गंडमूलक नक्षत्र-

Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

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यह सृष्टि त्रिआयामी, त्रिगुणात्मक है। राशियों और नक्षत्रों का प्रभाव भी मनुष्य पर त्रिआयामी प्रकार से पढ़ता है। 12 राशियों में सभी राशियों का कोई न कोई तत्व- अग्नि, पृथ्वी, वायु और जल तत्व में से है। 12 राशियों में 27 नक्षत्र समाहित हैं- इन्हें तीन समान भागों में बांटे तो प्रथम भाग- 1 से 9वें नक्षत्र तक, द्वितीय भाग- 10 से 18वें नक्षत्र तक तथा तृतीय भाग- 19 से 27वें नक्षत्र तक है। यह 9-9 नक्षत्र के तीन भाग बनते हैं।
इस प्रकार सौरमंडल में सम्पूर्ण राशि चक्र को तीन भागों में बांट कर 27 नक्षत्रों की 3 आवृत्ति बनती हैं, इस प्रकार प्रत्येक आवृत्ति में 4 राशियां होती हैं। अथवा दूसरे शब्दों में कहें तो 9 नक्षत्र होते हैं ।
9-9 नक्षत्रों की तीनों आवृत्तियों में जहां राशि और नक्षत्र का प्रारंभ और अंत एक साथ होता है, वह स्थान गंडात कहलाता है। इसी को गंडमूल भी कहते है। इसमें आरंभ की राशि अग्नि तत्व वाली और अंतिम राशि जल तत्व वाली होने के कारण यह स्थान संधि स्थान कहलाता है, और यह संधि स्थान अनिष्टकारक माना जाता है।
इन तीनों वर्गों की संधि वाले (प्रथम तथा अंतिम) नक्षत्रों को मूल संज्ञक नक्षत्र माना गया है। यह नक्षत्र हैं- प्रथम, नौवां, दसवां, अट्ठारहवां, उन्नीसवां तथा सत्ताईसवां। इस प्रकार यह छः नक्षत्र- अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती। यह तीन नक्षत्र-जोडे ऐसे हैं, जहां कोई दो नक्षत्र अलग-अलग राशियों में हैं; किसी नक्षत्र का कोई चरण दूसरी राशि में नहीं जाता। इसलिये इन्हें नक्षत्र चक्र के मूल अर्थात् प्रधान नक्षत्र माना गया है।
1. पहली आवृत्ति में रेवती और अश्विनी के बीच में यह संधि स्थान होता है, अर्थात मीन राशि के अंत और मेष राशि के आरंभ में जो संधि बनती है, इसको संध्यागंड या स्वयं गंड कहते हैं। इस समय में जन्म लेने वाले बच्चे स्वयं के लिए कष्ट प्राप्त करते हैं।
2. दूसरी आवृति अश्लेषा और मघा नक्षत्र के मध्य अर्थात कर्क राशि का अंत और सिंह राशि का प्रारंभ, यह जो संधि है, इसको रात्रिगंड और मात्रे गंड कहा जाता है। यह माता या माता पक्ष के लिए कष्टकारी होता है।
3. इसके बाद तीसरी आवृति ज्येष्ठा नक्षत्र और मूल नक्षत्र के मध्य अर्थात वृश्चिक राशि का अंत और धनु राशि का प्रारंभ का संगम स्थान। यह जो संधि स्थान है, इसको दिवागंड या पितृ गंड कहा जाता है। यह पिता या पिता पक्ष के लिए कष्टकारी होता है।
इस प्रकार 3 गंडो में सम्मिलित 6 नक्षत्रों को गंडात अर्थात गंडमूल वाला नक्षत्र माना गया है। क्योंकि इस दोष का मुख्य आधार अग्नि तत्व और जल तत्व यह दो विरोधी तत्वों का मिलन ही है।
इसलिए इस समय में जन्म के फल का आधार भी यही दो तत्वों का संगम स्थल है। साधारण भाषा में तो इन नक्षत्रों के पूर्ण अंश को गंडात दोष वाला मान लिया जाता है, किंतु सूक्षम विचार किया जाये तो जल तत्व राशि का 29 अंश 10 कला से 30 अंश तक (50 कला), और अग्नि तत्व राशि का 00 अंश 00 कला से 00 अंश 50 कला तक का जो स्थान है, (यह भी 50 कला), यही स्थान ही अभुक्तमूल कहलाता है। यह दोनो भाग मिलाकर 1 अंश 40 कला बनता है, जो लगभग 90 मिनट का समय होता है।
अनेक ऋषियों के अनुसार यह 90 मिनट का यह समय या भाग अत्यंत कष्टकारी होता है।
यहां एक चार्ट दिया जा रहा है, जिसको देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि, अभुक्तमूल नक्षत्र का वह कौन सा भाग है, जो अत्यंत कष्टकारी होता है। और यह अभुक्तमूल नक्षत्र का भाग जन्म लेने वाले बालक या बालिका के स्वयं के शरीर या जीवन के लिए के लिये कष्ट देने वाला होता है।
नक्षत्र चरण के अनुसार अग्नि राशि के 3 नक्षत्रों – अश्विनी मघा और मूल के प्रथम तीन तीन चरण को, और जल राशि के 3 नक्षत्रों – अश्लेषा जेष्ठा वा रेवती के अंतिम तीन तीन चरणों में जन्म का फल या दोष इस तरह से कहा गया है चार्ट-

1. अश्विनी मघा और मूल नक्षत्र-
इन तीनों का पहला चरण बालक (लड़का) हो तो, पिता- पितृ पक्ष को कष्ट होता है। अगर वह बालिका (लड़की) हो तो, उसको स्वयं को कष्ट होता है।
इसके बाद दूसरे चरण में- अगर जन्म बालक (लड़का) हो तो, माता – माता पक्ष को अरिष्ट होता है। और अगर वह बालिका (लड़की) हो तो, पिता- पिता पक्ष को कष्ट होता है।
तीसरा चरण- में अगर वह बालक (लड़का) है तो, स्वयं को कष्ट। वह बालिका (लड़की) है तो, माता- माता पक्ष को कष्ट होता है।

2. अश्विनी मघा और मूल नक्षत्र में-
इन तीनों नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म होने पर वह बालक (लड़का) हो तो, उसको स्वयं को कष्ट होता है। अगर वह बालिका (लड़की) हो तो, माता – माता पक्ष को कष्ट होता है।
इन तीनों नक्षत्रों के तीसरे चरण में बालक (लड़का) हो तो, माता- माता पक्ष को कष्ट होता है। अगर वह बालिका (लड़की) हो तो, पिता- पिता पक्ष को कष्ट होता है।
इसी प्रकार चौथे चरण में- बालक (लड़का) हो तो, पिता- पिता पक्ष के लिए कष्ट बताया गया है। और बालिका (लड़की) हो तो, उस के लिए स्वयं अपने लिए अरिष्ट बताया गया है।
इस प्रकार यह सब विवरण गंडमूल के 6 नक्षत्रों का है, जिसमें अश्विनी मघा और मूल का चौथा चरण। और इसी तरह से अश्लेषा ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र के पहला चरण में कोई बच्चा जन्म लेता है तो, कोई गंडमूल दोष नहीं होता। बाकी सभी चरणों में जैसे बताया गया वैसे गंडमूल दोष होता है।
गंडमूल दोष होने पर गंडमूल शांति अवश्य करवा लेनी चाहिये।

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