बगलामुखी

बगलामुखी का स्वरूप एवं प्रयोग।

Dr.R.B.Dhawan

(Tap Astrologer in Delhi, best Astrologer in Delhi)

कैसे उत्पत्ति हुई माँ बगलामुखी की :- माता बगलामुखी के स्वरूप में भगवान अर्धनारीश्वर के आलौकिक रूप का दर्शन मिलता है। मस्तक पर तीसरा नेत्र, मणिजड़ित मुकुट पर वक्र चंद्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि, बगलामुखी को महारूद्र की महाशक्ति के रूप में जाना जाता है।

बगलामुखी का शाब्दिक व वैदिक अर्थ वल्गा मुखी है। उसका विकृत आगमोक्त शब्द ‘‘बगला’’ है। इसीलिये माँ बगला को बगलामुखी कहा जाता है। माता बगलामुखी को भ्रामरी, स्तम्मिनी, क्षोमिणी, मोहिनी, संहारिणी, द्रमिणि, जृम्मिणी, रौद्र-रूपिणी, पीताम्बरा माता व त्रिनेत्री देवी भी कहा जाता है।

बगलामुखी देवी का मंत्र सिद्ध करने से ब्रह्मविद्या की प्राप्ति होती है। यह विद्या ब्रह्मास्त्र को भी स्तंम्भन करने वाली विद्या है। मुख्यत: यह स्तम्भन विद्या ‘स्तब्ध माया का मंत्र’ है। इसमें स्तम्भन के अतिरिक्त वश्य की शक्ति भी प्राप्त होती है। इस विद्या को देवर्षि नारद ने संख्यायन को मेरू पर्वत की कन्दरा में उपदेश के क्रम में प्रदान किया जाता था। द्वापर और त्रेता युग में देवता इसी के द्वारा ही कृत्या का प्रयोग करते थे। वे शत्रु पक् इसी विद्या से सूक्ष्म प्रहार करते थे।

बगलामुखी का मंत्र 36 अक्षर का होता है। अतः 3600 या 36000 व 36 के क्रम से ही मंत्र जप के अनुष्ठान विशेष सफलता प्रदायक व सिद्धिप्रदाता होते हैैं।

बगला माता ने स्वयं कहा है कि- जो शारीरिक आरोग्य हेतु अथवा वैरियों के निग्रह के लिये दिन या रात्रि में सहस्त्र (1000) आहुतियाँ मुझे देता है। उसे अति शीघ्र ही सिद्धि की प्राप्ति हो जाती है। मेरे नामों के उच्चारण मात्र करने पर विघ्न देने वाला भाग खड़ा होता है। और भक्त के सभी कार्य सफल हो जाते हैं। जो व्यक्ति मेरे इस स्वरूप को सदा स्मरण रखता है उसे देखते ही शत्रु लोग कपटी तथा कुटिल लोग भय खाते हैं।
बगलामुखी अथर्वा और कृत्या प्रयोग की अधिष्ठात्री देवी हैं।

तांत्रिक लोग बगलामुखी साधना कर अर्थवा और कृत्या प्रयोग की शक्ति का सचंय करते हैं, और जिस का चाहे अनिष्ट कर सकने में समर्थ होते हैं। कलयुग में चमत्कारी प्रभाव दिखाने में यह अग्रणी देवी है। इसकी साधना दो रूपों में की जाती है – द्विभुजी और चर्तुभुजी रूप में। यह विद्या जब दक्षिणाम्नायात्मक होती है जब द्विभुजी होती है

इसके विपरीत उधर्वाम्नायात्मक होने पर चतुर्भुजी होती है। उक्त क्रमानुसार बीजमंत्र व मंत्राक्षर भी निम्न कहे गये हैं। दक्षिणाम्नाय में ह्लीं’ बीज सहित चैंतीस अक्षरीय मंत्र निम्नवत है :- ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय। जिह्नां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।। उक्त मंत्र उधर्वाम्नाय में ब्रह्मस्वरूपिणी बगला होने पर 36 अक्षरीय होता है।

