त्राटक tratak

त्राटक साधना tratak sadhna

Dr.R.B.Dhawan (गुरूजी) Astrologer, Astrological Consultant, specialist : marriage problems, top best astrologer in delhi,

त्राटक tratak एक यौगिक क्रिया या साधना है, त्राटक कहते हैं बिना पलक झपके एकटक किसी वस्तु या व्यक्ति की ओर देखते रहने को, यह मन को एकाग्र और केन्द्रित करने के लिये बहुत उपयोगी साधना है, मन को एकाग्र करना ही मनुष्य के लिये सब से कठिन कार्य है। मन की शक्ति आपार है इस शक्ति को यदि ठीक प्रकार से समझकर प्रयोग किया जा सके तो मनुष्य ऐसे-ऐसे आश्चर्य जनक कार्य करने लगता है जिनके परिणाम भौतिक अविष्कारों से भी अधिक महत्व के हो सकते हैं, तथा लौकिक व अलौकिक सिद्धियाँ भी प्राप्त हो सकती हैं, जिनका प्रयोग कर साधक एक महान विभूति की तरह सम्मानित हो सकता है।

साधारण मनुष्य के मन में एक पल में सैकडों विचार आते हैं, और वे सैकडों विचारों पर एक समय में विचार नहीं कर सकता। अतः वे सभी विचार निरर्थक हो जाते हैं, यदि उनमें से मानव मस्तिष्क दो चार विचार चुन लेता है, फिर यह निर्णय करता है कि इनमें से कौन सा विचार ठीक है? कौन सा गलत है? परंतु इसमें भी वह सही या गलत का चुनाव नहीं कर पाता, तब वह असमजस की स्थिति में रहता है, कोई भी कार्य नहीं कर पाता। क्योकि उसका agyachakra आज्ञाचक्र उसकी सहायता इस कार्य में नहीं करता। यदि उसका आज्ञाचक्र सही चुनाव करने में सहायता करे तब क्या हो? तब वह हर उस विचार की बखूबी पहचान कर लेगा जो उसके लिये विशेष उपयोगी हो सकता है।

ऐसी स्थिति में वह साधक एक दिन ऐसी विभूति के रूप में उभरेगा कि- हजारों लोगों को मार्गदर्शन देगा। यह तभी संभव है जब वे अभ्यास के द्वारा अपना आज्ञाचक्र जगा ले, इसके लिये सर्वोंत्तम यौगिक क्रिया मैं त्राटक को मानता हूँ। क्योकि मैं मानता हुँ कि, त्राटक एकमात्र वह यौगिक क्रिया है, जिससे द्वारा साधक आज्ञाचक्र agyachakra पर तो विजय पा ही सकता है इस के अतिरिक्त प्रकृति के अनेक रहस्यों का ज्ञान भी उसे धीरे-धीरे होने लगता है। वस्तुतः यह आज्ञाचक्र मानव शरीर में दोनो भ्रकुटियों के मध्य में एक महत्वपूर्ण ग्रन्थि है, जो कि अन्य चक्रों की तरह लगभग सुप्तावस्था में ही रहती है, जिसके क्रियाशील हो जाने पर साधक अपने ही नहीं दूसरों के भविष्य में भी झाँक सकता है। वे जान सकता है- उसके सामने वाले के मन में क्या चल रहा है? वे जान सकता है- कौन उसके लिये भविष्य में कैसे काम आ सकता है। कौन उसके प्रति कैसे विचार रखता है। आने वाले समय में किस प्रकार की योजना उसे सफलता के शिखर तक ले जा सकती है। यहां तक की- उसके आस पास किस प्रकार की विचार धारायें अथवा अशरीरी आत्मायें भ्रमण कर रही हैं, वह उसके लिये किस प्रकार से सहायक हो सकती हैं? अथवा उनसे किस प्रकार कोई जनहित का कार्य करवाया जा सकता है? यह सभी कुछ तभी संभव है जब सुप्त आज्ञाचक्र को जगा लिया जाये, जब इस चक्र को सिद्ध कर लिया जाये। त्राटक tratak का अभ्यास सहज है, और इस चक्र को सिद्ध करने के लिये यह बहुत ही उपयोगी और सरल मार्ग है, सरल यौगिक क्रिया है।

