श्रीसूक्त

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant), top best astrologer in India

धन-धान्य की समृद्धि, दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि की बौद्धिक, आर्थिक तथा पारिवारिक उन्नति कौन नहीं चाहता?परिवार हमेषा सम्पन्न रहें किसी प्रकार का आर्थिक आभाव न रहे परिजनों का स्वास्थ्य सदा ठीक रहे। इन कामनाओं की पूर्ति के लिये श्रीसूक्त का पाठ हमेषा नित्य करना चाहिये। यदि नित्य न कर सकें तो कार्तिक मास में प्रतिदिन अवष्य करना चाहिए। यदि आप यह पाठ कार्तिक मास में भी नित्य नहीं कर सकते तो दीपावली की रात्रि में यह पाठ आवष्य प्रारम्भ करें। नित्यकर्म से निवृत्त होकर शुद्ध आसन पर पद्मासन लगा कर बैठें। अपने सामने एक लकडी की चैकी पर पीला रेषमी वस्त्र बिछाकर स्फटिक श्रीयंत्र चांदी अथवा ताम्र की छोटी सी थाली में स्थापित करें। (यदि स्फटिक श्री यंत्र न हो तो तांबे अथवा चांदी के बने श्रीयंत्र) को अपने समक्ष उच्च आसन पर स्थापित कर पुष्प, धूप, दीप नैवेद्य आदि से पूजन कर लक्ष्मीजी का ध्यान करें-

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी
गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तराया।
लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भै-
र्नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता।।

ध्यान के उपरांत दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें-

देशकालौ संकीत्र्य मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य नित्यकल्याण प्राप्त्यर्थ महालक्ष्मी प्राप्त्यार्थ विपुल लक्ष्मी प्राप्त्यार्थ सर्वदा मम गृहे लक्ष्मी निवासार्थ च श्रीमहालक्ष्मी देव्याः प्रोत्यर्थश्रीसूक्तस्य पाठमहं करिष्ये।

संकल्प पाठ के उपरांत जल भूमि पर छोड़ दें।
संकल्प के उपरांत परिवार के साथ बैठकर षांत भाव से ऋणमोचक श्रीसूक्त का पाठ आरम्भ करें-

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रनाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।1।।

हे जातवेद (अग्निदेव)! स्वर्ण के समान पीतवर्ण वाली तथा किचिंत् हरितवर्ण वाली हरिणी रूपधारिणी, सुवर्णमिश्रित रजत की माला धारण करने वाली, चांदी के समान धवल पुष्पों की माला धारण करने वाली, चन्द्रमा के सदृश प्रकाशमान तथा चन्द्रमा की तरह संसार को प्रसन्न करने वाली, चंचला हिरण्य के समान रूपवाली तथा हिरण्यमय जिसका शरीर है, ऐसे गुणों से युक्त लक्ष्मी को मेरे लिए बुलाओ।।1।।

तां म आ व ह जातवेदो लक्ष्मी मनप गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्।।2।।

हे जातवेदा अग्निदेव! आप उन जगत् प्रसिद्ध लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाओ जिनके आने पर मैं सुवर्ण, गौ, अश्व और पुत्र-पौत्रादि को प्राप्त करूं।।2।।

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप हव्ये श्रीर्मा देवी जुषतमा्।।3।।

जिस देवी के आगे घोड़े और मध्य में रथ है ऐसे रथ में बैठी हुई हाथियों के निनाद से संसार को प्रफुल्लित करने वाली, देदीप्यमान एवं समस्त जनों को आश्रय देने वाली लक्ष्मी को मैं अपने सम्मुख बुलाता हूं।
दीप्यमान तथा सबकी आश्रयदाता वह लक्ष्मी मेरे घर में सर्वदा निवास करे।।3।।

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामाद्र्रां ज्वलन्तां तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोप हव्ये श्रियम् ।।4।।

जिसका स्वरूप, वाणी और मन का विषय न होने के कारण अवर्णनीय है तथा जो मंद हास्ययुक्ता है, जो चारों ओर सुवर्ण से ओत-प्रोत है एवं दया से आर्द्र हृदय वाली स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तों के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली, कमल के ऊपर विराजमान, कमल के सदृश गृह में निवास करने वाली संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूं।।4।।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणंप्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।।5।।

चन्द्रमा के समान प्रकाश वाली, प्रकृत कान्ति वाली, अपनी कीर्ति से देदीप्यमान, स्वर्ग-लोक में इन्द्रादि देवों से पूजित, अत्यंत दानशीला, कमल के मध्य में रहने वाली, सभी की रक्षा करने वाली एवं आश्रयदात्री, जगद्विख्यात लक्ष्मी! आपकी कृपा से मेरी दरिद्रता नष्ट हो। तुम्हारा आश्रय लेता हूं।।5।।

आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।।6।।

हे सूर्य के समान कान्तिवाली! आपके तेजोमय प्रकाश से बिना पुष्प के फल देने वाला बिल्व का वृक्ष उत्पन्न हुआ। उस बिल्ववृक्ष का फल मेरी बाह्य और आभ्यन्तर की दरिद्रता को नष्ट करे।।6।।

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।।7।।

हे लक्ष्मी! श्री महादेव के सखा कुबेर, इन्द्रादि देवताओं की अग्नि मुझे प्राप्त हो एवं मणि के साथ कुबेर के मित्र मणिभद्र के साथ या रत्नों के साथ, कीर्ति अर्थात् दक्षकन्या या कुबेर की कोषशाला का यश मुझे प्राप्त हो अर्थात् धन और यश दोनों ही मुझे प्राप्त हों। मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूं, अतः हे कुबेर! आप यश और ऐश्वर्य मुझे प्रदान करें।।7।।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुदमे गृहात्।।8।।

भूख तथा प्यास रूप मल को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी दरिद्रता का मैं नाश करता हूं अर्थात् दूर करता हूं। हे लक्ष्मी! आप मेरे घर से अनैश्वर्य तथा धनवृद्धि के प्रतिबंधक विघ्नों को दूर करें।।8।।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप हव्ये श्रियम्।।9।।

सुगन्धित पुष्प के समर्पण करने से प्राप्त करने योग्य, किसी से भी न दबने योग्य, धन-धान्य से सर्वदा पूर्ण कर गौ, अश्वादि पशुओं की समृद्धि देने वाली, समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार-प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने घर में आदर से बुलाता हूं।।9।।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां अशः।।10।।

हे लक्ष्मी! मैं आपके प्रभाव से मानसिक इच्छा एवं संकल्प, वाणी की सत्यता, गौ आदि पशुओं के रूप (दुग्ध- दध्यादि) अन्नों के रूप यव-ब्रीह्यादि (अर्थात् भक्ष्य, भोज्य, चोप्य, लेह्य-चतुर्विध भोज्य पदार्थ) इन सभी पदार्थों को प्राप्त करूं। मैं लक्ष्मीवान् एवं कीर्तिमान बनूं।।10।।

कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।।11।।

‘कर्दम’ नामक ऋषि-पुत्र से लक्ष्मी प्रकृष्ट पुत्र वाली हुई हैं। हे कर्दम! तुम मुझ में अच्छी प्रकार से निवास करो कमल की माला धारण करने वाली, संपूर्ण संसार की माता लक्ष्मी (ख्याति नामक कन्या की पुत्री) को मेरे वंश में निवास कराओ।।11।।

आप: सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।।12।।

कल्पान्तर में समुद्र मंथन द्वारा चैदह रत्नों के साथ लक्ष्मी जी का आविर्भाव हुआ है। इसी अभिप्राय से कहा है कि वरुण देवता स्निग्ध अर्थात् मनोहर पदार्थों को उत्पन्न करें। चिक्लीत नामक लक्ष्मीपुत्र! तुम मेरे गृह में निवास करो तथा दिव्यगुणयुक्ता तथा सर्वाश्रयभूता अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ।।12।।

आद्र्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।।13।।

हे अग्निदेव! पुष्करिणी, (आर्द्र शरीर वाली) पुष्टि को देने वाली रक्त और पीतवर्ण वाली कमल की माला धारण करने वाली, संसार को प्रकाशित करने वाली प्रकाशस्वरूपा लक्ष्मी को बुलाओ।।13।।

आद्र्रां यः करिणिं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।।14।।

हे अग्निदेव! तुम मेरे घर में भक्तों पर सदा दयार्द्रचित्त, दुष्टों को दण्ड देने वाली, सुंदर वर्णवाली एवं सुवर्ण की मालावाली सूर्यरूपा प्रकाशस्वरूप लक्ष्मी को बुलाओ।।14।।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतंगावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।।15।।

हे अग्निदेव! तुम मेरे यहां उन जगद्विख्यात लक्ष्मी को जो मुझे छोड़कर अन्यत्र न जाने वाली हों, उन्हें बुलाओ। जिन लक्ष्मी के द्वारा मैं धन-धान्य, उत्तम ऐश्वर्य, गौ, दासी, घोड़े और पुत्र-पौत्रादि को प्राप्त करूं अर्थात् स्थिर लक्ष्मी को प्राप्त कर सकूं।।15।।

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं प´चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्।।16।।

जो मनुष्य लक्ष्मी की प्राप्ति की कामना करता हो, वह पवित्र और सावधान होकर प्रतिदिन अग्नि में गोघृत का हवन और श्रीसूक्त की पन्द्रह ऋचाओं का पाठ करें।।16।।

।। इति श्रीवेदोक्त श्रीसूक्त भाषा टीका संपूर्ण।।

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