बगलोत्पत्ति का कारण- शिवजी माता पार्वती से कहा ! हे देवेशि। बगलामुखी की उत्पत्ति का मैं वर्णन करता हूँ। हे देवि एक समय सत्युग में भंयकर तूफान आने पर समस्त चराचर नष्ट होने लगा। उस समय शेषशायी भगवान विष्णु अत्यंत चिन्तित हुए तथा महान तपस्या करने लगे। उस तपस्या से महात्रिपुरसुन्दरी अत्यंत संतुष्ट हुई। हरिद्रा नामक सरोवर को देखकर साराष्ट्र (काठियावाड़) में बगलादेवी अत्यंत पीले एवं गहरे उस सरोवर में जलक्रीड़ा करते हुए जिस समय प्रकट हुई उस समय उनका स्वरूप श्रीविद्या से उत्पन्न व सुशोभित था। उस दिन चर्तुदशी और मंगलवार था, एवं पंच मकार से सेवित देवी ने उस दिन अर्धरात्रि में उस गहरे पीले हरिद्रा (सरोवर) में निवास किया और उस रात्रि का नाम वीररात्रि पड़ा तभी से चर्तुदशी मंगलवार के दिन तांत्रिकगण पंच मकार का सेवन करते हैं।

श्री विद्याजनित तेज से दूसरी त्रैलोक्य स्तम्भिनी ब्रह्मास्त्र विद्या उत्पन्न हुई। उस ब्रह्मास्त्र विद्या का तेज विष्णु से उत्पन्न तेज में विलीन हो गया और वह तेज विद्या और अनुविद्या में लीन हुआ।

मंत्रोद्वार प्रकार :-
प्रणवो गगनं पृथ्वी शन्ति बिन्दु युंत बग।
लामुसाक्षो गदी सर्व दुष्टानां वाहृलीन्दु युक्।। 1।।
मुखं पदं स्तम्भयान्ते जिह्नां कीलय वर्णकाः।
बुद्धिं विनाशयान्ते तु बीजं तारोऽग्नि सुन्दरी।। 2।।

षट् त्रिंशदक्षरों मंत्र (1)
1. मंत्रोयथा – ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।

2. अन्योऽपि –
प्रणवं स्थिरमायां च ततश्च बगलामुखि।
तदन्ते सर्वदुष्टानां ततो वाचं मुखं पदम्।। 1।।
स्तम्भयेति ततो जिह्नां कीलयेति पद द्धयम्।
बुद्धिं नाशय पश्चातु स्थिरमायां समालिखेत् ।। 2।।
लिखेच्च पुररोंकार स्नाहेति पदमन्ततः।
षट्त्रिंशदक्षरा विद्या सर्व सम्पत्करी मता।। 3।।

2. मंत्र –
ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।

अन्योऽपि – (3)
प्रणवं पूर्वमुदघृत्य स्थिर मायां ततो वदेत।
बगला मुखि सर्वेति दुष्टानां वाचमेव च।। 1।।
मुखं पदं स्तम्भयेति जिह्नां कीलय बुद्धिमत्।
विनाशयेति तारं च स्थिर मायां ततो वदेत्।। 2।।
वहि प्रिया ततो मन्त्रश्चतुर्वर्ग फलप्रदः।

3. मंत्र –
ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।

मरूतंत्रेऽपि (4) –
षटत्रिंशदक्षरो मंत्रो बगलायाः स उच्यते।
तांर लज्जां च बग-लामुखि सर्व पदं वदेत्।। 1।।
दुष्टानामिति चोच्चार्य वाचम्मुखमधोपदम्।
स्तम्भयेति समुच्चार्य जिह्नां कीलय चेत्यापि।। 2।।
बुद्धिं विनाशायान्ते तु तारं बीजाग्नि सुन्दरी।
अयं मंत्रः समुदिष्टः साध्य नाम्नस्तु वेष्टकः।। 3।।

4. मंत्र –
ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।

तत्रैवेत्थमपि (5)
तारं मायां समुच्चार्य वदेच्च बगलामुखि।
तदन्ते सर्व दुष्टानां ततो वाचं मुखं पदं ।। 1।।
स्तम्भयेति पदं जिह्नां कीलयेति ततः परम्।
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा वेदाग्नि वर्णकाः ।। 2।।

