कुंडली में लग्नेश का महत्व

Dr.R.B.Dhawan (Guruji),
Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

जन्म कुंडली का विचार करते समय लग्नेश का बहुत बड़ा महत्व है, एक प्रकार से लग्नेश के बिना कुंडली के फलादेश का कोई महत्व ही नहीं रह जाता, इसी लिए फलदीपिका अध्याय 16 श्लोक संख्या 1 से 4 तक में मंत्रेश्वर महाराज ने लग्न और लग्नेश का फल बताते हुये लिखा है- यदि जातक के शरीर (आकृति आदि) का विचार कर रहे हैं तो, शरीर का विचार नवांश लग्न के स्वामी के अनुसार होता है, या जन्म कुंडली में जो ग्रह सबसे बलवान हो, उसके समान होता है।
इसी प्रकार चंद्रमा जिस नवांश में हो उस नवांश के स्वामी ग्रह का जो रंग रूप हो, उसी के अनुसार जातक का रंग-रूप होगा। मेष से लेकर 12 राशियों तक काल पुरुष के 12 अंग माने गए हैं, इसी प्रकार लग्न से लेकर बारहवें भाव तक काल पुरुष के 12 अंग माने गए हैं।
यहां पर मंत्रेश्वर महाराज यह बताते हैं कि यदि लग्न बड़ी राशि है, (बड़े साइज की राशि है) तो लग्न में शुभ ग्रह होने से जातक का सिर बड़ा होता है, और वह सुंदर होता है, क्योंकि यह बड़ी राशि लग्न स्थान में सिर वाले स्थान में स्थित होगी।

बडी राशियां- सिंह, कन्या, तुला और वृश्चिक(दीर्घ)।
सम राशियां- कर्क, मिथुन, धनु और मकर (मध्यम)।
छोटी राशियां- मेष, वृष, कुम्भ और मीन (हस्व)।

इसी प्रकार शरीर के अलग-अलग भागों में कैसी राशि पड़ी हैं, और जैसे ग्रह हैं, उसी प्रकार शरीर और शरीर के बाकी सब अंग होते हैं।
-फ. दी. अध्याय 16 श्लोक संख्या 1

मंत्रेश्वर महाराज आगे बताते हैं की लग्नेश केंद्र या त्रिकोण में हो, अपनी शुभ किरणों से प्रकामान हो, (अस्त ना हो) और अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो, तथा लग्न में लग्न का स्वामी ग्रह हो, इस प्रकार लग्न और लग्नेश दोनों सुधरे हुए होंगे और अष्टमेश केंद्र के अलावा और किसी स्थान में हो, जातक ऐसे योग में दीर्घायु होगा, धनवान होगा, प्रशंसा का पात्र होगा, गुणों वाला होगा, और राजा या शासक से प्रशंशित होगा, लक्ष्मी, वाहन से युक्त भी होगा, सुंदर रंग वाला होगा, सुंदर शरीर वाला होगा, दृढ शरीर वाला होगा, (मजबूत शरीर वाला होगा निर्भय होगा), धार्मिक होगा, और अच्छे परिवार तथा कुटुंब वाला होगा। फ. दी. अ.16 श्लोक-2

आगे मंत्रेश्वर महाराज बताते हैं- यदि लग्नेश का अच्छे ग्रह से संबंध हो तो, जातक उत्तम जगह पर निवास करता है, यहां पर उत्तम ग्राम, शहर कालोनी हैं। और उसे सज्जन मनुष्यों का साथ प्राप्त होता है, यदि लग्नेश किसी प्रबल ग्रह के साथ हो तो, जातक को किसी विख्यात व्यक्ति धनी सम्मानित व्यक्ति या राजा तुल्य व्यक्ति का आश्रय प्राप्त होता है। इससे यह भी नतीजा निकलता है कि यदि लग्नेश दुःख स्थान या खराब स्थान में है, तो जातक भी दुःखी रहेगा और यदि नीच राशि में है, निर्बल ग्रहों के साथ है, तो मनुष्य का संग भी ऐसे ही लोगों के साथ होता है।
यदि लग्नेश उच्च राशि में हो तो, जातक राजा या राजा तुल्य होता है, यदि लग्नेश अपनी ही राशि में हो, सम राशि में हो तो, जातक अपनी जन्मभूमि में रहता है, और यदि चर राशि में हो तो, जातक एक जगह स्थिर ना होकर और और जगह बदलता रहता है। यदि लग्नेश स्थिर राशि में ही हो तो, जातक एक जगह जमकर रहता है, और यदि जातक द्विस्वभाव राशि में हो तो, दोनों प्रकार का मिला जुला फल होता है, कभी वह अपनी जगह पर रहता है, और कभी दूसरी जगह। फ. दी. अ. 16 श्लोक- 3

मंत्रेश्वर महाराज आगे बताते हैं- यदि जन्म के समय लग्नेश शुभ किरणों से प्रकाशमान हो मतलब शुभ ग्रहों से युक्त व प्रकाशमान हो यहां शुभ किरणों से मतलब है अस्त नहीं हो तो, वह मनुष्य विख्यात होता है। यदि लग्नेश अच्छे स्थान में हो तो, जातक सुखी और वृद्धि को प्राप्त होता है। यदि लग्नेश नीच राशि, पाप ग्रह की राशि, या दुःख स्थान में हो तो, जातक निकृष्ट स्थान में निवास करता है। यदि लग्नेश बलवान होकर अच्छे स्थान में हो, तो जातक सुखी, पराक्रमी, वृद्धि को प्राप्त, उत्तम जीवन व्यतीत करने वाला होता है; किंतु यदि लग्नेश निर्बल हो तो, मनुष्य विपत्तियों से घिरा हुआ रहता है, रोगों से परेशान रहता है, अर्थात बार-बार रोगों और विपत्तियों का शिकार बनता रहता है, और दुःखी जीवन व्यतीत करता है।
फ. दी. अध्याय 16 शलोक 4

इन 4 श्लोकों में मंत्रेश्वर महाराज ने लग्नेश के बलवान या दुर्बल या अच्छे स्थान दुःख स्थान में रहने का वर्णन करते हुये उन ग्रहों का जातक के लिये फल बताया है।

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