कैसे करें त्राटक का अभ्यास?- एक सफेद रंग के कागज में एक रूपये के सिक्के जितना बडा और गोल छेद कर लें इस छेद को कागज के पीछे से एक काले कागज को चिपकाकर बंद कर दें, आगे से देखने पर काले रंग की एक गोल बिन्दी दिखाई देगी, अब इस गोल काली बिन्दी में बीचोबीच एक काली मिर्च के आकार का सफेद रंग से निशान बना लें बस इसी काले निशान पर ही आप की दृष्टि रहेगी। एक दूसरे प्रकार के अभ्यास में यही काले निशान वाली सफेद बिन्दी एक दर्पण पर भी चिपका सकते हैं, इस सफेद कागज अथवा दर्पण को अपने से दो फुट के फासले पर ऐसे टांग दें कि काला बिन्दु बिल्कुल आपकी आंखों के सामने पड़े और इस काले बिन्दु को पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर स्थिर दृष्टि से देखने का अभ्यास करें।

दाहिने नेत्र में काल का, बायें नेत्र ने शक्ति का और शिव नेत्र (भृकुटि में) ब्रह्म का निवास है। शिव नेत्र से विचार उत्पन्न होता है। दाहिने नेत्र से इच्छा पैदा होती है और बांये नेत्र से क्रिया उत्पन्न होती है। पद्मासन से बैठो, नेत्रों को बंद करो, जीभ को तालु की ओर चढ़ा लो, अपने ध्यान को दोनों भृकुटियों के मेल के स्थान से (अर्थात् नाक की जड़ से) दो अंगुल ऊपर भू्रमध्य पर जमाओ, यह ध्यान सिर के बाहरी भाग पर न होना चाहिए। (आज्ञाचक्र पर) ध्यान के समय शिवमंत्र (ॐ नमः शिवाय) का मन से जाप करना चाहिए। ऐसा करने से धीरे-धीरे मन स्वयं एकाग्र हो जाता है और साधक का दिव्यचक्षु खुल जाता है, उसको सब स्थानों की घटनाएं दिखलाई पड़ने लगती हैं, और देव-दर्शन प्राप्त होता है। अभ्यास के समय जो विचार या दृश्य ध्यान में आये उसे प्रभु का छद्मवेश समझो, उसे भी प्रभु ही मानों, ब्रह्ममय मानो जो कुछ भी लीलायें आप ध्यान में देखें या समझें ऐसा समझें कि वह क्रियाएं आप प्रभु के साथ ही कर रहे हैं। ऐसा करने से प्राण स्थिर होकर ब्रह्मनाद भी सुनाई देगा, ब्रह्मनाद दाहिने कर्ण में सुनाई देता है, सद्गुरु भी दाहिने ही कान में मंत्र फूंकते हैं, ब्रह्मनाद brahmnad का दूसरा नाम परा है।

त्राटक tratak करने से आरम्भ में उष्णता के कारण आंखों से गरम पानी जायेगा, उसे जाने दे, बंद न करें लगभग एक सप्ताह के अंदर ही पानी का जाना बंद हो जावेगा, पानी से यदि आंखें बीच में ही बंद हो जायें तो कोई हर्ज नहीं, आंखें पोंछकर फिर से अभ्यास आरंभ करे, चित्तवृत्ति को स्थिर करके बिना पलक गिराये, जितनी अधिक देर तक अभ्यास किया जा सके उतना ही अधिक लाभप्रद होगा। पहले प्रतिदिन दस पन्द्रह मिनट ही अभ्यास करें, पीछे धीरे-धीरे घंटा सवा घंटे तक का अभ्यास बढ़ा लें, जब आधे घंटे तक चित्त को स्थिर रखकर बिना पलक गिराये एकाग्र दृष्टि से देखने का अभ्यास हो जाता है तब इष्टदेवता के दर्शन होते हैं, और अनेक चमत्कार दीखाई पड़ने लगते हैं, लेकिन साधक को चाहिए कि इन चमत्कारों में न पड़कर भगवत्स्वरूप की भावना को ही दृढ़ रखकर उसका प्रत्यक्ष होते ही उसमें तन्मय हो जायें, उसी में लीन हो जायें। यदि पलकों पर अधिक तनाव प्रतीत हो तो पलकों पर जोर देकर भौंहाें को कस दें, इससे आंखें अधिक देर तक खुली रहेंगी।