5. मंत्र –
ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।

विशेष:- मंत्र भेदस्तु सुधीभिर्द्रष्टब्योऽन्तिमस्तु चतुस्त्रिंशदक्षरात्मक एव। एकेन केनाप्युक्त मंत्रेण बगला प्रसन्नता सुनिश्चितैक।

बगलामुखी मांत्रिक प्रयोग:-
एवं ध्यात्वा जपेल्लक्षमयुतं चम्पकोद्धवैः।
कुसुमैर्जहुयात् पीठे पूर्वोक्ते पूजयेदिमाम्।। 1।।
इत्थं सिद्धमर्नुमंत्री स्तम्भयेद् देवतादिकान्।
पीतवस्त्रास्तदासीनः पीतमाल्यानुलेपनः।। 2।।

(1) बगलामुखी मंत्र का अनुष्ठान:- स्तम्भन हेतु जब भी कभी बगलामुखी की साधना करें, बगलामुखी का ध्यान कर, एक लाख जप करने के बाद चम्पा पुष्प से हवन कर, सिंहासन पर भगवती बगलामुखी का पूजन करें।। 1।। इस प्रकार मंत्र सिद्ध होने पर साधक सभी देवताओं को अपने वशीभूत कर लेता है।

1.:- ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा।

2.:- ‘पीताम्बरघरो भूत्वा पूर्वाशाभिमुखं स्थितः लक्षमेक जपेन् मंत्रों हरिद्राग्रन्थिमालया।। 1 ।।
ब्रह्मचर्यरतो नित्यं प्रयतो ध्यानतत्परः। प्रियङग्वाश्च रसेनाऽपि पीतपुष्पैश्च होमयेत्।। 2 ।।
जपमंत्र प्रयोगेण मंत्र चाप्ययुंत जपेत्। (तन्त्रान्तरे)
पीतपुष्पैर्यजेद् देवीं हरिद्रोत्थस्रजा जपन।
पीतां ध्यायन् भगवती प्रयोगेष्वयुतं जपेत्।। 3।।
त्रिमध्वक्त-तिलैर्होमो नृणां वश्यकरो मतः।
मधुरत्रितयाक्तैः स्यादाकर्षो लवणैर्धुवम्।। 4।।

(2) मनुष्य स्तम्भन:- स्वयं पीत वस्त्र धारण कर, पीली माला एवं केसरिया चन्दन लगाकर हल्दी की माला से बगलामुखी के प्रयोग में छत्तीस वर्ण वाले बगलामुखी मंत्र का एक लाख जप करें :- ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।) का जप कर, पीत पुष्प से पीत वर्ण वाली बगलामुखी देवी का ध्यान करके पूजन करें।। 2-1-3।।

मधु घृत और शक्कर मिश्रित तिल से हवन करने पर मनुष्य वश में हो जाता है।

आकर्षण:- मधु, घृत, शक्कर सहित नमक से हवन करने पर प्राणी का अवश्य ही आकर्षण हो जाता है, यह प्रयोग अनुभूत सिद्ध प्रयोग है।

तैलाम्भक्तैनिमकर्वपत्रैर्होमो विद्धेषकारकः।
ताल-लोण-दरिद्राभिर्द्धिषा सस्तम्भनं भवेत्।। 5।।
अगयधूमं राजीश्च माहिषं गुग्गुलं निशि।
श्मशानपावके हुत्वा नाशयेदचिरादरीन्।। 6।।
गरूतो गृघ्र काकानां कटुतैलं विभीतकम्।
गृहधूमं चितावह्नौ हुत्वा प्रोच्चाटयेद् रिपून्।। 7।।

कलह-क्लेश के लिये:-
(क) तेल में मिले हुए नीम की पत्ती से होम करने पर आपस में झगड़ा होता है।

(ख) शत्रु स्तम्भन:- ताड़पत्र, नमक युक्त हल्दी की गाँठों से हवन करने पर शत्रु स्तम्भित होता है।। 5।।

(ग) अगरू, राई, भैंस का घी और गुग्गुल इन वस्तुओं से रात्रि में हवन करने से शीघ्र ही शत्रु का नाश होता है।। 6।।

