कुंडली में कैसे बनता है, जेल यात्रा का योग (भाग-2)-

Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

जेल यात्रा का योग (भाग-2)-
इससे पहले वाले लेख में मैने जातक अलंकार, जातक तत्व और संकेत निधि के अनुसार बनने वाले जेल यात्रा के योगों की चर्चा की थी, आइये इस वीडियो में जेल यात्रा के विषय में डिटेल में और गम्भीरता पूर्वक विचार करते हैं।
1. जेल-यात्रा में जातक अपने परिवार से बिछुड़ जाता है। उसके स्वच्छन्द विचरण की स्वतन्त्रता नष्ट हो जाती है।
2. निवास स्थान का परिवर्तन हो जाता है सुख-शयन का अवसर समाप्त हो जाता है।
इन्हें हम ज्यौतिषीय भाषा में इस प्रकार कह सकते है:-
1. कुटुम्ब (द्वितीय भाव) से वियोग होता है।
2. स्वच्छन्द विचरण (द्वादश भाव) में बाधा होती है।
3. निवास स्थान (चतुर्थ भाव) का परिवर्तन होता है।
4. सुखपूर्वक शयन (द्वादश भाव) का अभाव होता है।
5. मानसिक क्लेश (अष्टम् भाव) सक्रीय हो जाता है।
6. शत्रु पीड़ा (षष्ठ भाव) सक्रीय हो जाता है।
7. आत्म ग्लानि (पंचम् भाव) सक्रीय हो जाता है।
8. हृार्दिक पश्चाŸााप (नवम् भाव) की स्थिति में होता है।
इस विषय में पराशरी ज्योतिष की आधुनिक विधि नक्षत्र-गणित का अध्ययन करना जिज्ञासु विद्यार्थीयों को एक नवीनतम दिशा प्रदान कर सकता है।
आधुनिक युग में जेल-यात्रा के योगों का विश्लेषण कुछ इस प्रकार किया जा सकता हैः-

1. वे अशुभ ग्रह जो द्वितीय और द्वादश भावस्थ ग्रहों के नक्षत्र में हों।
2. द्वितीय और द्वादश भाव में स्थित ऐसे ग्रह जो दुःस्थानों (6, 8, 12) के स्वामी हों।
3. वे अशुभ ग्रह जो द्वितीय और द्वादश भावों के अधिपति ग्रहों के नक्षत्र में हों।
4. द्वितीय और द्वादश भावों के स्वामी ग्रह।

जब इन ग्रहों की विंशोत्तरी महादशा और अंतरदशा अथवा प्रत्यन्तर में (संयुक्त रूप से दशाकाल के समय में) इन्हीं ग्रहों द्वारा नियंत्रित हो, और गोचर में सूर्य, चन्द्रमा एवम् दशानाथ और अंतरदशानाथ आदि पारस्परिक नक्षत्रों मंे विचरण कर रहे हों, तब जातक को जेल-यात्रा करनी पड़ेगी।
जेल-यात्रा का कारण प्रमुखतः द्योतक ग्रहों के अनुसार इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है:-
1. यदि लग्नेश इन सभी ग्रहों से किसी प्रकार का सम्बन्ध रखता हो, तो जातक को अदालत के द्वारा जेल की सजा होती है।
2. यदि षष्ठेश इन ग्रहों से सम्बन्ध रखता हो तो, जातक को दीवानी अदालत से, कर्जा न चुकाने के अपराध अथवा झगडे के कारण सजा होती है।
3. गुरू, शुक्र या नवमेश यदि लग्नेश तथा इन ग्रहों से सम्बन्ध रखते हों तो, जातक को राजनैतिक कारणों से जेल की सजा होती है।
4. यदि मंगल अष्टमेश होकर इन ग्रहों से सम्बन्ध रखता हो तो, चोरी डकैती के आरोप में जेल की सजा होती है।
5. यदि शनि और बुध का इन ग्रहों से सम्बध हों तो रिश्वतखोरी, मुनाफाखोरी, जालसाजी अथवा गबन के आरोप में जेल की सजा होती है।
6. मंगल, शनि और शुक्र का इन ग्रहों से सम्बन्ध, जातक को बलात्कार अथवा अपहरण के अपराध में जेल यात्रा करवाता है।
7. मंगल और शनि का इन ग्रहों तथा अष्ठम भाव से सम्बन्ध हो, तो हत्या के अपराध में जातक को जेल का मार्ग प्राप्त होता है।
8. सप्तमेश मंगल व शुक्र यदि इन ग्रहों या स्थानों से सम्बंध बनाता हो, तो पत्नी-पक्ष से आरोपित होकर जेल यात्रा होती है।

इसी प्रकार जेल से मुक्तिः- अर्थात परिवार से पुनर्मिलन एवं स्वेच्छाचरण की स्वतन्त्रता। यह स्थिति द्वितीय एवं एकादश भावों के अन्तर्गत आती है। इस लियेः जेल से मुक्ति का निर्धारण वे शुभ ग्रह ही करते हैं, जो पहले बताई गई विधि से द्वितीय एवं एकादश भावों के संयुक्त हों।
निचोड़ यह कि विंशोŸारी दशा-अंतर में द्वितीय एवं द्वादश भावों के ग्रहों की दशा जहाँ जेल यात्रा का संकेत देती है, वहीं द्वितीय एवं एकादश भावों के साथ सम्बद्ध ग्रहों की दशा जेल से मुक्ति का समय दर्शाती है। इस प्रकार जेल-प्रवास की अवधि का अनुमान लगाया जा सकता है।
उपरोक्त विवेचन के अतिरिक्त कुछ अन्य बातें भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
1. यदि द्वितीय एवं द्वादश भावों के सूचक ग्रह तृतीय, षष्ठम् अथवा नवम् भावों में स्थित हों, तथा इन भाव में यदि स्थिर राशि हो तो जेल यात्रा की अवधि लम्बी हो सकती है।
2. यदि अष्टमेश बली हो, एवंम दूषित भी हो तो, जातक की मृत्यु जेल प्रवास की अवधि में हो सकती है।
3. जेल यात्रा का कारक ग्रह राहु है। यदि द्वितीय या द्वादश स्थान में स्थित ग्रह राहु के नक्षत्र में हों या राहु द्वितीय अथवा द्वादश भाव से सम्बन्ध रखता हो तो, जातक को जेलयात्रा करनी ही पड़ती है। चाहे उसने अपराध किया हो अथवा नहीं। जेल-कर्मचारी अथवा किसी अन्य कार्यवश जेल में रहने वाले व्यक्तियों की कुंडली में इस प्रकार का योग देखा जा सकता है।

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