बहुत अभ्यास हो जाने के पश्चात् बिन्दु ज्योतिर्बन्दु, भृकुटि (भू्रमध्य) या नासाग्र पर स्थिर दृष्टि से अभ्यास करना बहिर्मुख (बाह्य) त्राटक कहलाता है। हृदय अथवा भू्रमध्य में नेत्र बंद रखकर एकाग्रता पूर्वक चक्षुवृत्ति की भावना करने को अन्त:त्राटक कहते हैं। इन अन्त:त्राटक और ध्यान में बहुत समानता है। भ्रुमध्य में त्राटक करने से आरंभ में कुछ दिनों तक सिर में दर्द हो जाता है तथा नेत्र को बरौनी में चंचलता प्रतीत होने लगती है, परन्तु कुछ दिनों के पश्चात् नेत्रवृत्ति में स्थिरता आ जाती है, हृदय प्रदेश में वृत्ति की स्थिरता के लिए प्रयत्न करने वालों को ऐसी प्रतिकूलता नहीं होती।

त्राटक के बाद आंखों को इधर उधर ऊपर नीचे घुमाकर कुच्छ समय तक देखने का अभ्यास करना चाहिए ताकि आपकी दृष्टि बाईं और स्थिर रहे, बाईं ओर देखने से दिमाग कमजोर नहीं होता, त्राटक के बाद अंखों को गुलाब जल से धो लिया करें, इससे नेत्रों को तरावट मिलती है। प्रारंभ में त्राटक करने से शीघ्र थकावट हो जाती है, थक जाने पर आंखें बंद कर लें और त्राटक करें, अंतर त्राटक से संयम सिद्ध होती है, यह षटचक्रों पर, इष्ट पर, बीजमंत्र या यंत्र पर भी किया जाता है। इस त्राटक में संयम सिद्धि का लक्षण है। वास्तव में त्राटक का अनुकूल समय रात्रि के दो से पांच बजे तक है शांति के समय चित्त की एकाग्रता बहुत शीघ्र होने लगती है। त्राटक के अभ्यास के समय मुुंह बंद रखिये, परन्तु दांत छू न जाये, जीभ न ऊपर लगे न नीचे, मुख के अंदर उसकी नोंक खड़ी कर दीजिए, आपका मन स्थिर हो जायेगा।

सुखासन में (जिसे जिस आसन का अभ्यास हो) बैठकर मस्तक, गर्दन, पीठ और उदर बराबर सीधे रख, अपने शरीर को सीधा करके बैठें, इसके बाद नाभि मण्डल में (तोंद की जगह) दृष्टि जमाकर कुछ देर तक पलक न झपकें। नाभि स्थान में दृष्टि और मन रखने से मन स्थिर होता जायेगा। इसी भाव में नाभि के ऊपर दृष्टि और मन लगाकर बैठने से कुछ दिन के बाद मन स्थिर होगा, मन स्थिर करने का ऐसा सरल उपाय दूसरा और नहीं है।

यदि आसन स्थिर न होता हो तो- भूत और भविष्य के कृत एवं कर्तव्यों को भुला कर अपने फण पर पृथ्वी धारण किये हुए शेषनाग का ध्यान कीजिए, आसन स्थिर चित्त रहने का यह चमत्कारी प्रयोग है। एक चम्मच कच्ची हल्दी का चूर्ण कुछ दिन तक एक पाव गर्म मीठे दूध के साथ लेने से नाड़ियां मुलायम पड़ जाती हैं और आसन लगाने में सुविधा हो जाती है। बैठने से जिस अंग में दर्द महसूस हो तो उसके नीचे नरम टुकड़ा (कपड़े की गद्दी बना) रखकर उस पर बैठ कर अभ्यास करें, ज्यादा दर्द हो तो वहां रतनजोत के तेल की मालिश कर लें। आसन के लिए चैकी हो, उस पर कुशासन, उसके ऊपर ऊनी या सूती आसन लगाकर पद्मासन, सिद्धासन जो भी आसन आपको सुखदायक हो उसी में बैठने का अभ्यास करें। योग साधक से मूलबंध लगाने की विधि समझकर मूलबंध हर समय (चलते-फिरते उठते-बैठते) लगाये रखने का सतत् अभ्यास करना चाहिए। यदि कोई साधक 3 घंटे लगातार आराम से पद्मासन या सिद्धासन पर बैठने का अभ्यास कर लें तो नाड़ी-विजय हुई समझो, उसकी कुण्डलिनी शक्ति स्वतः ही जागृत हो जावेगी।

