कैसे करें कुंडली मिलान?
कुंडली मिलान में महत्वपूर्ण है, अष्टकूट मिलान :-
Dr.R.B.Dhawan
विवाह संस्कार 16 संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है, क्यों की यह केवल संस्कार ही नहीं अपितु दो आत्माओं का मिलन होता है। इस लिये आवश्यक है कि सम्बन्ध जोड़ने से पूर्व विवाह योग्य युवक युवती की जन्म कुंडली में वर्ण,वश्य,तारा,ग्रहमैत्री,नाडी आदि अष्टकूट सम्बन्धी विचार के बाद मांगलिक दोष पर भी विशेष विचार किया जाता है।
मंगल रक्त और पराक्रम कारक ग्रह है, यही ग्रह प्रतिकूल होने पर क्रोध का देवता बन जाता है, इस के अतिरिक्त यह ग्रह महिलाओं में मासिक धर्म का संतुलन बनाए रखता है। अतः मंगल की शुभता का विचार अवश्य करना ही चाहिए। क्योंकि रक्त कारक ग्रह ही दूषित होगा तो संतानोत्पत्ती के मामले में अशुभ फल मिल ही सकता है।
लग्ने व्यये सुखे वापि सप्तमे वा अष्टमे कुजे।
शुभदृग्योगहीने च पतिं हन्ति न संशयम्।।१ (बहत्पाराशर होरा शास्त्र)
लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे।
कन्या भर्तुर्विनाशाय भर्ता कन्याविनाशकः।। २ (मुहूर्त्तसंग्रहदर्पण)
दोनों श्लोको का एक ही अर्थ है कि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम्, अष्टम्, द्वादश भाव (स्थान) पर मंगल होने पर मांगलिक दोष होता। यहां पर मंगल दोष का विचार करने को कहा गया है। लेकिन मंगल दोष है तो परिहार भी है। क्योंकि कि आज तक सृष्टि का कोई नियम नहीं की दोष हो परन्तु परिहार नहीं हो। जिस प्रकार हानि है तो लाभ, मृत्यु है तो जन्म, दुःख है तो सुख भी है, उसी प्रकार मंगल दोष है तो परिहार भी होगा।
मंगल दोष परिहार :-
१.कुजदोषवती देया कुजदोषवते किल।
नास्ति दोषो न चानिष्टं दम्पत्योः सुखवर्धनम्।।
मङ्गल दोग युक्त जातक व कन्या का विवाह मंगल दोग से युक्त कन्या से करने पर दोष खत्म हो जाता है।
२.शनि भौमोऽथवा कश्चित् पापो वा तादृशो भवेत्।
तेष्वेव भवनेष्वेव भौमदोषविनाशकृत्।। (फलित संग्रह)
वर अथवा कन्या कि कुण्डली में जिस स्थान में मंगल स्थिति हो उसी स्थान में वधु अथवा वर की कुण्डली में शनि, मंगल, सूर्य, राहु कोई पापग्रह स्थित हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
३. भौमेन सदृशो भौमः पापो वा तादृशो भवेत्।
विवाहः शुभदः प्रोक्तश्चिरायुः पुत्रपौत्रदः।।
भौमतुल्यो यदा भौमः पापो वा तादृशो भवेत्।
उद्वाहः शुभदः प्रोक्तश्चिरायुः पुत्रवर्धनः।। (ज्योतिष तत्व)
वर-वधु में से किन्हीं एक कुंडली में मंगल दोष हो तथा दुसरे की कुण्डली में उसी स्थान पर शनि आदि पापग्रह हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है। यदि वर कन्या दोनों का मंगल समान स्थिति में हो या कोई पाप ग्रह मंगल के समान उसी भाव में स्थित हो तो, विवाह मंगलकारी होता है।
३.अजे लग्ने व्यये चापे पाताले वृश्चिके कुजे।
लद्यूनं मृगे कर्कि चाष्टौ भौमदोषो न विद्यते।१।
(मुहूर्त्तं पारिजात)
द्यूने मीने घटे चाष्टौ भौमदोषो न विद्यते।। २।।
मेष का मंगल लग्न में वृश्चिक राशि का मंगल चतुर्थ भाव में मकर राशि का मंगल सप्तम मे कर्क राशि का मंगल आठवें भाव में तथा धनु राशि का मंगल द्वादश भाव में हो तो मंगल दोष नहीं होता, अर्थात् परिहार हो जाता है। मीन राशि का मंगल सप्तम भाव में तथा कुम्भ राशि का मंगल अष्टमभाव में हो तो, मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
