गंडमूल नक्षत्र की शांति –

Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

वीडियो लिंक : – https://youtu.be/vyaHoeX1-iU

गंडमूल शांति कैसे करें –
सौरमडल के राशि चक्र में ऐसी तीन स्थितियां होती हैं, जब राशि और नक्षत्र दोनों एक साथ समाप्त होते हैं। यह स्थिति ‘गंडात’ कहलाती है। इन्हीं अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती 6 नक्षत्रों में जन्मे शिशुओं के लिए यह नक्षत्र हमेशा कष्टकारक नहीं होते हैं। बलिक नक्षत्रों के कुछ चरण ही कष्टकारी होते हैं, कौन-कौन से नक्षत्र का कौन सा चरण कष्टकारक है, इस की सम्पूर्ण डिटेल इस से पहले वाले वीडियो में आप देख सकते हैं, उस वीडियो का लिंक भी यहां दिया गया है।
1. जहां कर्क राशि और अश्लेषा नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं। यहीं से मघा नक्षत्र और सिंह राशि का आरम्भ होता है। इस लिए यह संधि स्थान अश्लेषा और मघा का गंडमूलक स्थान है, और यह दोनों अश्लेषा और मघा नक्षत्र गंडमूलक नक्षत्र हैं।
2. इसी तरह जहां वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं, यहीं से मूल नक्षत्र और धनु राशि की शुरूआत होने के कारण ज्येष्ठा और मूल दोनों ‘गंडमूलक’ नक्षत्र होंगे।
3 इसी प्रकार जहां मीन राशि और रेवती नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं, यहीं से मेष राशि व अश्विनी नक्षत्र की शुरूआत होती है, इसी लिए रेवती तथा अश्विनी नक्षत्र भी गंडमूलक नक्षत्र कहलाते हैं। यह तीन नक्षत्र जोडे ही गंडमूलक कहलाते हैं। इनमें अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्रों का स्वामी ग्रह बुध है, तथा अश्विनी, मूल और मघा नक्षत्रों का स्वामी ग्रह केतु है।
ज्योतिष शास्त्र की मान्यता है कि कोई भी संधि क्षेत्र हमेशा नाजुक और या अशुभ होते हैं। जैसे-मार्ग संधि (चौराहे-तिराहे) की संधि, दिन-रात का संधि समय, ऋतु काल का संधि काल, लग्न राशि का संधि काल और ग्रहराशि तथा दो नक्षत्रों का संधि स्थान (इन्ही संधि काल या संधि स्थान में नकारात्मक शक्तियां सक्रिय रहती हैं। इसका एक उदाहरण हर मौसम के संधिकाल से समझ सकते हैं- हर मौसम परिवर्तन के समय वातावरण में रोगकारक विषाणु अधिक सक्रिय होने से आमतौर पर गला खराब या खांसी जुकाम की शिकायत अधिक हो जाती है।) इसी प्रकार लग्न राशि, नक्षत्रों और ग्रहों के संधि स्थल को भी अशुभकारी मानते हैं। कुछ नक्षत्रों के संधि क्षेत्रों को गंडात कहा जाता है, वह गंडात भी नाजुक और दुष्परिणाम देने वाले होते हैं।
शास्त्रों के अनुसार इन गंडमूलक नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चों के सुखमय भविष्य के लिए इन नक्षत्र दोष की शांति करना आवश्यक होता है। गंडमूल शांति कराने से यह संधि दोष या गंडमूल दोष के कारण लगने वाले दोष शांत हो जाते हैं।
27वें दिन जब जन्म वाला गंड-मूलक नक्षत्र दोबारा आए उस दिन संम्बधित नक्षत्र और नक्षत्र स्वामी के मंत्रों द्वारा नक्षत्र और नक्षत्र स्वामी ग्रह की जप, पूजा व शांति करा लेनी चाहिए। इनमें जिस नक्षत्र में शिशु का जन्म हुआ इस नक्षत्र के देवता का पूजन भी अवश्य करवाना चाहिए। गंडमूल शांति के लिए निर्धारित संख्या में जप-हवन, तर्पण-मार्जन तथा दान करने के पशचात ब्राम्हण भोजन करवाकर गंडमूल शांति करवा लेनी चाहिए।