त्राटक साधना के लिए उपयोगी सुझाव- योगाभ्यास, ध्यान, भजन आदि को आरंभ करने के पूर्व सुषुम्ना स्वर चला लेना चाहिए। नासिका के अग्रभाग के मध्य में नौक पर ‘ॐ’ का मानसिक जप करते हुए ध्यान जमाने से सुषुम्ना स्वर चल जाता है, इसी तरह बायीं ओर के नथुने पर ध्यान जमाने से बायां और दायें नथुने पर ध्यान जमाने से दायां स्वर अपनी इच्छानुसार चलाया जा सकता है। ध्यान के समय बसंती रंग का कपड़ा पहनने से ध्यान अच्छा लगता है। ध्यान में नींद आने पर आंखें खोल दें। त्राटक करें या आंखें खोलकर प्राणायाम सहित जप या केवल कुम्भक करें अथवा आंखें खोलकर अंतर मौन या केन्द्रों में संयम (अर्थात् चित्त संचार) करें। याद रखिये संयम का अर्थ होता है मन को केन्द्रित करना। ध्यान के बाद सोना नहीं चाहिए, ध्यान के बाद यदि निद्रा आ भी जाये तो भी नहीं सोना चाहिए, उसे किसी भी उपाय से दूर हटाओ।

त्राटक साधना के लिए सही समय- प्रतिदिन प्रातः 3 बजे से 6 बजे तक साधना के सब अभ्यास करो। प्रातः 6 बजे से रात आठ बजे तक नौकरी व्यवसाय तथा अन्य गृह कार्य करें, रात्रि में 8 बजे से 10 बजे तक पुनः साधना करें।

विचार रोको, चित्त को शून्य करना यही अन्तरमौन का तरीका है। अन्तरमौन के अभ्यास का सर्वोत्तम समय है- प्रातः 4 से 6, ठीक इसी समय स्वस्थ मनुष्य की सुषुम्ना चलती है, इस समय साधक बड़ी आसनी से अपने मन को खाली (वृत्ति-रहित, शून्य) कर सकता है, यही समय (जब सुषुम्ना में स्वर चले) यही समय अभ्यास के लिए उत्तम है, गुरु से योग-निन्द्रा द्वारा आदेश प्राप्त करने के लिए भी यह समय उपयुक्त है।

त्राटक साधना के प्रयोग :-
स्वप्न नियंत्रण- स्वप्न नियंत्रण का अर्थ यही है कि आज रात में अमुक प्रकार का स्वप्न ही हम देखें, यह निश्चय करके सो जायें, इस प्रकार अभ्यास से जब स्वप्न स्थिति का नियंत्रण हो जायेगा, तब ऐसी भावना करना आरंभ करें कि आज स्वप्न की स्थिति में हमारा प्राणमय शरीर, अन्नमय शरीर के बाहर अमुक स्थान में आ जाये, ऐसी दृढ़ भावना करके सोने का अभ्यास करें। इस अभ्यास से यह अनुभव होगा कि प्राणमय शरीर संकल्प के अनुसार सतत स्थान में पहुंचता है, साधक गहन अभ्यास के बाद यह अनुभव दूसरों को भी करा सकता है, प्रबल संकल्प बल से स्थूल पदार्थ भी स्पर्श शक्ति के बिना हिलाये जा सकते हैं, इस अभ्यास से परकाया प्रवेश भी हो सकता है।

