विषकन्या योग

विषकन्या का उल्लेख प्राचीन साहित्य में अनेक जगह मिलता है, विषकन्या को राजकीय उद्देश्य से शत्रु के पास भेजा जाता था।

Dr.R.B.Dhawan (top best astrologer in delhi)

ज्योतिष शास्त्र में पूर्वजन्म कृत कर्मफलों का स्पष्ट विवरण शामिल किया गया है। जिस प्रकार किसी स्त्री की जन्मकुण्डली में गजकेसरी योग, उसके दाम्पत्य की खुशहाली तथा सामंजस्य वृद्धि के साथ उसकी समृद्ध स्थिति की गारंटी देता है, ठीक इसके विपरीत विषकन्या योग पति-पुत्रहीना, सम्पत्ति हीना, सुख की न्यूनता आदि की गारंटी देता है।

कब बनता है विषकन्या योग?:-
स्त्री की कुण्डली में विषकन्या योग के सृजन के लिए निम्नलिखित छः परिस्थितियां ज़िम्मेदार है:-

1. अश्लेषा तथा शतभिषा नक्षत्र, दिन रविवार, द्वितीया तिथि के योग में जन्म होना।

2. कृतिका अथवा विशाख़ा अथवा शतभिषा नक्षत्र दिन रविवार, द्वादशी तिथि के योग में जन्म होना।

3. अश्लेषा अथवा विशाखा अथवा शतभिषा नक्षत्र, दिन मंगलवार, सप्तमी तिथि के योग में जन्म होना।

4. अश्लेषा नक्षत्र, दिन शनिवार, द्वितीया तिथि के योग में जन्म होना।

5. शतभिषा नक्षत्र, दिन मंगलवार, द्वादशी तिथि के योग में जन्म होना।

6. कृतिका नक्षत्र, दिन शनिवार, सप्तमी या द्वादशी तिथि
इसके अलावा यदि स्त्री की कुण्डली में सप्तम स्थान में पापी व क्रूर ग्रहों की बैठकी हो साथ ही क्रूर अथवा पापी ग्रहों की उन पर दृष्टि भी पड़ रही हो, तो ऐसे योग में विषकन्या जन्म जैसा प्रभाव ही दिखाई देता है।

वस्तुतः विषकन्या योग इसे नाम ही इसलिए दिया गया कि ऐसी कन्या के सम्पर्क में आने वाले लोगों को दुर्भाग्य समेट लेता है। उसके पिता-माता-भाई को कष्ट सहित उसके ससुराल वालों को समस्याएं घेर लेती हैं। जब तक ऐसी कन्या का विवाह नहीं हो जाता तब तक इस योग का असर कम रहता है किंतु जैसे ही वह विवाह बंधन में बंधती है, तो सर्वप्रथम वह दाम्पत्य में खटपट की शिकार होती है, तत्पश्चात पति और फिर संतान से हाथ धोती है। इसके साथ ही इस कुयोग का एक परिणाम अप्रत्याशित लांक्षन के रूप में भी सामने आता है। यानि ऐसी स्त्री को समय-समय पर कलंक का भी सामना करना पड़ता है।

विषकन्या योग खंडन:-
यदि ऐसी जातिका जिसकी कुण्डली में विषयोग निर्मित हुआ हो, उसके जन्मचक्र में सप्तम स्थान को शुभ ग्रह देख रहे हों, अथवा सप्तमेश सप्तम भाव में ही बैठा हो तो इस कुयोग का प्रभाव सीमित हो जाता है। इसके अलावा यदि जातिका की कुण्डली में विषकन्या योग के साथ ही गजकेसरी योग भी बन गया हो तो ऐसी दशा में विषकन्या योग का प्रभाव उसकी जिंदगी को प्रभावित नहीं करेगा।

विषकन्या योग शोधन रीति:-
जब भी कुण्डली में ऐसा योग दृष्टिगत हो तो सर्वप्रथम उस कन्या से वटसावित्री व्रत रखवाएं, विवाह पूर्व कुम्भ, श्रीविष्णु या फिर पीपल/शमी/बेर वृक्ष के साथ विवाह सम्पन्न करवाएं। इसके साथ सर्वकल्याणकारी विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ आजीवन करवाएं। बृहस्पति देव की निष्ठापूर्वक आराधना भी कल्याणकारी सिद्ध होती है। ध्यान रहे कि तंत्रशास्त्र की गोपनीय रीति से विषकन्या योग का पूर्ण परिमार्जन संभव है किंतु ये विद्या सामान्य साधक के लिए अनुमन्य नहीं है।

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विषकन्या का उल्लेख प्राचीन साहित्य में अनेक जगह मिलता है, विषकन्या को राजकीय उद्देश्य से शत्रु के पास भेजा जाता था। Dr.R.B.Dhawan (top best astrologer in delhi) ज्योतिष शास्त्र में पूर्वजन्म कृत कर्मफलों का स्पष्ट विवरण शामिल किया गया है। जिस प्रकार किसी स्त्री की जन्मकुण्डली में गजकेसरी योग, उसके दाम्पत्य की खुशहाली तथा सामंजस्य…