गंडमूल शांति मंत्र‌ मूलशांति विधि –

अश्विनी नक्षत्र देवता- अश्विनी कुमार। गौत्र- मारीचि।
ॐ अश्विना तेजसाचक्षुः प्राणेन सरस्वती वीर्यम।
वाचेन्द्रो बलेनेंद्राय दधुरिन्द्रियम्।। ॐ अश्विनी कुमाराभ्यां नमः।।
पूजा विधि – अश्विनी नक्षत्र की शांति के लिए इस मंत्र की जप संख्या है- 5,000 है, जप पूर्ण करने के बाद दशांश मंत्रों से हवन किया जाता है, और फिर उसके दशांश मंत्रों से तर्पण और मार्जन किया जाता है, उसके बाद 5 ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है।
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री- सफेद चंदन, गंध, कमल पुष्प, घी का दीपक, दूध, गुग्गल, धूप और मिठाई। हवन के अंत में कारस्कर की समिधा और कुशा युक्त खीर तथा धी से ॐ अश्विन्यै स्वाहाष् एवं केतु मंत्र से हवन में 500 आहुति दें। पूर्ण आहुति के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

अश्लेषा नक्षत्र देवता- सर्प। गौत्र- वशिष्ठ।
ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु।
ये ऽ अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः।।
ॐ सर्पेभ्यो नमः।।
पूजा विधि- अश्लेषा नक्षत्र की शांति के लिए इस मंत्र की जप संख्या है- 10,000 है, जप पूर्ण करने के बाद दशांश मंत्रों से हवन किया जाता है, और फिर उसके दशांश मंत्रों से तर्पण और मार्जन किया जाता है, उसके बाद 10 ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है।
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री – कुमकुम, अगर, गंध, अगस्त पुष्प, घी का दीपक, धूप, गुग्गल और मिठाई। हवन के अंत में आपामार्ग और खीर तथा नाग वृक्ष की समीधा से ॐ अश्लेषायै स्वाहाष् एवं बुध मंत्र से हवन में 1000 आहुति दें। पूर्ण आहुति के पश्चात 10 ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

मघा नक्षत्र देवता- पितर देव। गौत्र – अंगिरस।
ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः।
अक्षन् पितरोमीमदन्त पितरोतीतृपन्त पितरः पितरः शुन्धध्वम।।
ॐ पितृभ्यो नमः।
पूजा विधि – मघा नक्षत्र की शांति के लिए इस मंत्र की जप संख्या है- 10,000 है, जप पूर्ण करने के बाद दशांश मंत्रों से हवन किया जाता है, और फिर उसके दशांश मंत्रों से तर्पण और मार्जन किया जाता है, उसके बाद 10 ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है।
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री- सफेद चंदन, गंध, चम्पक पुष्प, घी का दीपक, दूध, गुग्गल, धूप और मिठाई। हवन के अंत में कुशा युक्त खीर तथा धी से ॐ मघाय स्वाहाष् एवं केतु मंत्र से हवन में 1000 आहुति दें। पूर्ण आहुति के पश्चात 10 ब्राह्मणों को भोजन कराएं।


