दीपावली

Dr.R.B.Dhawan Guruji

दीपावली
भारतीय संस्कृति में दीपावली का महोत्सव अपना विशिष्ट स्थान रखता है। पुराणों ने इसे धर्म से सिंचित कर अनेक कथानक सौंदर्य से अलंकृत किया है। राजा बलि ने भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी को दान देने के पश्चात् आर्यों को कार्तिक की अमावस्या तक शासन करने का अधिकार दिया था। कहा जाता है कि इसी अमावस्या को भगवान विष्णु लक्ष्मी को बलि के कारगार से मुक्ति कर लाये थे। इसी भावना से अभिभूत होकर लक्ष्मी का पूजन महोत्सव मनाया जाता है। बौद्ध मतावलम्बी इसी दीपावली के दिन नये धान का लावा, च्यूरा और बताशों से भगवान् बुद्ध का पूजन करने के पश्चात् शील ग्रहण, धर्म श्रवण और दान किया करते हैं और निशाकाल में भगवान के मन्दिर और अपने निवास स्थानों में दीपक जलाते और उत्सव करते हैं।
सनत्कुमार संहिता में दीपावली के सम्बंध में लिखा है कि कार्तिक कृष्ण अमावस्या तिथि को श्री विष्णु भगवान बलि के बन्धन से लक्ष्मी को छुड़ाकर क्षीरसागर पर ले गये थे। कुछ मनीषियों की कल्पनायें हैं कि भगवान रामचंद्र द्वारा लंका पर विजय प्राप्त करने के फलस्वरूप उसी के उपलक्ष में विजय दशमी के पश्चात आने वाली अमावस्या को दीप जलाकर उत्सव मनाया था, परन्तु यह कल्पना कुछ अधिक प्रमाणित नहीं लगती क्योंकि दीपावली का महोत्सव उससे भी प्राचीन है। बावनावतार ने राजा बलि से उनका राज्य कपट से लेकर उसे आर्यों के आधीन कर दिया था। उसी से प्रसन्न होकर यह महोत्सव मनाया जाता है।
महालक्ष्मी एवं दीपमालिका पूजन:-
निर्णय सिन्धु के अनुसार इस महोत्सव पर बालक और आतुरों को छोड़कर दिन में व्रत और उपवास और प्रदोष काल अर्थात् जिस समय सूर्यास्त हो जाये उस समय नये सुन्दर वस्त्रों एवं अलंकारों से लक्ष्मी का मण्डप सजा कर षोडषोपचार से लक्ष्मी का पूजन करें। स्वयं नवीन वस्त्र धारण करके पूजन करना चाहिये। लक्ष्मी के लिये कमलों की शैय्या बनायें। जातीपत्र, लवंग, ऐलाफल और कपूर को गऊ के दूध में मिश्रित कर खोया बनायें और उसमें बूरादेशी मिलाकर उसके लड्डू लक्ष्मी जी को चढ़ायें इसके बाद दीपदान करें और अपने घर को दीपों से सुशोभित कर द्वार, चौराहे और देव स्थान में दीप जलायें, तत्पश्चात् जलती हुई मशाल अपने सिर के ऊपर से फिरायें। भिक्षुकों को भोजन करायें और बाद में स्वयं भोजन करें।
स्वाती नक्षत्र का महत्व:-
महालक्ष्मी के पूजन में स्वाती नक्षत्र का विशेष महत्व शास्त्र ने माना है।
पुष्कर पुराण का वचन है कि जब स्वाती नक्षत्र के सूर्य में जिस दिन स्वाती का ही चंद्रमा हो उस समय जो मानव अम्यंग पंच त्वचा के जल में स्नान करके आरती और महालक्ष्मी की पूजा करता है उसे लक्ष्मी नहीं त्यागती।
जैसा कि:-
स्वाती स्थिते रवाविन्दुर्यदि स्वाति गती भवेत्।
पंचत्वमुदकस्नायी कृताभ्यंगं विधिर्नरः।।
नीराजितो महाक्ष्मीमर्चयछिंयमश्नुते।।
पुष्कर पुराण
पूजन का समय:-
दीपमालिका का पूजन यद्यपि प्रदोष काल में प्रधान रूप से माना गया है, परन्तु दिवोदासीय में प्रदोष को कर्म का समय होने से और ब्रह्मपुराण के इस वचन से कि अर्धरात्रि के समय घरों में जाने के लिये लक्ष्मी घूमती हैं अतएवं मनुष्य अलंकार, नवीन वस्त्रादि पहनकर और मस्तक पर केसरिया चंदन लगाकर दीपक के उजाले में उत्सव के साथ जागरण करते रहें और सफेद पुष्पों के माला से सुशोभित रहते हुये प्रदोष अथवा अर्थ रात्रि में लक्ष्मी पूजन करें।

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Dr.R.B.Dhawan Guruji दीपावली भारतीय संस्कृति में दीपावली का महोत्सव अपना विशिष्ट स्थान रखता है। पुराणों ने इसे धर्म से सिंचित कर अनेक कथानक सौंदर्य से अलंकृत किया है। राजा बलि ने भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी को दान देने के पश्चात् आर्यों को कार्तिक की अमावस्या तक शासन करने का अधिकार दिया था। कहा जाता है कि…