अतिरिक्त वैवाहिक संबंध
Dr.R.B.Dhawan (Guruji),
Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.
Extra Merital Relationship-
घर में पत्नी है, फिर भी गर्लफ्रेड-
मन के अनुरूप जीवन संगिनी अथवा जीवन-साथी हो, ऐसी हार्दिक तथा प्रबल इच्छा हर एक युवक युवती की अवश्य रहती है। परंतु संस्कृतिक, चारित्रिक, तथा पारिवेशिक विचित्रताओं के कारण यदि मन के अनुरूप जीवन संगिनी या साथी न मिले या फिर विवाह के कुछ अंतराल के बाद भी किन्ही कारणों से आपस में मन न मिले तो, कभी-कभी मन दूसरी तरफ फिसल जाता है। और कभी कभी तो जीवन साथी से कोई समस्या नहीं होती फिर भी विपरीत लिंग के सौन्दर्य तथा शारीरिक रंग-रूप आकार अथवा स्वभाव ही मन में बस जाते हैं, और फिर यह आकर्षण कभी कभी अंतरमन में उतर जाता है, तब उनमें एक-दूसरे से बार-बार मिलने की इच्छा प्रबल होने लगती है।
हालांकि विवीहोपरांत अन्य सम्बंधों को कानूनन सही समझा गया हो, परंतु भारतीय समाज इन सम्बन्धों को मान्यता नहीं देता। आखिर इन सम्बंधों का मूल कारण क्या है, ज्योतिषीय दृष्टि से विचार करें तो कारण यह है कि, प्रत्येक व्यक्ति का जीवन ग्रहों के आधीन रहता है। इसलिये, कुछ युवक-युवतियां अथवा नर-नारियों के विवाहोपरांत भी अन्य प्रेम सम्बन्धों की सम्भावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता। आज इस वीडियो के द्वारा विवाहोपरांत अन्यतर सम्बन्धों के ज्योतिषीय कारणों पर दृष्टि डालेंगे-
जातक (युवक) अथवा जातिका (युवती) की जन्मकुंडली के पंचम भाव से ही नियति (प्रारब्ध), स्वाभाविक प्रेम सम्बंधों का विवेचन किया जाता है, और प्रेमी-प्रेमिका की स्थिति (स्टेटस), पद (पोजिशन) तथा स्वभाव (नेचर) का निरूपण भी किया जाता है।
और इसी प्रकार सप्तम-भाव से जीवन संगी अथवा संगिनी की स्थिति (स्टेटस), पद (पोजिशन) तथा स्वभाव (नेचर) का निरूपण किया जाता है। इन्हीं भावों के अधिपति (स्वामी) वास्तव में, विवाह अथवा प्रेम सम्बन्धों की संभावनाओं की सूचना देते हैं।
तथा मूल-उत्प्रेरक अथवा निर्देशक भी यही ग्रह होते हैं। ये दोनों स्वामी ही अपनी स्थिति अथवा दृष्टि की प्रबलता तथा अनुकूलता-प्रतिकूलता के आधार पर इस प्रकार की सम्भावनाओं की सूचना कुंडली में देते हैं।
इस विषय में पंचमेश या सप्तमेश का लग्नेश के साथ युति में रहना अथवा दृष्टि में रहना अथवा किसी प्रकार का आपसी सम्बन्ध में रहना, इन दो भावों (पाँचवें-लग्न) अथवा (सातवे-लग्न भाव), का सम्बंध रहना अनिवार्य होता है। किसी-किसी परिस्थिति विशेष में दशमेश या द्वादशेश का भी जन्म कुंडली में पंचमेश अथवा सप्तमेश के साथ युति-सम्बन्ध स्थापित रहता है। विवाहोपरांत अन्य प्रेम सम्बन्ध के लिये ज्योतिषीय सूत्र इस प्रकार हैः-
(क) पंचमेश + लग्नेश का परस्पर सम्बन्ध और सप्तमेश का षष्ठ, अष्ठम या द्वादश के स्वामीयों से किसी केन्द्र में युति सम्बन्ध होना।
(ख) पंचमेश + दशमेश + लग्नेश का परस्पर सम्बन्ध और सप्तमेश का षष्ठ, अष्ठम या द्वादश में से किसी स्थान में होना।
(ग) पंचमेश + दशमेश + द्वादशेश + और लग्नेश का परस्पर सम्बन्ध होना और साथ ही, सप्तम स्वामी का उपरोक्त ग्रहों या स्थानों में कोई सम्बन्ध होना आवश्यक है।
इसमें कारक ग्रह की भूमिका भी महत्वपूर्ण और विशेष है, वह किस स्थिति में है, सप्तमेश
+ लग्नेश से किसी प्रकार सम्बन्ध बना रहा है या पंचमेश
+लग्नेश से। पुरूष की कुंडली में यह भी देखना आवश्यक है कि शुक्र कुंडली का लग्नेश
+ पंचमेश सम्बन्ध बना रहा हैं, और वहां भी सप्तमेश की स्थिति अशुभ है, या फिर लग्नेश
+ सप्तमेश का सम्बंध मजबूत है। इसी प्रकार चंद्र कुंडली से भी इन सम्बन्धों की क्या स्थिति बन रही है, देखना होगा। इस प्रकार यदि तीनों प्रकार से पंचमेश
+लग्नेश सम्बन्ध बना रहे हैं तो, यह विवाहोपरांत अन्य से सम्बंध अटूट रहता है। तीन में दो प्रकार से इस प्रकार की स्थिति है तो, यह सम्बन्ध लम्बे समय तक रहकर टूट जायेगा। और यदि एक ही प्रकार से पंचमेश$लग्नेश सम्बन्ध बना रहे हैं, तब यह सम्बन्ध अधिक समय तक नहीं रहने वाला। अन्यंतर सम्बन्ध विशेष रूप से प्रगाढ सम्बन्ध होगे यदि पांचवें और प्रथम स्थान स्वामी अकेले अथवा दशमेश असा फिर द्वादशेश के साथ पंचम स्थान में हों अथवा पंचम स्थान से सम्बन्ध बना रहे हों। यदि उक्त ग्रहों या भावेशों की दुष्ट स्थान (छठे, आठवें, बारहवें भाव) के स्वामी के साथ युति या दृष्टि भी हो तो, काफी समय यह साथ रहने के बाद अंत में निराशा अथवा विफलता के साथ यह अन्यंतर सम्बंध टूट जाता है।
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सम्बंधित वीडियो लिंक :- https://youtu.be/AiXmieTsENA
Dr.R.B.Dhawan (Guruji),Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience. Extra Merital Relationship- घर में पत्नी है, फिर भी गर्लफ्रेड- मन के अनुरूप जीवन संगिनी अथवा जीवन-साथी हो, ऐसी हार्दिक तथा प्रबल इच्छा हर एक युवक युवती की अवश्य रहती है। परंतु संस्कृतिक, चारित्रिक, तथा पारिवेशिक विचित्रताओं के कारण यदि मन के अनुरूप…