होने की संभावना रहती है।

5. गुरु-चाण्डाल योग : गुरु के साथ राहू या केतु हो तो इसे गुरु-चाण्डाल योग कहते हैं, ऐसा जातक नास्तिक, धर्मं में श्रद्धा नहीं रखनेवाला और निंदित कार्य करनेवाला होता है।
6. भृगु-चाण्डाल योग : शुक्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे भृगु-चाण्डाल योग कहते हैं, इस योग में जन्म लेने वाले जातक का जातीय चारित्र शंकास्पद होता है, वैवाहिक जीवन में वह बहुत कठिनाइयों का सामना करता है। जातक या जाति का को विधुर या विधवा होने का भय रहता है।

7. शनि-चाण्डाल योग : शनि के साथ यदि राहू या केतु हो तो, इसे शनि चाण्डाल योग कहते हैं, इस युति को श्रापित योग भी कहा जाता है, यह चाण्डाल योग भौम-चाण्डाल योग जेसा ही अशुभ फल देता है, जातक झगड़ालू, स्वार्थी और मुर्ख होता है, ऐसे जातक की वाणी और व्यवहार में बुद्धिमत्ता नहीं होती, यह योग अकस्मात् मृत्यु की तरफ भी संकेत देता है।
नोट :- उपरोक्त सभी चान्डाल योग ज्योतिष शास्त्रों में भिन्न भिन्न नामों से मिलते हैं। पर यहाँ इस लेख में गुरु-चाण्डाल जैसे सभी योगों के सिद्धांत नाम सहित दिये जा रहे हैं। राहू-केतु के साथ जो ग्रह हैं, उनके भावाधिपत्य और उन पर अन्य ग्रहों की युति या दृष्टि इन चाण्डाल योगों के फल में परिवर्तन ला सकता है।

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कितने प्रकार का होता है, जन्मकुंडली में चाण्डाल योग? :- Dr.R.B.Dhawan चाण्डाल शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है क्रूर कर्म करनेवाला अथवा नीच (अप्रिय) कर्म करनेवाला इस चाण्डाल शब्द पर ज्योतिष-शास्त्र में एक योग अधिक प्रचलित है, जिसे कहते हैं- “गुरु चाण्डाल योग” आईये समझते हैं कैसे बनता है यह योग?- पौराणिक मान्यता के अनुसार…