(घ) उच्चाटन:- गिद्ध और कौए के पंख को सरसों के तेल में मिलाकर चिता पर हवन करने से शत्रुओं का उच्चाटन होता है।। 7।।

दुर्वा गुडूची-लाजान्यो-मधुरत्रितयान्वितान्।
जुहोति सोऽरिवलान् रोगान् शमयेद् दर्शनादपि।। 8।।
पर्वताग्र महारण्ये नदीसगंे शिवालये।
ब्रह्मचर्यरतो लक्षं जपेदखिलसिद्धये।। 9।।
एकर्वागगवीदुग्धं शर्करा-मधु-संयुतम्।
त्रिशंत मन्त्रितं पीतं हन्याद विष पराभवम्।। 10।।

(च) रोगनाशक:- शहद तथा चीनी मिले हुए दूब (दुर्बा) और गुरूच एवं धान के लावा से जो हवन करता है। उस के समस्त रोग शांत हो जाते हैं अथवा उस हवन के दर्शन मात्र से रोगी के सारे रोग स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं।। 8।।

(छ) समस्त कार्य साधक:- साधक को समस्त कार्य की सिद्धि के लिये पर्वत की चोटी पर या घनघोर जगंल में या नदी के तट पर अथवा भगवान शिव के मंदिर में ब्रह्मचार्य पूर्वक बगलामुखी पीताम्बरा माता के मंत्र का एक लाख जप करें।।9।।

(ज) शत्रु शक्ति नाशक:- चीनी तथा मधु से युक्त एक रंग की गौ के दूध को बगलामुखी मंत्र से तीन सौ बार अभिमन्त्रित करके, उस दूध का पान करने से शत्रुओं के समस्त सामथ्र्य नष्ट हो जाते हैं।। 10।।

श्वते-पालाश-काष्ठेन रचिते रम्यपादुके।
अलर्करक्तरंजिते लक्षं मन्त्रयेन्मनुनाऽमुना।। 11।।
तदारूढः पुमान् गच्छेत् क्षणेन शतयोजनम्।
पारंद च शिलां तालपिष्टं मधुसमन्वितम्।। 12।।
मनुना मंत्रयेल्लक्षं लिम्पेत्तेनाऽखिलां तनुम्।
अदृश्यः स्यान्नृणामेष आश्चर्य दृश्यतामिदम्।। 13।।

(त) शीघ्र गति कारक:- सफेद पलाश की लकड़ी का खड़ाऊँ बनवाकर उसे लाल रंग से रंगकर चैदह बगला मंत्र से अभिमन्त्रित करके खड़ाऊँ को धारण करने वाला प्राणी एक क्षण में 100 (सौ) कोस चल सकता है।

(थ) अदृश्यकारक:- पारा, शिलाजीत और ताड़पत्र के चूर्ण को मधु (शहद) के साथ शरीर के सभी अंगों में लगाकर चैदह लाख बगुलामुखी मंत्र के जप करने से मनुष्य अदृश्य हो जाता है, अर्थात् मनुष्यों के समक्ष ही अत्यंत आश्चर्यपूर्वक गायब हो जाता है।। 11-13।।

षटकोणे विलिखेद् बीजं साध्यनामान्वितं मनोः।
हरितालं निशाचूर्णैरून्मत्त-रससंयुतैः।। 14।।
शेषाक्षरैः समावीतं धरागेहविराजितम्।
तद् यंत्रं स्थापितं प्राण पीतसूत्रेण वेष्टयेत्।। 15।।
भ्राम्यत्-कुलालचक्रस्था गृहीत्वा मृतिका तथा
रचयेद् वृषभं रम्यं यंत्र तन्मध्यतः क्षिपेत्।। 16।।
हरितालेन संलिप्य वृषं प्रत्यहमर्चयेत्।
स्तम्भयेद् विद्धिषां वांच गति कार्य परम्पराम्।। 17।।

(द) शत्रु समस्त कार्यरोधक:- कालेे धतूरे के रस एवं निशाचूर्ण से हरिताल को घोंटकर षटकोण यंत्र में बीज मंत्र तथा अपने शत्रु नाम के पूरे अक्षर को लिखकर, उस यंत्र को पीले डोरे से लपेटकर अपने घर में रख दें।

