शारदीय नवरात्रि 2022

Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

इस वर्ष 26 सितम्बर 2022 से शारदीय नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं, नवरात्रों में शक्ति की पूजा और साधना आराधना की जाती है। पहले नवरात्र के दिन घट स्थापना से संकल्प लेकर पूजा आरम्भ होती है। नवें दिन कन्या पूजन के साथ दुर्गा पूजा सम्पन्न हो जाती है।
पूरे साल में नवरात्रि चार बार पड़ती हैं। 2 नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के नाम से जानी जाती है और 2 प्रत्यक्ष नाम से। जो 2 गुप्त नवरात्रि हैं उनमें साधक विशेष साधना सिद्धियां करते हैं। और शेष दो नवरात्रि में सभी सनातन गृहस्थ शक्ति पूजा करते हैं। इस प्रकार सभी सनातनी चारों नवरात्रों का महत्व जानते हैं, चारों नवरात्रों में चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्रि से सभी परिचित है।
इस वर्ष 26 सितंबर 2022 से शारदीय नवरात्रि आरंभ हो रही हैं। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूप की आराधना की जाती है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि आरंभ होगी। जो 26 सितम्बर 2022 प्रतिपदा से नवमी तिथि यानि 05 अक्टूबर 2022 तक मनाई जाएगी।
नवरात्रि के दौरान सभी सनातनी मां दुर्गा की पूजा आराधना करते हैं और पूरी श्रद्धा से उपवास रखते हैं। कुछ लोग पूरे नौ दिन उपवास रखते हैं तो कुछ लोग पहला और आखिरी दिन उपवास रखते हैं। शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन सभी सनातन घरों में कलश स्थापित किए जाते हैं।

इस वर्ष 26 सितम्बर 2022 से शारदीय नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं, नवरात्रों में शक्ति की पूजा और साधना आराधना की जाती है। पहले नवरात्र के दिन घट स्थापना से संकल्प लेकर पूजा आरम्भ होती है। नवें दिन कन्या पूजन के साथ दुर्गा पूजा सम्पन्न हो जाती है।
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि को बेहद शुभ माना गया है, क्योंकि इस बार माता हाथी पर सवार होकर आ रही हैं। आइए जानते हैं शारदीय नवरात्रि के दिन कलश स्थापना का मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।
शारदीय नवरात्रि 26 सितम्बर 2022 सोमवार के दिन घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त प्रातः 06ः 30 से
10 बजे तक रहेगा।

शारदीय नवरात्रि में घट स्थापना और पूजा विधि –
प्रथम नवरात्रि यानी प्रतिपदा तिथि को सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त स्नान कर लें। इसके बाद अपने मंदिर को साफ करें, और भगवान गणेश का नाम लेकर। कलश स्थापना के लिए मिट्टी के एक पात्र में थोड़ी सी मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं।
और एक तांबे के कलश लेकर उस पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। कलश के ऊपरी हिस्से में कलावा बांधें। कलश में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं।
इसके बाद श्रद्धा के अनुसार कलश में थोड़ी दूर्वा, सुपारी, और अक्षत (चावल) डालें। कलश पर अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं।
इसके बाद जटा वाला नारियल लेकर लाल कपड़े से लपेटकर उसे कलावा बांध दें, और कलश के ऊपर रख दें। अब कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें, जिसमें जौ बोए हैं। साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जलाई जाती है।
कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों का या फिर पूजा अनुष्ठान का संकल्प लेना चाहिए। देवी के जिस मंत्र का जप पूजा करना चाहते हैं, वह 9 दिन की पूजा कलश स्थापना के साथ आरम्भ हो जाती है।
घट स्थापना के बाद अखंड दीपक प्रज्जवलित करके श्रीदुर्गा देवी का आवाहन और पूजन करके सप्तशती का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए।

पूजन मंत्र-
ऊँ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिन।
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।
आगच्छ वरदे देवी। पूजां गृहाण सुमुखि नमस्ते शंकरप्रिये।

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