80 प्रकार के वात रोग
Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.
चरक संहिता में बताए गए हैं- वात तत्व के कूपित होने से होने वाले 80 प्रकार के रोग, इन सभी लोगों का नियंत्रक ग्रह शनि है। सामान्यत शरीर में वात-पित्त-कफ समान रूप से होने पर व्यक्ति स्वस्थ रहता है। परंतु यदि शरीर में इन तीनों का संतुलन बिगड़ जाए तो कई रोग हो जाते हैं। शरीर में वात-पित्त-कफ समान रूप से होने पर व्यक्ति स्वस्थ रहता है। यदि शरीर में इन तीनों का संतुलन बिगड़ जाए तो कई रोग हो जाते हैं। यहां प्रस्तुत हैं वात तत्व के कूपित होने शरीर में होने वाले वाले 80 प्रकार के वात रोग-
1. नखभेद: नाखूनों का टूटना। 2. विपादिका: हाथ-पैर फटना। 3. पादशूल: पैरों में दर्द होना। 4.पादभ्रंश: पैरों पर नियंत्रण न हो पाना। 5. पादसुप्तता: पैरों का सुन्न होना। 6. वात खुड्डता: पैर व जांघ की संधियों में वात जन्य वेदना का होना, पिंडली वाली दो हड्डियां, घुटनों के नीचे वाली दो हड्डियों (जंघास्थि और अनुजंघास्थि) टखने से एड़ी तक के हिस्से के जोड़ों में दर्द और लंगड़ापन। 7. गुल्फ ग्रह: (गुल्फ प्रदेश का जकड़ जाना)- एड़ी के आसपास सात हड्डियों के समूह को गुल्फ प्रदेश कहते हैं। 8. पिडिकोद्वेष्टन: पैर की पिंडलियों में ऐंठन जैसा दर्द। 9. ग्रध्रसि: सायटिका का दर्द। इसमें कमर से कूल्हे की हड्डी में होकर पैर तक एक सायटिका नाड़ी (ग्रध्रसि नाड़ी) में सुई की चुभन जैसा दर्द होता है। 10 . जानू भेद: घुटनों के ऊपर वाली हड्डी। ये दोनों पैरों पर 1-1 होती है। इसमें टूटने जैसा दर्द। 11. जानुविश्लेष: जानू की संधियों का शिथिल हो जाना। 12. उरूस्तंभ: जानू हड्डी का जकडऩा। यदि दर्दनाशक तेल मलने से दर्द बढ़े तो उरूस्तंभ वात रोग होता है वर्ना नहीं। 13. ऊरूसाद: ऊरूप्रदेश में अवसाद यानी शिथिलता का अनुभव होना। 14. पांगुल्य: लंगड़ापन। 15. गुदभ्रंश: गुदा बाहर निकलना। 16. गुदा प्रदेश में दर्द। 17. वृषणोत्क्षेप (अंडग्रंथियों का ऊपर चढ़ जाना)। 18. शेफ स्तंभ: मूत्रेन्द्रियों में जकड़ाहट। 19. वंक्षणानाह: वंक्षण प्रदेश में बंधन के समान पीड़ा होना। 20. श्रोणिभेद: कूल्हे वाली हड्डी में तोडऩे जैसा दर्द। 21. विड्भेद: मल स्थान के आसपास तोडऩे जैसी पीड़ा। 22. उदावर्त: पेट की गैस ऊपर की ओर आना। 23. खंजता: लंगड़ापन आना। 24. कुब्जता: कूबड़ का होना। 25. वामनत्व: उल्टी होना। 26. त्रक ग्रह: पृष्ठ ग्रह- पीठ व नीचे तक बैठक वाली स्थान की हड्डी त्रिकास्थि में दर्द होना। 27. पार्श्वमर्द: पार्श्व प्रदेश में मर्दन के समान पीड़ा होना। 28. उदरावेष्ट: पेट में ऐंठन होना। 29. दिल बैठने जैसा महसूस होना। 