लघुपराशरी -7

केंद्राधिपति दोष –

Dr.R.B.Dhawan (Guruji),
Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

केन्द्राधिपत्यदोषस्तु बलवान् गुरूशुक्रयोः।
मारकत्वेऽपि च तयोर्मारकस्थानसंस्थितिः।।10।।
बुधस्तदनु चन्द्रोऽपि भवेत्तदनु तद्विधः।
न रन्ध्रेशत्वदोषस्तु सूर्याचन्द्रमसोर्भवेत्।।11।।

लघुपराशरी श्लोक संख्या 10-11
केंद्राधिपति दोष क्या होता है- केन्द्राधिपति दोष या केन्द्राधिपत्य दोष का निर्माण तब होता है, जब कोई नैसर्गिक शुभ ग्रह (स्वाभाविक शुभ ग्रह) जैसे- बृहस्पति, शुक्र, शुभ बुध तथा शुक्ल पक्ष अष्ठमी से कृष्ण पंचमी तक का चंद्रमा जैसे लाभकारी ग्रह केंद्र भाव के स्वामी बन जाते हैं। और इस योग में केंन्द्र स्थान विशेषकर सप्तम का स्वामी होना आवश्यक हैं।
केन्द्राधिपति दोष (ज्ञमदकतंकीपचंजप कवेीद्ध जब भी किसी शुभ ग्रह की राशि केंद्र में होती है, और वह सप्तमेश भी होता है तो, उसको केन्द्राधिपति दोष लग जाता है।
इस दोष के पीछे मुख्य कारण है, सप्तम स्थान का स्वामी होना, क्योकि सप्तम स्थान केन्द्र स्थान के साथ-साथ मारक स्थान भी है, इसी लिये सप्तम स्थान का स्वामी मारकेश भी होता है।
केन्द्र और साथ ही सप्तम स्थान का स्वामी जब कोई शुभ ग्रह यानि बृहस्पति, शुक्र, बुध, और चंद्रमा होते हैं तो, कुंडली में यह केन्द्राधिपति दोष कहलाता है। इनमें से बृहस्पति और बुध के कारण बनने वाला यह दोष अधिक संभावित होता है। इसका कारण है कि जब बृहस्पति या बुध चौथे, सातवें और दसवें भाव के स्वामी होंगे तो सम्भव है वह सप्तम के स्वामी भी होंगे। बुध की लग्नों में बृहस्पति और बृहस्पति की लग्नों में बुध अवश्य केन्द्रधिपति दोष से युक्त होगे ही।
इसके बाद शुक्र और चंद्रमा का दोष आता है चंद्रमा ग्रह यदि कुंडली में शुभ है, और मकर लग्न की कुंडली है तो चंद्रमा के लिये केन्द्राधिपपति दोष होता है।
यह दोष शनि, मंगल, और सूर्य जैसे ग्रहों पर लागू नहीं हो सकता। इस दोष की वजह से व्यक्ति को केरियर से संबंधित परेशानियां जैसे नौकरी जाना, व्यापार में दिक्कतें, पढ़ाई से संबंधित शिक्षा की हानि आदि परेशानीयां सम्बंधित ग्रह की दशा या अंतरदशा में झेलनी पड़ सकती हैं।
शुभ ग्रहों से बनने वाला केंद्राधिपति दोष जो कहा गया है, वह गुरु और शुक्र का ही बलवान होता है। शुभ ग्रहों के मारकत्व (सप्तमेशत्व) होने पर भी गुरु शुक्र में ही विशेषकर मारकत्व दोष होता है। क्योकि मेष लग्न की कुंडली में जब शुक्र सप्तम में तुला राशि होने से सप्तमेश होगा तब साथ ही साथ वह वृष राशि द्वितीय में होने से द्वितीयेश भी होगा यह दोनो मारक स्थानों का स्वामी हो गया। यहां यह दोष अधिक होगा।
परंतु इसी प्रकार वृश्चिक लग्न की कुंडली में भी शुक्र सप्तम का स्वामी वृष राशि होने से होगा परंतु इसकी दूसरी राशि तुला द्वादश में होगी जो मारक स्थान नहीं है, इसलिये यहां शुक्र का यह दोष कम हो जाता है।

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सम्बंधित वीडियो लिंक :- https://youtu.be/7zcgjbF_D74

केंद्राधिपति दोष – Dr.R.B.Dhawan (Guruji),Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience. केन्द्राधिपत्यदोषस्तु बलवान् गुरूशुक्रयोः।मारकत्वेऽपि च तयोर्मारकस्थानसंस्थितिः।।10।।बुधस्तदनु चन्द्रोऽपि भवेत्तदनु तद्विधः।न रन्ध्रेशत्वदोषस्तु सूर्याचन्द्रमसोर्भवेत्।।11।। लघुपराशरी श्लोक संख्या 10-11केंद्राधिपति दोष क्या होता है- केन्द्राधिपति दोष या केन्द्राधिपत्य दोष का निर्माण तब होता है, जब कोई नैसर्गिक शुभ ग्रह (स्वाभाविक शुभ ग्रह) जैसे- बृहस्पति, शुक्र, शुभ…