कुंडली से आयु का विचार -1
Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.
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“नक्षत्रायु कलौ युगे” इस वचन के अनुसार नक्षत्र आयुर्दाय साधन करके जो वर्षादि प्रमाण आता है, ठीक उसी समय में किसी का मरण हो जाए ऐसा नियम नहीं है, उससे आगे पीछे भी प्रबल मार्केश की दशा अंतर्दशा प्राप्त होने पर मरण होता है, इसी विषय के स्पष्ट करने के लिए मारकेश का निर्णय किया जाता है।
पहले बताए गए मारकेश स्थान (2 और 7) के स्वामी की दशा अंतरदशा के समय में, वा मारक स्थान में जो पापी ग्रह बैठे हों, वा मारकेश ग्रह के साथ में जो पापी ग्रह बैठे हों, उनकी दशा अंतरदशा के समय में, संभव रहने पर (गणित द्वारा प्राप्त आयु की समाप्ति का समय होने पर) प्राणियों का मरण होता है। इसके असंभव होने पर (अर्थात मारक स्थान में कोई भी पाप फल पद ग्रह ना हो, तथा मार्केश के साथ भी कोई पापी ग्रह ना हो तो, उस हालत में) लग्न से द्वादशाधीश ग्रह की दशा में मारकेश की अंतरदशा आने पर मरण होता है।
मारक स्थान (2 और 7) के स्वामी और उसके सम्बन्धी (अर्थात मारक स्थान में रहने वाला वा मारकेश के साथ रहने वाला) पापी ग्रह (त्रिषडाय स्थान के स्वामी) ग्रह यह तीन प्रकार के मुख्य मारक हैं।
इनमें भी द्वितीयेश सबसे प्रबल, उससे न्यून सप्तमेश, उससे न्यून द्वितीय स्थान में रहने वाला, उससे भी न्यून द्वितीयेश के साथ रहने वाला, और उससे भी न्यून सप्तम में रहने वाला, उससे भी न्यून सप्तमेश के साथ रहने वाला पापी ग्रह मारक होता है।
इन सब में जो प्रबल मारक हो, उस में से किसी एक की दशा और दूसरे की अंतरदशा आने पर संभव रहने पर मृत्यु समझना चाहिए। इन मारक सम्बधी ग्रहों की दशाअंतर में असंभव होने पर, द्वादशेश की दशा में मारकेश की अंतरदशा आने पर मृत्यु संभव होती है।
लघुपराशरी श्लोक- २-३
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