30. हृदद्रव: हृदय में द्रवता अर्थात् शीघ्रता से गति का होना। 31. वक्षोद्घर्ष (वक्षप्रदेश में घिसने के समान पीड़ा)। 32. वक्षोपरोध: वक्षरूस्थल की गतियां यानी फुफ्फुस व हृदय गति में रुकावट का अनुभव। 33. वक्षरूस्तोद: छाती में सुई चुभने जैसी पीड़ा। 34. बाहूशोष: भुजा से अंगुली तक मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन व जकडऩ। हाथ ऊपर न उठना। 35. ग्रीवास्तम्भ: गर्दन का जकड़ जाना। 36. मंथा स्तम्भ: गर्दन के पीछे लघु मस्तिष्क के नीचे के हिस्से में जकडऩ व पीड़ा। 37. कंठोध्वंस: गला बैठ जाना। 38. हनुभेद: ठोडी में पीड़ा। 39. ओष्ठभेद: होंठों में दर्द। 40. अक्षिभेद: आंखों में दर्द। 41. दन्तभेद: दांतों में पीड़ा। 42. दन्तशैथिल्य: दांतों का हिलना। 43. मूकत्व: गूंगापन। 44. बाक्संग: आवाज बंद होना। 45. कषायास्यता: मुंह कड़वापन होना। 46. मुखशोष: मुंह का सूखना। 47. अरसज्ञता: रस का ज्ञान न होना। 48. घ्राणनाश: गंध का ज्ञान न होना। 49. कर्णमूल: कान की जड़ में दर्द(कान के पीछे वाला हिस्सा कंठ से कुछ पूर्व का भाग तक) कनफेड़ रोग इसी में होता है। 50. अशब्द श्रवण: ध्वनि न होते हुए भी शब्दों का सुनना। 51. उच्चौरूश्रुति: ऊंचा सुनना। 52. बहरापन। 53. वर्त्म स्तंभ: आंखों की पलकें ऊपर- नीचे नहीं होना। 54. वर्त्म संकोच: नेत्र में सूजन व पलकें सिकुड़ जाती हैं जिससे आंखें खोलने में परेशानी होने लगती है। 55. तिमिर: आंखों से धुंधला व कम दिखाई देना। 56. नेत्रशूल: आंखों में दर्द होना। 57. अक्षि व्युदास: नेत्रों का टेढ़ा होना। 58. भ्रूव्य दास: भौंहों का टेढ़ा होना। 59. शंखभेद: कनपटी में दर्द। 60. ललाट भेद: आंखों के ऊपर वाले हिस्से में पीड़ा। 61. शिर: सिरदर्द। 62. केशभूमिस्फुट: बालों की जड़ों में विकृति होना। 63. अर्दित: मुंह का लकवा। 64. एकाग घात: इसमें पेशी शिथिल हो जाती है। 65. सर्वांगघात: यह जन्मजात मस्तिष्क का रोग है। 66. आक्षेपक: हाथ पैरों को जमीन पर पीटना व बार-बार उठाना, मस्तिष्क में वातनाड़ी दूषित होने पर मिर्गी जैसे झटके आना। 67. दंडक: शरीर में वात दृष्टि से पूरे शरीर की मांसपेशियां डंडे की तरह स्थिर हो जाती हैं। इसे दंडापतानक कहते हैं। 68. तमः तमदोष: झुंझलाहट होना। 69. भ्रम: चक्कर आना। 70. वेपथु: कंपकंपी होना। 71. जंभाई: उबासी आना। 72. हिचकी। 73. विषाद्: दुखी रहना। 74. अतिप्रलाप: बिना बात के निरर्थक बोलना। 75. शरीर में रूक्षता: रुखापन। 76. शरीर में परुषिता: शिथिलता आना। 77. शरीर का काला होना। 78. शरीर का रंग लाल होना। 79. नींद न आना। 80. चित्त स्थिर न रहना।
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