४. न मंगली चन्द्रभृगुः द्वितीय, न मंगली पश्यति यस्य जीवो।
न मंगली केन्द्रगते च राहुः, न मंगली मंगलराहुयोगे।। (मु. दीपक)
यदि द्वितीय भाव में चन्द्र शुक्र का योग हो या मंगल गुरु द्वारा देखा जाता हो, केन्द्र में राहु हो अथवा केन्द्र में राहु मंगल का योग हो तो मांगलिक योग का परिहार हो जाता है।
५. सबले गुरौ भृगौ वा लग्ने द्यूनेऽथवा भौमे।
वक्रे नीचारिगेहस्थे वाऽस्ते न कुजदोषः।। (मुहूर्त्त दीपक)
अर्थात् बलयुक्त गुरू या शुक्र लग्न में हो तो वक्री, नीचस्थ, अस्तङ्गगत अथवा शत्रुओं से युक्त मंगल होने पर भी मंगल दोष का परिहार हो जाता है मंगल दोष नहीं होगा।
६. केन्द्रकोणे शुभाढ्ये च त्रिषडायेऽप्यसद्ग्रहाः।
तदा भौमस्य दोषो न मोदने मधुपस्तथा।। (मुहूर्त्तचिंतामणी)
अर्थात् केन्द्र त्रिकोण में यदि शुभ ग्रह हो ३/६/११ भाव में पाप ग्रह हो तथा सप्तम भाव का स्वामी (सप्तमेश) सप्तम् भाव में ही हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
७. तनुधनसुखमदनायुर्लाभव्ययगः कुजस्तु दाम्पत्यम्।
विघटयति तद् गृहेशो न विघटयति तुङ्गमित्रगेहे वा।। (मुहूर्त्तचिंतामणी)
अर्थात यद्यपि १/२/४/७/८/११/१२ भावों में स्थित मंगल वर-वधू के वैवाहिक जीवन में विघटन उत्पन्न करता है, परन्तु यदि मंगल स्वगृही हो, उच्चस्थ (मकर राशि का) हो या मित्रक्षेत्र में हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
८.राशिमैत्रं यदा याति गणैक्यं वा यदा भवेत्।
अथवा गुणबाहुल्यं भौमदोषो न विद्यते।। (मुहूर्त्त दीपक)
अर्थात् :- यदि वर कन्या की कुण्डलियो में परस्पर राशि मैत्री हो गणैक्य हो २७ या अधिक गुण मिले हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
विशेष :- वर कन्या की कुंडली में मंगल दोष एवं उसका परिहार का निर्णय अत्यंत विवेकपूर्ण ध्यान पूर्वक करना चाहिए। मात्र १/४/७/८/१२, मे मंगल को देखकर दाम्पत्य जीवन के सुख जीवन के लिए अनिष्टकारक होता है-
लग्ने क्रूराः व्यये क्रूराः धने क्रूराः कुजस्तथा।
सप्तमे भवने क्रूराः परिवारक्षयङ्कराः।। (मुहूर्त्त संग्रह दर्पण)
मंगल दोष का निर्णय कुण्डली विशेष मे सभी ग्रहों के पारस्परिक अनुशीलन के पश्चात ही करना चाहिए क्योंकि सभी लग्न कुण्डलियों में मंगल दोष का प्रभाव समान नहीं होता। कुछ लग्न कुण्डलियो में मंगल दोष का अशुभ प्रभाव वर वधू के वैवाहिक जीवन पर पडता है परन्तु यदि किसी कुण्डलियो में मंगल अन्य ग्रहों के साहचर्य से योगकारक हो उच्चस्थ या स्वगृही हो अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो मंगल का शुभ फल मिलता है। जैसे मकर मेष वृश्चिक सिंह धनु मीन राशि का मंगल शुभ फलदायी होता है तथा कर्क व सिंह लग्न में मंगल केन्द्र त्रिकोणपति होने से शुभ होकर योगकारक माना जाएगा।
सर्वे त्रिकोणनेतारो ग्रहाः शुभफलप्रदाः।।
स्वोच्चस्थितः शुभफलं प्रकरोति पूर्णम् ।
नीचर्क्षगस्तु विफलं रिपुमन्दिरेऽल्पम्।।
भावाः सर्वे शुभपतियुताः वीक्षिताः वा शुभेशैः।
तत्तद्भावाः सकलफलदाः पापदृग्योगहीनाः।। (सारावली)
अन्य परिहार :-
७ भाव या सप्तमेश या शुभ एवं योगकारक ग्रहो की स्थिति अथवा मंगल या सप्तम स्थान गुरू या शुक्र की दृष्टि हो अथवा सप्तमेश की स्वगृही दृष्टि होने से मंगल दोष का प्रभाव क्षीण हो जाता है।
शुभ योग – सप्तमेश ग्रह उच्चस्थ या स्वमित्रादि की राशि में होकर केन्द्र त्रिकोणादि भावो में स्थित हो तो विवाह में मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
