लघुपराशरी -4

कुंडली के केन्द्र स्थानों की शुभता-अशुभता –

Dr.R.B.Dhawan (Guruji),
Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

न दिशन्ति शुभं नृणां सौम्याः केन्द्राधिपा यदि।
क्रूराश्चेदशुभं ह्यते प्रबलाश्चोत्तरम्।। ७।।

श्लोक संख्या ७ में आचार्य वराहमिहिर केंद्र स्थानों का स्वभाव बताते हुए कहते हैं- केंद्र यानी 4-7 और 10 स्थान के स्वामी यदि शुभ ग्रह हों तो, वह अपने शुभ स्वभाव के होते हुये भी शुभ फल देने में समर्थ नहीं होते।
इस का अर्थ है, यदि 4-7-10 स्थानों में शुभ ग्रहों की राशि (वृष-तुला, धनु-मीन) और कर्क राशि यदि शुभ चंद्रमा (शुक्ल अष्टमी से कृष्ण पंचमी तक) हो तथा शुभ बुध की राशि (शुभ ग्रह के साथ बुध) होने से मिथुन या कन्या राशि हों तो, ऐसे शुभ ग्रह – शुक्र गुरू शुभ चंद्रमा तथा शुभ बुध अपना शुभत्व (शुभ फल देना) भूल जाते हैं। और वह ग्रह अपनी दशा अंतर्दशा में शुभ फल नहीं दे पाते।
इसी प्रकार केंद्र यानी 4-7 और 10 स्थान के स्वामी यदि पाप ग्रह हों तो, वह अपने पाप /अशुभ स्वभाव के होते हुये भी अशुभ फल देने में समर्थ नहीं होते।
इस का अर्थ है, यदि 4-7-10 स्थानों में अशुभ या क्रूर ग्रहों की राशि (मकर-कुम्भ, मेष-वृश्चिक, सिंह) और कर्क राशि यदि क्षीण चंद्रमा (कृष्ण अष्टमी से शुक्ल पंचमी तक) हो, तथा पाप बुध की राशि (पाप ग्रह के साथ बुध) होने से मिथुन या कन्या राशि हों तो, ऐसे पाप ग्रह – शनि मंगल, सूर्य तथा क्षीण चंद्रमा या पाप बुध अपना अशुभत्व (अशुभ फल देना) भूल जाते हैं। और वह ग्रह अपनी दशा अंतर्दशा में अशुभ फल नहीं देते।
तथा केंद्रों में 4 स्थान से अधिक 7 तथा सात से अधिक 10वां स्थान उत्तरोत्तर बलवान होते हैं- इस का सिद्धात बताते हुये आचार्य कहते हैं, चौथे स्थान से सप्तम और सातवां स्थान से ज्यादा बलवान दशम स्थान होता है।
इसी तरह से त्रिकोणों में प्रथम स्थान से पंचम और पंचम से अधिक बलवान नवम स्थान होता है।
त्रिषडाय में तृतीय से अधिक षष्ट और षष्ट से अधिक एकादश स्थान बलवान होता है।
चतुर्थ-सप्तम-दशम स्थान के उतरोत्र बलवान होने का सिद्धांत बताते हुए आचार्य कहते हैं- जिसके घर में हमेशा, स्थिरता, भौतिक सुख, संपन्नता तथा समृद्धि रहती है, वह उन सुख के साधनो में मग्न रहता है, परंतु वैवाहिक जीवन के आरम्भ होने पर अपनी पत्नी या जीवन-साथी को अधिक इन सब सुखों की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण समझते हुए, सुख सम्पन्नता व समृद्धि की तुलना में ‘‘स्त्री’’ जीवन साथी से अधिक लगाव होने के कारण उसे ही चाहता है।
और यदि उसे सुख-समृद्धि तथा पत्नी जीवन साथी दोनों में किसी एक को चुनना पढे तो घर या सुख-समृद्धि की तुलना में जीवन साथी को अधिक महत्व देता है।
इसी तरह यदि जीवन साथी और अपने कारोबार या नौकरी अथवा राजनैतिक कार्यों में से किसी एक को चुनना पढे तब ऐसी स्थिति में अपने जीवन साथी से अधिक महत्वपूर्ण उसे वह अपने कारोबार, नौकरी, तथा राजनैतिक कार्य लगने लगते हैं, इसी सिद्धांत के अनुसार चतुर्थ से अधिक सप्तम तथा सप्तम से अधिक दशम स्थान उत्तरोत्तर बलवान होते हैं।

सम्बंधित वीडियो लिंक :- https://youtu.be/r1SdyTKqCwk

कुंडली के केन्द्र स्थानों की शुभता-अशुभता – Dr.R.B.Dhawan (Guruji),Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience. न दिशन्ति शुभं नृणां सौम्याः केन्द्राधिपा यदि।क्रूराश्चेदशुभं ह्यते प्रबलाश्चोत्तरम्।। ७।। श्लोक संख्या ७ में आचार्य वराहमिहिर केंद्र स्थानों का स्वभाव बताते हुए कहते हैं- केंद्र यानी 4-7 और 10 स्थान के स्वामी यदि शुभ ग्रह हों…