ज्येष्ठा नक्षत्र देवता – इन्द्र। गौत्र – अत्रि।
ॐ त्रातारमिन्द्रम् अवितारमिन्द्र गुँ हवे हवे सुहव गु़ँ शूरमिन्द्रम्।
हव्यामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्र गुँ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः।।
ॐ इन्द्राय नमः।।
पूजा विधि- ज्येष्ठा नक्षत्र की शांति के लिए इस मंत्र की जप संख्या है- 5,000 है, जप पूर्ण करने के बाद दशांश मंत्रों से हवन किया जाता है, और फिर उसके दशांश मंत्रों से तर्पण और मार्जन किया जाता है, उसके बाद 5 ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है।
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री –
सफेद चंदन, गंध, चम्पक पुष्प, कर्पूर, घी का दीपक, दूध, गुग्गल, धूप और मिठाई। हवन के अंत में आपामार्ग युक्त खीर तथा धी और चीड वृक्ष की समीधा से ॐ ज्येष्ठायै स्वाहाष् एवं बुध मंत्र से हवन में 500 आहुति दें। पूर्ण आहुति के पश्चात 5 ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

मूल नक्षत्र देवता – निरृति। गौत्र – पुलस्त्य।
ॐ मातेव पुत्रं पृथिवी पुरीष्यमग्नि गुँ स्वे योनावभारुखा।
तां विश्वेर्देवैर्ऋतुभिः संविदानः प्रजापतिर्विश्वकर्मा वि मुच्चतु।।
ॐ निर्ऋतये नमः।।

पूजा विधि- मूल नक्षत्र की शांति के लिए इस मंत्र की जप संख्या है- 5,000 है, जप पूर्ण करने के बाद दशांश मंत्रों से हवन किया जाता है, और फिर उसके दशांश मंत्रों से तर्पण और मार्जन किया जाता है, उसके बाद 5 ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है।
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री – कृष्ण अगरू गंध, नील पुष्प, मधु, घी का दीपक, तिल और मिठाई। हवन के अंत में कुशा युक्त खीर तथा धी और साल वृक्ष की समीधा से ॐ मूलाय स्वाहाष् एवं केतु मंत्र से हवन में 500 आहुति दें। पूर्ण आहुति के पश्चात 5 ब्राह्मणों को भोजन कराएं। वस्त्र एवं दक्षिणा के साथ छाया-पात्र का दान भी करें।

रेवती नक्षत्र देवता – पूषाण। गौत्र – क्रतु।
ॐ पूषन् तवव्रते वयं न रिष्येम कदा चन।
स्तोतारस्त ऽ इह स्मसि।। ॐ पूष्णे नमः।

पूजा विधि – रेवती नक्षत्र की शांति के लिए इस मंत्र की जप संख्या है- 5,000 है, जप पूर्ण करने के बाद दशांश मंत्रों से हवन किया जाता है, और फिर उसके दशांश मंत्रों से तर्पण और मार्जन किया जाता है, उसके बाद 5 ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है।
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री – लाल चंदन, गुग्गल, धूप, गंध, मंदार पुष्प, घी का दीपक, और मिठाई। हवन के अंत में आपामार्ग युक्त खीर तथा धी और महुआ वृक्ष की समीधा से ॐ रेवत्यै स्वाहाष् एवं बुध मंत्र से हवन में 500 आहुति दें। पूर्ण आहुति के पश्चात 5 ब्राह्मणों को भोजन कराएं। लाल वस्त्र एवं दक्षिणा के साथ पीतल-पात्र, छाया-पात्र एवं बछडे का दान दक्षिणा सहित करें।

गंडमूलक नक्षत्रों के स्वामी, बुध ग्रह का मंत्र-
ॐ उदबुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्ठापूर्ते संसृजेथामयं च अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत।
इस मत्र का अलग से नौ हजार जप कराएं। दशमांश संख्या में हवन कराएं, हवन में अपामार्ग (ओंगा) और पीपल की समिधा काम में लें।

गंडमूलक नक्षत्रों के स्वामी केतु ग्रह का मंत्र-
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः।।
इस मंत्र के अलग से सत्रह हजार जप कराएं, और दशमांश संख्या में हवन कराएं, हवन में दूब और पीपल की समिधा काम में लें।

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