कुंडली में कैसे बनता है, जेल यात्रा का योग (भाग-1)
Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.
जेल यात्रा का योग-
जेल यात्रा होने का कारण केवल अपराधी होना ही नहीं है। कभी-कभी तो अपराधी न होते हुये भी मनुष्य को झूठे आरोप में जेल यात्रा करनी पड जाती है, अर्थात् दुर्भाग्यवश जेल यात्रा होना, और कभी-कभी इसके विपरीत सौभाग्यवश भी जेल-यात्रा होती है। सामान्यतया ऐसा विश्वास है कि सदाचारी व्यक्ति को जेल- यात्रा की नौबत नहीं आती। किन्तु ऐसा सोचना हमारा भ्रम है। देखने में आता है कि नृशंस डाकू-हत्यारे, चोर और लुटेरे ही नही, बल्कि कुलीन घरानों के महापुरूष भी कभी-कभी बन्दीगृह में मेहमान बन जाते हैं। जेल यात्रा का कारण राजनीतिक प्रतिस्पर्घा या राजनैतिक द्वेषभाव भी होते हैं। बंदीगृह का एक उदाहरण भगवान् कृष्ण का जन्म है। जिनका जन्म ही बन्दीगृह में हुआ माना जाता है।
जेल का आधुनिक नाम बन्दी- सुधार गृह है। बन्दीसुधार गृह में रहने वाले बन्दीयों, आने-जाने वाले लोगों के अलावा अस्थाई रूप से बंदीसुधार गृह से सम्बंधित लोगों को हम सामान्यतया चार श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं-
1. भयंकर सामाजिक अपराधी, जैसे डाकू, हत्यारे आदि।
2. देशद्रोह के अपराध में बन्दी, जैसे युद्धबन्दी, जासूस, आतंकवादी।
इसमें नजरबंद (अपने ही निवास में कैद) एक विशेष प्रकार भी सम्मीलित है।
3. राजनैतिक अपराधी, जैसे राजनैतिक प्रतिद्वदी, क्रान्तिकारी लोग।
4. कारागार प्रशासन से सम्बन्धित राजकीय कर्मचारी, जैसे जेलर, जेल के डाक्टर, वकील इत्यादि।
ज्योतिषीय ग्रन्थों में जेल-यात्रा के अनेक योगों का उल्लेख मिलता है।
जातकालंकार के अनुसारः- यदि सम्पूर्ण अशुभ ग्रह 2, 5, 9 और 12 वें भावों में स्थित हों, तो जातक गिरफ्तार होकर जेल जाता है, और यदि साथ ही जन्म लग्न में मेष, वृष अथवा धनु राशि हो तो उसे सपरिश्रम कारावास का दण्ड मिलता है।
यहां एक कुंडली- वृश्चिक लग्न की दे रहे हैं, इस कुंडली में लग्न स्वामी मंगल है, जो कि षष्टेश भी है, इस की स्थिति द्वादश भाव में केतु के साथ है। इस कुंडली से विचार करेंगे कि कुंडली से जेल-यात्रा का अध्ययन किस प्रकार किया जाये?
इस वृश्चिक लग्न की कुंडली में पंचम भाव में तीन पाप ग्रह सूर्य, शनि और बुध की स्थिति है। 25/10/2012 सें 14/05/2015 तक जब राहु में बुध की अंतरदशा थी, विरोधीयों द्वारा 2013 के आरम्भ में एक झूठे मुकदमें (जिसमे हत्या की कोशिश का आरोप लगाया गया) में फंसाया गया। जो बाद में झूठा मुकदमा निकला और फरवरी 2014 तक जातक को बंदी गृह में रहना पड़ा। इस कुंडली में बुध की स्थिति एकादश और अष्टम का स्वामी होकर पंचम भाव में नीच राशि की है। कुंडली में जन्म चंद्र नक्षत्र भरणी है, भरणी से बुध की स्थिति 25वें नक्षत्र उ.भा. की है, राहु जिस नक्षत्र में स्थित है, वह भी जन्म नक्षत्र भरणी ही है। जहां राहु का नक्षत्र जातक के लिये जन्मतारा बनता है, वहीं बुध का नक्षत्र जातक के लिये वध तारा बनता है। वध तारा के परिणाम तो कष्टकर हैं ही परंतु जन्मतारा के परिणाम भी अनेक मामलों में शुभ नहीं देखे जाते। इसी कारण राहु महादशा और बुध की अंतर दशा में जातक को फरवरी 2013 से फरवरी 2014 तक बंदीगृह में रहना पड़ा।
जातकतत्व मेंः- भी इसी नियम का निर्देश है, किन्तु साथ ही योग की एक और शर्त भी शामिल है, कि यदि वृश्चिक लग्न हो, और द्वितीय, द्वादश, पंचम एवम् नवम् भाव में अशुभ ग्रह हों तो, जातक हवालात में बन्द रहता है, जेल नहीं जाता। इसका अर्थ है, अस्थाई या केवल कुछ ही समय के लिये बंदी रहने का योग होता है। इस कुंडली में पंचम मे तो पाप ग्रह हैं ही, साथ-ही-साथ द्वादश में भी केतु और मंगल पाप ग्रहों की स्थिति है। यदि मेष, मिथुन, कन्या अथवा तुला लग्न हो, तथा द्वितीय, द्वाद्वश पंचम् और नवम् भाव में अशुभ ग्रह हों तो, जातक हथकडियाँ पहनता है, परन्तु यदि कर्क, मकर, अथवा मीन लग्न हो, और लग्न से द्धितीय एवम् द्वादश भावों मंे अशुभ ग्रह हों तो, जातक को राजकीय भवन में नजर बन्द रहना पड़ता है, और यदि पंचम् एवम् नवम् स्थान से कोई शुभ ग्रह लग्न को देखता हो तो, उसे बेड़ियाँ नहीं डाली जाती। यदि लग्नेश और षष्ठेश शनि के साथ युक्त होकर केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हों तो, जातक को कैद की सजा होती है।
संकेत निधि के अनुसारः- यदि शुक्र द्वितीय भाव में, चन्द्रमा लग्न में, सूर्य एवं बुध द्वादश भाव में, और राहु पचंम भाव में हों तो जातक को जेल की सजा होती है। इसी ग्रन्थ में जेल यात्रा के लिये षष्ठम् एवम् द्वादश भाव का विवेचन भी आवश्यक माना गया है। इस प्रकार हमारे आचार्यो ने द्वादश भाव के साथ-साथ पचंम् नवम् एवम् अष्टम् भावों की विवेचना को ‘जेल यात्रा’ के लिए आवश्यक विचारणीय भाव माना है।
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