त्रिकेशों की युति
Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.
कितनी घातक है त्रिकेशों की युति-
किसी जातक के भूत, भविष्य एवं वर्तमान के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये नक्षत्र चक्र एक मुख्य आधार माना जाता है। नक्षत्र चक्र 27 नक्षत्र या कुंडली के बारह भावों से जीवन के सभी क्रिया कलापों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है।
किसी जातक के सभी भाव समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। चाहे भाव शुभ हो या अशुभ जन्म के समय राशि, नक्षत्र और भाव में उपस्थित ग्रह ही भाव से सम्बन्धित शुभाशुभ फलों का निर्धारण करते हैं। यह भी जरूरी नहीं है कि, कोई ग्रह उच्च का होकर हमेशा शुभ फलों की ही प्राप्ति करवाएगा और न ही कोई नीच ग्रह हमेशा अशुभ देता है।
ग्रह का नक्षत्र, ग्रह की राशि, और भाव एवं उस ग्रह के साथ युति ही शुभाशुभ फलों का निर्धारण करवाती है। कुंडली चक्र के बारह भावों के स्वामियों को भावेश कहते हैं। इन भावों को ही लग्न, केन्द्र, त्रिकोण उपचय, अनुपचय, त्रिक आदि नामों से पुकारा जाता है। कुंडली चक्र का छठा आठवाँ एवं बारहवाँ भाव त्रिक भाव कहलाते हैं। इनके स्वामियों को त्रिकेश कहा जाता है। छठा भाव रोग, ऋण, और शत्रु का तो अष्टम भाव आयु, गुप्तांग, गड़ा हुआ धन, खोज रिसर्च का एव बारहवा भाव शयन सुख, काम भाव, व्यय एवं मोक्ष प्राप्ति के बारे में जानकारी प्राप्त करवाता है।
जातक ग्रंथों में छठे एवं आठवें भाव के स्वामीयों में परस्पर स्थान सम्बंध होने पर विशेष शुभ घटनाएं होती हैं। परंतु यदि षष्ठेश एवं अष्टमेश की युति षष्ट-अष्ठम के अतिरिक्त किसी भाव में हो या फिर किसी अन्य स्थान स्वामी की स्थिति षष्ठ या अष्टम में हो तो, जातक को अप्रत्याशित दुःखों का सामना करना पड़ता है। जातक परिजात के अनुसार छठे भाव में स्थित एवं षष्ठेश से दृष्ट ग्रह व किसी रोग से पीडित होता है, या किसी शत्रु के द्वारा करवाएं गये तांत्रिक प्रयोग से पीड़ा दायक कष्ट का प्रकोप होता है। इसमें यदि अष्टमेश का सम्बंध बन जाए तो पीड़ा और भी असहनीय हो जाती है। यहाँ पर जातक को हमेशा निराशा ही हाथ लगती है। यह युति जिस भाव में बन रही होती है उस भाव का फल जातक को अत्यंत कम मिलता है।
लग्न में युति होने पर उसका अपना व्यक्तित्व प्रभावशाली नहीं होता। शरीर हमेशा अस्वस्थ रहता है। कार्य व्यवसाय में भी अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं होती। कुल मिलाकर इनका जीवन निराशामय रहता है। यह भी सम्भव है की इनके जीने की इच्छा ही समाप्त हो जाए।
द्वितीय भाव में यदि ऐसा योग बन रहा हो तो, ऐसे जातक गूंगे होते हैं या इनका वाणी पर नियंत्रण नहीं रहता, अथवा प्रभावशाली तरीके से बात नहीं कर पाते हैं। अभक्ष्य पदार्थों का भी यह सेवन करते हैं। इनके पास धन की कमी रहती है, जिससे परिवार का सुख इन्हें नहीं मिल पाता।
तृतीय भाव में युति होने पर भाईयों बहनों से इनकी नहीं बनती। मित्र वर्ग कम ही होते हैं। गले में या कान में कोई विशेष रोग होने की सम्भावना रहती है।
चतुर्थ भाव में युति होने पर उसको अपने निवास से दूर रहना पड़ता है। अर्थात परदेश में जीवन व्यतीत करना पड़ता है। लोगों से आशानुरूप सम्बंध नहीं रहते। मानसिक रूप से तनावयुक्त जीवन व्यतीत होता है। कार्य व्यवसाय में भी अपने प्रभाव को नहीं दिखा पाते।
पंचम भाव में युति होने पर संतान सुख प्राप्ति में कठिनाई होती हैं। ईष्ट की कृपा कम ही होती है, एवं ईष्ट के विषय में विरोधाभास हमेशा रहता है। शेयर बाजार एवं राजनीति से हमेशा हानि ही होती है।
छठे भाव में युति मृत्यु तुल्य कष्ट देती है, तो अष्टम में युति मृत्युतुल्य कष्ट देती है। दशम भाव में युति होने पर योग्यता होने पर भी उसे अपेक्षित कार्य व्यवसाय की प्राप्ति नहीं होती। किसी कार्य व्यवसाय को प्रारंभ करने पर ग्राहकों की कमी रहती है। कार्य स्थल पर आया ग्राहक भी वापस चला जाता है।
यदि यह युति सप्तम भाव में बन जाए तो ऐसा जातक अविवाहित रहता है। जातक के पास सभी प्रकार की सुविधा होते हुए भी, अविवाहित रहता है। जातक के पास सभी प्रकार की सुविधा हो, जातक सुसंस्कार वान हो, कर्म भी शुभ करता हो, तो भी उसका विवाह नहीं हो पाता। यदि विवाह हो भी जाए तो दाम्पत्य जीवन निराशामय ही रहता है।
भाग्य भाव में युति बनने पर पितृ पक्ष से परेशानी रहती है। संतान सुख नहीं मिलता। संतान हमेशा अस्वस्थ रहती है। इसी प्रकार से उसकी धर्म के प्रति आस्था भी डगमगाती रहती है।
दशम एकादश भाव में युति लाभ प्राप्ति अर्थात धन के लिये तरसाती है। कार्य व्यवसाय को करने पर हमेशा हानि उठानी पड़ती है अर्थात यह युति विशेष रूप से अशुभ फलदायक बनती है। मैंने सैकड़ों कुंडलियों में देखा है कि ऐसे जातक हमेशा शुभता की खोज में अनेक ज्योतिषियों या तांत्रिक बाबाओं के पास भटकते रहते हैं। और कई प्रकार की साधनाएं, उपासना मंत्र पाठ भी करते रहते हैं लेकिन जब तक उचित उपाय नहीं हो पाता। तब तक इनका वह भाव अशुभ फल ही प्रकट करता रहता है।
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