अशुभ योग – सप्तमेश त्रिक में पाप ग्रहयुक्त व पापदृष्ट, नीचराशिगत अथवा अस्तङ्गगत हो तो वैवाहिक जीवन का पूर्ण सुख नहीं मिलता।
यथा दुःस्थे कामपतौ तु पापग्रहगे पापेक्षिते तद्युते।
तज्जाया भवनस्य मध्यम फलं सर्वं शुभं चान्यथा।।
लग्नेश द्वितीयेश पंचमेश अष्टमेश सप्तमेश एवं चन्द्र गुरू शुक्र मंगलादि ग्रहों के बलाबल का विचार करना भी आवश्यक होता है। अतः वर कन्या की कुण्डलिनो का मिलान करते समय दाम्पत्यम् जीवन सुखी एवं सम्पन्न जीवन के लिए मंगल पर ही अत्यधिक बल न देते हुए मेलापक सम्बन्धित अन्य तत्वों का भी सर्वाङ्ग रुप से विवेचन करना चाहिए।
वर्तमान में समाज में मंगल दोष के विषय में कई प्रकार की भ्रांतियां फैल रही हैं। बहुत से लोग मंगल दोष का विशद अध्ययन नही करके केवल एक योगमात्र से लोगों के मन में भय उत्पन्न करते रहते हैं। जिससे ज्योतिष का अपयश होता है, अतः भ्रमित करके ज्योतिष का अपयश ना करे अच्छी प्रकार से विश्लेषण करने के बाद ही हर प्रकार से निर्णय करें।
नोट – यदि आप मंगल दोष का परिहार कर रहे तो मंगल के निमित्त पूजा पाठ भी करवायें तो शुभफल में वृद्धि ही होगी।
ज्येष्ठारौद्रार्यमाम्भःपतिभयुगयुगं दास्रभं चैकनाडी,
पुषयेन्दुत्वाष्ट्रमित्रान्तकवसुजलभं योनिबुध्नये च मध्या।
वाय्वग्निव्यालविश्वोडुयुग युगमथो पौष्णभं चापर स्याद्,
दम्पत्योरेकनाड्या परिणयनमसन्मध्यनाड्यां हि मृत्युः।।
अर्थात् :- ज्येष्ठा, आर्द्रा, उफा, शतभिषा नक्षत्रो से दो – दो नक्षत्र की आद्य नाडी होती है।
पुष्य, मृगशीर्ष, चित्रा, अनुराधा, भरणी, धनिष्ठा, पूषा, पूफा, तथा उभा नक्षत्रो की मध्य नाडी होती है।
स्वाती कृतिका आश्लेषा उषा से दो – दो नक्षत्रो की अन्त्य नाडी होती हैं।
यदि वर वधु दोनों की एक जैसी नाडी हो तो अशुभ होती हैं परन्तु
विशेष यदि दोनों की मध्य नाडी हो तो मृत्यु होती हैं।
दोनों की अलग अलग नाडी हो तो शुभ होती हैं।
ध्यान देने योग्य :-
नक्षत्रैक्ये राश्यैक्ये च नाडी विचारः-
राश्यैक्ये चेद्भिन्नमृक्षं द्वयोः स्यान्नक्षत्रैक्ये राशियुग्मं तथैव।
नाडीदोषो नो गणानां च दोषो नक्षत्रैक्ये पादभेदे शुभं स्यात्।।
अर्थात् :- यदि वर कन्या की एक ही राशि हो परन्तु नक्षत्र भिन्न भिन्न हो अथवा वर कन्या दोनों का एक ही नक्षत्र हो तथा राशि भिन्न भिन्न हो तो नाडी दोष और गणदोष नहीं होता।
यदि वर कन्या दोनों की एक ही राशि हो और एक ही नक्षत्र हो तो तथा नक्षत्र चरण भिन्न भिन्न हो तो भी (नाडी दोष नहीं होता) विवाह शुभ कारक होता है।
मेरे और लेख देखें :- aap ka bhavishya.in, rbdhawan@wordpress.com, guruji ke totke.com, shukracharya.com पर।
Astrological products and astrology course के लिए विजिट कीजिए :- www.shukracharya.com
अधिक जानकारी के लिए अथवा गुरू जी से मिलने के लिए :- गुरू जी के कार्यालय में सम्पर्क करें : 011-22455184, 09810143516
कुंडली मिलान में महत्वपूर्ण है, अष्टकूट मिलान :- Dr.R.B.Dhawan विवाह संस्कार 16 संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है, क्यों की यह केवल संस्कार ही नहीं अपितु दो आत्माओं का मिलन होता है। इस लिये आवश्यक है कि सम्बन्ध जोड़ने से पूर्व विवाह योग्य युवक युवती की जन्म कुंडली में वर्ण,वश्य,तारा,ग्रहमैत्री,नाडी आदि अष्टकूट सम्बन्धी विचार के…