कुंडली मिलान में नक्षत्रों की भूमिका-

Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

कुंडली मिलान में नक्षत्रों की भूमिका-
जिस प्रकार मुहूर्त समय के तारा बल देखा जाता है, और सम्बंधित जातक के जन्म नक्षत्र से प्रथम, तृतीय, पंचम और सप्तम नक्षत्र को अशुभ माना जाता है। इसी प्रकार सभी सांसारिक संबंधों से प्राप्त होने वाले दुःखों-सुखों का ज्ञान इन कष्टों के प्रतीक नक्षत्रों से प्राप्त किया जा सकता है। और इसी तरह वर-वधू के मिलान में भी तारा बल को महत्व दिया जाता है, इस नक्षत्र बल के द्वारा प्राप्त जानकारी वर-वधु के कुंडली मिलान के लिये बहुत लाभकारी सिद्ध होती है।

मेलापक में नक्षत्र तारा महत्वपूर्ण हैः- लग्न नक्षत्र से भौतिक शरीर के स्तर का विचार करना चाहिये। चंद्र नक्षत्र से मन के स्तर का विचार करना चाहिये। और इसी प्रकार आत्म कारक ग्रह के नक्षत्र से आत्मिक स्तर पर एक दूसरे के नक्षत्र की गणना करने से आपस के संबंधों के कारण जीवन को प्रभावित करने वाले सुख दुःख का पता लगाया जा सकता है।

वधु के जन्म नक्षत्र से यदि उसके जीवन साथी का जन्म नक्षत्र पहला, तीसरा, पांचवा, अथवा सातवां हो तो, वह जीवन साथी द्वारा कष्ट प्राप्त करती है। यही स्थिति वर के जन्म नक्षत्र से वधु के जन्म नक्षत्र तक गणना करने पर पता चलेगी।

यदि नक्षत्र मिलान अनुकूल न हो तो, विवाह के शीघ्र बाद लड़ाई झगड़े आरंभ हो जाते हैं, इस प्रकार मात्र किसी जातक- जातिका की कुंडली देखकर ज्ञात हो सकता है कि उस व्यक्ति का वैवाहिक जीवन किस प्रकार का होगा।

इसमें किसी एक के आत्म कारक ग्रह के नक्षत्र से दारा कारक ग्रह के नक्षत्र की गणना करें, और नक्षत्र तारा से पता करें, कि आत्म कारक से दारा कारक की क्रम संख्या अनिष्ट है, अथवा सुखद नक्षत्र में है।
यदि अपने ही आत्म कारक ग्रह के नक्षत्र से दारा कारक ग्रह का नक्षत्र प्रथम, तृतीय, पंचम, सप्तम में है तो, क्रमशः विवाह के उपरांत उतना ही ससुराल वालों द्वारा उपेक्षित या संघर्षों अथवा बहुत अधिक कष्ट और सप्तम हो तो बाद में विवाह विच्छेद के लिये भी परिस्थितियां विवश कर देती हैं।

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