जानिए क्या है लग्न
Dr.R.B.Dhawan (Guruji),
Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.
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वृहद पराशर होरा शास्त्र के चतुर्दश अध्याय (14 अध्याय) इसमें श्लोक नंबर 24 से लेकर के और 36 तक-
प्रथम भाव का फल पराशर महर्षि बताते हैं- लग्न स्थान का स्वामी अगर 6 8 12 भाव में हो तो यानी शरीर की आरोग्यता (निरोगी शरीर) का सुख कम होता है, या फिर नहीं होता।
इसी प्रकार 6 8 12 भाव में सभी 12 भावों के स्वामीयों की स्थिति को समझ लेना चाहिए। जैसे तृतीय, चतुर्थ, पचंम, षष्ठ तथा सप्तम भाव आदि सभी के फल का विचार कर लेना चाहिए। कालपुरूष के शरीर के उस अंग में रोग की सम्भावना होती है।
6 8 12 में यदि मित्र राशि में किसी भाव के भावेश हों तो, भी यही फल मानना चाहिए।
यदि लग्न का स्वामी पाप ग्रह हो, और लग्न में ही चंद्रमा तथा लग्नेश भी हो तो, भी जातक रोगी रहता है।
यदि लग्नेश केंद्र त्रिकोण या लाभ स्थान में हो तो, जातक जातिका निरोग रहता है। इस लग्नेश की बलहीनता एवं पाप शीलता देखकर ही उसके अनुरूप फल का निर्देश करना चाहिए।
इसी प्रकार लग्नेश यदि नीच राशि के या शत्रु क्षेत्रीय अथवा शत्रु की राशि या सूर्य के घर में हो, या स्वराशि में अपनी राशि से तीन घरों में से किसी घर में हो तो, निरोग फल मानना चाहिये।
लग्नेश या चंद्र राशि पति तीसरे स्थान में हो तो, निर्मल होता है, नीच राशि में स्थित हो, अथवा दूसरे आठवें घर में हो तो, जातक का शरीर कृश यानि कमजोरी और बीमारी सहित होता है।
जिसके लग्न में लग्नेश वा गुरु-शुक्र केंद्र स्थान में हो, उसके संतान की आयु वृद्धि होती है, और धनवान तथा राज मान्य होता है।
लग्नेश यदि बलवान शुभ ग्रहों से दृष्ट होकर केंद्र में स्थित हो तो, अष्टमेश से दृष्ट होने पर भी दीर्घायु वाला होता है।
जिस जातक के केंद्र में पाप ग्रह ना हो, तथा लग्नेश और गुरु चतुर्थ अष्टम स्थान में हो तो, वह जातक अनेक सुखों का भोक्ता और निरोगी होकर पुण्य कार्य करता है।
लग्न का स्वामी लग्न राशि में शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो, निरोगी होता है, कीर्तिमान होता है, तथा धनवान होता है। चंद्रमा बुध शुक्र गुरु यह चारों शुभ ग्रह केंद्र में हो, तथा इसमें भी इसमें से किसी एक या दो के साथ चंद्रमा लग्न में हो तो राजा के समान होता है।
लग्न में राहु हो, चंद्रमा उसको देखता हो, लग्न नवांश में शनि गुरु हो तो, वह जातक यमल मतलब जोडा होता है। (जोड़े में जन्म लेता है) लग्न में राहु शनि हो और लग्न तथा पास की 2 राशियों (दो बारह स्थान) को पाप ग्रह तथा बुध गुरु शुक्र देखते हो तो, वह बालक नाल से वेष्टित होता है। सूर्य शुक्र एक ही घर में हों, तथा एक ही नवांश में भी हो तो, 3 महीने तक 3 माताओं द्वारा पालन होता है, या भाई पिता पालन करते हैं।
-अघ्याय 14 श्लोक 24 से 36 वृहद पाराशर होरा शास्त्र।
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