(ध) कुम्हार के चाक की मिट्टी को लेकर उस मिट्टी से एक सुन्दर बैल की आकृति बनाकर (मूर्ति) बनाकर उस मूर्ति के मध्य यंत्र को रखें और चैदह दिन तक उस मूर्ति पर हरताल का लेपनकर उस बैल का चैदह दिनों तक पूजन करने से शत्रु की वाणी गति आदि समस्त कार्य रूक जाते हैं।। 16-17।।

आदाय वामहस्तेन प्रेत भूमिस्थ-खर्परम्।
अंगारेण चितास्येन तंत्र यंत्र समालिखेत्।। 18।।
मन्त्रिंत निहिंत भूमौ रिपूणां स्तम्भयेद् गतिम्।
प्रेतवस्त्रे लिखेद् यन्त्रमंगरेणैव तत्पुनः।। 19।।
मण्डूकवदने न्यस्य पीतवस्त्रेण वेष्टितम्।
पूजितं पीतपुष्पैस्तद्धांच संस्तम्भयेद् द्विषाम्।। 20।।

(ट) शत्रु गतिस्तम्भन:- बायें हाथ से श्मशान भूमि स्थित मनुष्य की खोपड़ी लेकर चिता के अंगार से उस खोपड़ी में षट्कोण यंत्र का निर्माण कर, बगलामुखी मंत्र से अभिमन्त्रित कर उसे पृथ्वी में गाड़ देने से शत्रु की गति का स्तम्भन होता है।

(ठ) शत्रुवाणी रोधक:- मृतक के कपड़े पर चिता के अंगार से यंत्र निर्माण कर उसे मेढ़क के मुख में रखकर फिर मेढक सहित उस यंत्र को पीले कपड़े में लपेटकर पीत पुष्प से पूजन करने से शत्रु की वाणी का स्तम्भन होता है।। 10-20।।

(ड) जल प्रवाह स्तम्भन:- सात बार इन्द्र एवं वरूण मंत्र से अभिमन्त्रित कर बगलामुखी यंत्र को बाढ आए हुए जल में फेंक देने से तक्षण बढती हुई बाढ रूक जाती है।

(ढ) अतिवृष्टि स्तम्भन:- जहाँ पर अत्यंत घरघोर बृष्टि (वर्षा) हो रही हो उस स्थान पर बगुलामुखी का षटकोण यंत्र लिखकर उसको वृषा पत्र द्वारा मार्जन करने से अतिवृष्टि (घनघोर वर्षा) रूक जाती है।

अब मैं पाठको के लिये कहाँ तक बगला माता के मंत्रों का वर्णन करू मंत्र तथा उपाय पीताम्बरा माता के अनन्त है। जिन सब का यहाँ वर्णन कर पाना असम्भव है। जितना वर्णन किया जा चुका है, उसको भली-भाँति करने से शत्रु की गति, बुद्धि आदि का स्तम्भन अवश्य हो जाता है। मैं महा ब्रह्मशक्ति, ब्रह्मास्त्र तथा अचूक शस्त्र माता बगलामुखी का साधक होने के नाते पीताम्बरा माता बगलामुखी को बारम्बार नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ। तथा भूल-चूक के लिये माँ बगलामुखी से बारम्बार क्षमा याचना के साथ लेख समाप्त करता हूँ।

विशेष :- बगलामुखी प्रयोग बहुत उग्र प्रयोग है, इस प्रयोग को करने के समय अत्यंत सावधानी की आवश्यकता होती है, अत: बिना गुरु की अनुमति लिये प्रयोग बिल्कुल नहीं करें। अथवा गुरू की देखरेख में ही करें।

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बगलामुखी का स्वरूप एवं प्रयोग। Dr.R.B.Dhawan (Tap Astrologer in Delhi, best Astrologer in Delhi) कैसे उत्पत्ति हुई माँ बगलामुखी की :- माता बगलामुखी के स्वरूप में भगवान अर्धनारीश्वर के आलौकिक रूप का दर्शन मिलता है। मस्तक पर तीसरा नेत्र, मणिजड़ित मुकुट पर वक्र चंद्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि, बगलामुखी को महारूद्र की…