लग्न भाव की विशेषताएं

Dr.R.B.Dhawan (Guruji),
Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

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लग्न का फल बताते हुए जातक पारिजात में आचार्य वैद्यनाथ बताते हैं- शरीर, वर्ण, आकृति, लक्षण, यश, गुण, सुख, दुख और क्लेश आदि भी, प्रवास (अपने घर या जन्मभूमि से दूसरी जगह रहना) बल, शक्ति, सामर्थ, पुरुषार्थ, दुर्बलता, क्षमता, साहस की कमी, यह सब लग्न से विचार करना चाहिए। जन्म कुंडली में लग्न का वही स्थान है, जो शरीर में सिर का यदि शरीर से सिर अलग हो जाए तो, उस बिना सिर वाले शरीर का महत्व क्या है।
इस लिये लग्न और लग्नेश के बलवान होने से और अन्य शुभ भावों के भी बलवान होने से उनका शुभ फल भोगने में वह जातक समर्थ होता है। किंतु लग्न या लग्नेश के कमजोर या निर्बल होने से अन्य भागों के फल भोगने की क्षमता भी मनुष्य में नहीं रहती वह कम हो जाती है।
उदाहरण के लिए- मुख से भोजन किया जाता है भोजन का विचार द्वितीय भाव से होता है, अब यदि द्वितीय भाव तो बलवान हो, द्वितीय भाव शुभ युक्त भी हो, शुभ ग्रहों से दृष्ट भी हो, तो जातक को भोजन का उत्तम सुख प्राप्त होगा यह कुंडली बताती है;
किंतु यदि शरीर यानी लग्न तथा लग्नेश हीन हो या दुर्बल हो, या किसी तरह से अस्त प्रभाव में हो तो, वह जातक उत्तम से उत्तम पदार्थ उपलब्ध होने पर भी भोजन का सुख या आनंद नहीं ले सकेगा।
इस प्रकार आप ने कई लोगों को देखा होगा कि वह बेशक करोड़पति होते हैं, परंतु वह आधा पाव दलिया खाकर गुजारा करते देखे जाते हैं, क्योंकि शरीर में पाचन शक्ति की कमी होने के कारण कुछ खा ही नहीं सकते, पचा ही नहीं सकते।
या फिर शरीर में चर्बी की मात्रा इतनी ज्यादा बढ़ जाती है, कि धी, दूध, मक्खन या चिकनाई बिल्कुल मना कर दिया जाता है। और अगर मधुमेह हो जाए तो चीनी खाना तो मना होता ही है, साथ ही साथ अधिक मीठे फल खाना भी मना होता है। इस लिए करेले का रस लो और नीम खाओ।
एक और उदाहरण यहां ऐसे सकते हैं-सप्तम भाव, सप्तम भाव का स्वामी, तथा शुक्र तीनों बलवान हैं, (भोग स्थान) द्वादश भाव भी अच्छा है, जातक स्वस्थ है, सुंदर है, आकर्षक भी है, पत्नी भी रमणीय तरुणी है, उसकी यथाशक्ति सेवा के लिए उपलब्ध है,
परंतु शारीरिक अक्षमता के कारण या शारीरिक रोग होने के कारण और भोग क्षमता ना होने के कारण विलासादि उसके लिए एक विडंबना मात्र बनकर रह जाता है। क्योंकि वह उसके भाग्य में ही नहीं होता, क्योंकि इस के लिए लग्नेश का बलवान होना आवश्यक है।
यहां विद्वान बताते हैं कि लग्नेश का इतना अधिक महत्व है कि चाहे वह नैसर्गिक शुभ हो या क्रूर फिर भी जिस भाव में बैठता है, उसके शुभ फल को बढ़ा देता है, अष्टम परम अशुभ स्थान है, परंतु यदि अष्टमेश लग्नेश भी हो तो, वही ग्रह शुभ हो जाता है।
लग्न यदि लग्न स्वामी से दृष्ट या युक्त हो तो जितनी अधिक मात्रा में शुभ होगा जातक उतना अधिक दीर्घायु होगा राजसत्ता और सुखी होगा लग्न यदि लगनेश से दृष्ट हो तो, जातक धनी भी होगा, कुशाग्र बुद्धि भी होगा, अर्थात तत्काल अर्थ ग्रहण करने की क्षमता उसमें होगी।
उसकी बुद्धि ऐसी होगी, और वह कुल कीर्ति की वृद्धि करने वाला होगा। कुल कीर्तिवर्धन के दो अर्थ हो सकते हैं- जो कुल वर्धन करें, या जो उनकी कीर्ति की वृद्धि करे। कुल की वृद्धि तो मनुष्य का स्वभाविक गुण ही है, कीर्ति की वृद्धि करें वही कुल वृद्धि माना जाएगा। अर्थात इसका विस्तार से संबंध ना देखें।
अर्थात लगनेश यदि लग्न में हो तो, उसमें शारीरिक शक्ति शाली लक्षण होते हैं। लग्न बलवान होने से ना केवल शरीर बलवान होता है, बाकी मन भी बलिष्ठ होता है। शारीरिक और मानसिक शक्ति के अभाव में शरीर और चित दोनों मंद पड़ जाते हैं।
लग्नेश केंद्र या त्रिकोण में हो शुभ ग्रह के साथ हो, शुभ ग्रह से सम्बंधित हो, शुभ ग्रह के घर में हो, बलवान हो तो, उसका यश चारों समुद्रों तक पहुंचता है, अर्थात वह अत्यंत यशस्वी और कीर्तिमान होता है। शास्त्रों में इस प्रकार के शब्दों का उल्लेख किया गया है, इसका मतलब है- वह मनुष्य विख्यात कीर्तिमान होगा।
वह कब होगा जब उसके सत्कर्म, पद, आदि विशिष्ट प्रकार के होंगे। इन सब का वैशिष्ट्य कब होता है, जब वह विद्या, वैभव, पराक्रम, सत्य कर्म, आदि से युक्त होता है। यह सब तब होता है- जब जातक का लग्नेश शुभ ग्रह की राशि में हो, शुभ ग्रह के साथ हो, शुभ ग्रह से दृष्ट हो, केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो, बलवान हो। यह जो पांच बातें बताई गई हैं, किस केंद्र या त्रिकोण का कितना महत्व है यह भी अपेक्षित होता है।
लग्नेश के शुभ ग्रह की युति दृष्टि आदि के कारण जो शुभ फल बताए गए हैं, जिससे बिल्कुल विपरीत फल तब होते हैं- जब लग्नेश पाप ग्रह की राशि में, पाप ग्रह से युक्त, दृष्टा हो, और यदि लग्नेश छठे, आठवें, या बारहवें घर में हो, पाप ग्रह के साथ हो, पाप ग्रह से दृष्ट हो, या फिर पाप ग्रह की राशि में हो तो, जातक अप्रकाश होता है।
अप्रकाश का क्या अर्थ है- जो प्रकाश में ना आए, जिसका नाम ना फैले संसार में, जिसके विषय में अधिक लोग ना जानते हों, मान लीजिए अंधकार में अपना जीवन यापन करने वाला व्यक्ति, अर्थात ऐसा व्यक्ति जो साधारण जीवन ही केवल व्यतीत कर पाता है, ना उसकी कोई प्रसिद्धि होती है, ना उसको कोई यश मिलता है, और ना ही वह यश वाले कार्य या कीर्ति वाले काम कर पाता हैं। यहां भी किस हद तक वह पाप ग्रहों से बाधित है, लग्नेश के बल का तारतमय कर लेना चाहिए।

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