त्राटक का दूसरों पर चुम्कीय प्रभाव होता है- दूसरों पर त्राटक सिद्ध साधक की दृष्टि का प्रभाव डालने के ‘दो मुख्य केन्द्र है-‘ भ्रुमध्यभाग और भ्रुमध्य के ठीक पीछे का स्थान (जहां चोटी रखी जाती है यह आज्ञाचक्र का स्थान होता है। प्रयोग को पहले प्रयुक्त (जिस पर प्रयोग किया जाये) के मस्तक के पीछे आज्ञाचक्र के स्थान पर 5-10 मिनट तक त्राटक करना चाहिए। फिर आज्ञायें देते समय अपनी दृष्टि प्रयुक्त के भ्रुमध्य पर टिकाये रखना चाहिए। सामने से त्राटक करते समय प्रयुक्त की आंखें में तीव्र दृष्टि से अपनी आज्ञा को मानसिक वाणी में दुहराते हुए देखना चाहिए। यदि प्रयुक्त अपनी आंखें बंद कर ले तो उसके भू्रमध्य पर त्राटक करना चाहिए, त्राटक करते समय अपनी संकल्प शक्ति के साथ आज्ञाओं का मुंह से उच्चारण करते हुए मन से तीन-चार बार दोहराना आवश्यक है, ऐसा करने से त्राटक का प्रभाव तुरंत होता है, प्रयुक्त अथवा माध्यम को योग निन्द्रित अथवा हिप्नोटाइज करने में यह क्रिया अधिक प्रभावकारी है।

मस्तिष्क के पिछले भाग में लालिमा लिए हुए भूरे रंग का कोनीला अवयव है जिसे पीनियल ग्लैंड कहते हैं। इसको हम जीव का दूरानूभवी लगाव का अवयव भी कह सकते हैं, इसी के द्वारा मस्तिष्क उन कम्पनों द्वारा अंकन ग्रहण करता है जो दूसरों के विचारों से उत्पन्न होते हैं। क्योंकि विचार कम्प स्थूल शरीर के पदार्थों को वैसे ही भेद जाते है। जब कोई मनुष्य विचार करता है, तो वह आस-पास के आकाश में कम्प उत्पन्न करता है जो ठीक उसी भांति सब और प्रवाहित होते हैं, जैसे प्रकाश के कम्पन अपने उत्पत्ति स्थान से सब ओर प्रवाहित होते हैं। ये कम्पन दूसरे मस्तिष्क के दुरानुभवि अवयव से टकरा कर ऐसी मस्तिष्क क्रिया उत्पन्न करते हैं जिससे गृहिता के मस्तिष्क में उस विचार का उदय हो जाता है। यह उदित विचार अवस्था के अनुसार चेतना क्षेत्र में आ सकता या प्रवृत्ति मानस ही में पड़ा रह सकता है।

दूर संदेश या दूरानुभूति- दूरानुभूति वह क्रिया है, जिसमें कोई चेतना या अचेतना पूर्वक उन कम्पों या विचार लहरों को ग्रहण करता है, जो चेतना या अचेतना पूर्वक दूसरों के मनों से चलाई गई है, इस प्रकार दो या अधिक मनुष्यों के बीच इच्छा-पूर्वक विचार परिवर्तन ही दूरानुभूति है, और उसी प्रकार जब कोई मनुष्य दूसरे मनुष्यों द्वारा प्रवाहित आकाशगत अनिश्चित विचार-लहरों को ग्रहण कर लेता है तो वह भी दूरानुभूति ही हैं। विचार-लहरें प्रखरता और बल में भिन्न-भिन्न प्रकार की हुआ करती हैं, इन लहरों के प्रवर्तक या गृहिता अथवा दोनों की एकाग्रचित्तता प्रवर्तन के बल तथा गृहण को स्पष्टता और सहीपन को प्रखर करती है। यह अवयव पिंटेल ग्लैंड यौवनस्थों की अपेक्षा बच्चों में बड़ा होता है और यौवनस्थों में भी पुरुषोें की अपेक्षा स्त्रियों में अधिकतर पुष्ट होता है, यही वजह है कि त्राटक का असर पुरुषों की अपेक्षा बच्चों तथा स्त्रियों में अति शीघ्र होता है।

छाया चित्र सिद्धि- जब त्राटक साधना का बहुत अभयास हो जाये तब, किसी का छाया चित्र लो, उसकी भ्रुकुटी पर ध्यान लगाओ, विचार रोको और तुम्हें सब प्रत्यक्ष हो जावेगा, वे इस समय कहां है, क्या कर रहा है। परंतु यह अभ्यास सरल नहीं कष्टसाध्य है।

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