लघुपराशरी -2
Dr.R.B.Dhawan (Guruji),
Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.
पंचयन्ति सप्तम सर्वे शनि-जीव-कुजाः पुनः।
विशेषतश्च त्रिदश-त्रिकोण-चतुरष्टमानं।। 5 ।।
लघुपराशरी श्लोक संख्या -5
इस श्लोक में ग्रंथकार आचार्य वराहमिहिर ने सभी ग्रहों की पूर्ण दृष्टि की विवेचना करते हुए कहा है की, सभी ग्रह अपने स्थान से सप्तम स्थान को तो देखते ही हैं, लेकिन इसमें विशेष बात यह है कि, शनि 3 और 10 स्थान को भी पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। बृहस्पति ग्रह अपने स्थान से विशेष रूप से 5 और 9 स्थान को भी पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। इसी प्रकार मंगल ग्रह की विशेष दृष्टि 4 और 8 स्थानों पर भी होती हैं। इस ग्रंथकार ने केवल पूर्ण दृष्टि को ही स्वीकार किया है, एकपाद, द्विपाद या तृिपाद दृष्टि को महत्व नहीं दिया।
और ग्रहों की दृष्टि का सिद्धांत बताते हुए कहा है-
1. स्त्री की रक्षा से ही धर्म और संतति की रक्षा होती है, इसीलिए सभी ग्रह अपने से सप्तम स्थान यानी जाया भाव (जीवन साथी के स्थान) पर अपनी सप्तम दृष्टि डालते हैं।
2. तृतीय पराक्रम स्थान और दशम राज्य का स्थान हैं, इन दोनों स्थानों की देखभाल करना सेवक का धर्म है, सेवा का कार्य सेवक ग्रह शनि का कार्य है, इसलिए इन दोनों 3-10 स्थानों पर विशेष दृष्टि शनि ग्रह रखते हैं।
3. पंचम स्थान विद्या का स्थान, और नवम स्थान धर्म का स्थान है, यह दोनों स्थान गुरु के अधीन रहते हैं, इसलिए गुरु ग्रह इन दोनों स्थानों 5 और 9 स्थान को विशेष दृष्टि से देखते हैं।
4. चतुर्थ स्थान सुख का स्थान है, (देश में प्रजा) और अष्टम स्थान आयु का स्थान (बाहरी आक्रमण का स्थान) है, इन दोनों का रक्षक पराक्रमी ग्रह ही हो सकता है, अंदर की सुरक्षा पुलिस द्वारा और देश की सीमा रक्षा सेना करती है, इसलिए इन दोनों पुलिस और सेना का प्रतिनिधित्व मंगल के पास है, और मगल इन दोनों स्थानों 4-8 को अपनी विशेष दृष्टि से देखता है।
—– अब आगे ग्रहों के शुभा-शुभत्व की व्याख्या की गई है, ग्रहों में शुभ-अशुभ दो प्रकार की प्रकृति होती हैं, एक तो स्वाभाविक शुभता-अशुभता और दूसरा तत्कालिक शुभता-अशुभता होती हैं।
तत्कालिक का अर्थ है- उस जातक की कुंडली में जो ग्रह शुभ अशुभ प्रभाव डाल रहे हैं, वह तत्कालिक शुभ या अशुभ ग्रह कहलाएगे पहला है- स्वभाविक जिनका अपना स्वभाव शुभ या शुभ होता है।
तत्कालिक शुभ या अशुभ ग्रह जातक की अपनी कुंडली के अनुसार होते हैं।
इस प्रकार जो नैसर्गिक और तत्कालिक दोनों तरह से शुभ हैं, वह अति शुभ ग्रह हो जाते हैं।
जो दोनों तरह से पाप या अशुभ हैं वह अति पापी हो जाते हैं।
जो एक तरह से पाप ग्रह हैं और एक तरह से शुभ ग्रह वह न्यूट्रल सम हो जाते हैं।
इसके बाद जो एक तरह से सम और एक तरह से पाप ग्रह हो वह पाप ग्रह ही रहते हैं।
जो एक तरह से सम एक तरह से शुभ हो वह ग्रह शुभ ही रहते हैं।
सूर्य शनि मंगल यह नैसर्गिक या स्वाभाविक रूप से ही क्रूर, पाप या अशुभ प्रकृति वाले ग्रह है।
गुरु शुक्र यह नैसर्गिक यानी स्वभाविक रूप से शुभ ग्रह कहलाते हैं।
और बुध तथा चंद्रमा यह कंडीशन के साथ शुभ या अशुभ ग्रह कहलाते हैं।
राहु और केतु ग्रह सहचर्य के अनुसार अपना फल देते हैं। सहचर्य का मतलब किस हाउस में हैं, और किस ग्रह के साथ हैं।
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सम्बंधित वीडियो लिंक :- https://youtu.be/eX-fKXLujXc
Dr.R.B.Dhawan (Guruji),Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience. पंचयन्ति सप्तम सर्वे शनि-जीव-कुजाः पुनः। विशेषतश्च त्रिदश-त्रिकोण-चतुरष्टमानं।। 5 ।। लघुपराशरी श्लोक संख्या -5 इस श्लोक में ग्रंथकार आचार्य वराहमिहिर ने सभी ग्रहों की पूर्ण दृष्टि की विवेचना करते हुए कहा है की, सभी ग्रह अपने स्थान से सप्तम स्थान को तो देखते ही…