धन त्रयोदशी
Dr.R.B.Dhawan Guruji
कुबेर साधना।
महाराज वैश्रवण कुबेर की उपासना से संबंधित मंत्र, यंत्र, ध्यान एवं उपासना आदि की सारी प्रक्रियायें श्रीविद्यार्णव, मंत्र महार्णव, मंत्र महोदधि, श्रीतत्त्व निधि तथा विष्णुधर्मोत्तरादि पुराणों में विस्तार से निर्दिष्ट हैं। इन ग्रंथों के अनुसार इनके अष्टाक्षर, षोडशाक्षर तथा पंचत्रिंशदक्ष-रात्मक छोटे-बड़े अनेक मंत्र प्राप्त होते हैं। मंत्रों के अलग-अलग ध्यान भी बताए गये हैं। मंत्र साधना में गहन रूची रखने वाले साधक इन ग्रन्थों का अवलोकन कर सकते हैं।
यहाँ हम एक सरल साधना पद्धति बता रहे हैं जो साधना धनत्रयोदशी के दिन की जानी चाहिये यदि कोई साधक इस साधना को दीपावली की रात्रि में करना चाहे तो उस महापर्व पर भी यह साधना कर सकते हैं। अथवा दोनो ही दिन (धनत्रयोदशी तथा दीपावली पर) यह साधना सम्पन्न की जा सकती है।
इस वर्ष धनत्रयोदशी 22 अक्तूबर 2022 तथा दीपावली पर्व 24 अक्तूबर 2022 के दिन है। यह साधना भी स्थिर लग्न में ही सम्पन्न की जाती है। ‘स्थिर लग्न’ इन दिनों में वृष तथा सिंह ही पढ रही हैं। वृषभ लग्न 22 अक्तूबर 2022 धनत्रयोदशी के दिन सांय 07 बजे से रात्रि 08 बजकर 50 मिनट तक,
तथा सिंह लग्न मध्य रात्रि में ठीक 1 बजकर 30 मिनट से 03 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।
इसी प्रकार दीपावली 24 अक्तूबर के दिन वृषभ लग्न सांयकाल 06 बजकर 45 मिनट से रात्रि 08 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।
तथा सिंह लग्न 24 अक्तूबर मध्य रात्रि को 1 बजकर 15 मिनट से 03 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। इस साधना के लिये यह स्थिर लग्न का मुहूर्त सर्वोत्तम महूर्त माना गया है।
इस दिन स्थिर लग्न में शुद्ध रजत (चांदी) पर निर्मित कुबेर यंत्र तथा जप के लिये रूद्राक्ष की 108 दाने की माला का प्रयोग किया जाना चाहिये। इसमें कुबेर यंत्र यदि चांदि में ना मिल सके तो तांम्र पर भी ले सकते हैं। किसी विद्वान से यंत्र को प्राण प्रतिष्ठित करवा लें, और एक नई रूद्राक्ष माला पहले ही ले लें
धनत्रयोदशी की रात्रि में उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। पुरूष साधक पीले वस्त्र तथा महिलायें पीली साड़ी पहनकर बैठें। सामने एक लकड़ी के पटरे पर पीला रेशमी वस्त्र बिछाकर उस पर प्राण प्रतिष्ठित श्री कुबेर यंत्र स्थापित करें, और साथ ही शुद्ध घी का दीपक जलाकर पंचोपचार पूजा करें मिठाई का भोग लगावें तथा विनियोगादि क्रिया करके 11 माला रूद्राक्ष की माला से कुबेर मंत्र का जप करें।
जप सम्पूर्ण होने पर प्रसाद रूप में मिठाई परिजनों को वितरण करें और फिर रात्रि में उसी पूजा स्थल में ही निद्रा विश्राम करें। प्रातः शेष फूलादि सामग्री जल में विसर्जित कर दें, तथा श्री कुबेर यंत्र को पीले आसन सहित अपनी तिजोरी कैश बॉक्स या अलमारी अथवा संदूक में रख दें। तथा रूद्राक्ष की जप माला को गले में धारण करें।
विनियोग:-
सर्वप्रथम हाथ में जल लेकर निम्नलिखित विनियोग करें-
अस्य श्रीकुबेर मंत्रस्य विश्रवा ऋषिः बृहती छन्दः धनेश्वरः कुबेरो देवता ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
करन्यासः-
विनियोग के उपरांत करन्यास करें-
यक्षाय अंगुष्ठाभ्यां नमः।
कुबेराय तर्जनीभ्यां नमः।
वैश्रवणाय मध्यमाभ्यां नमः।
धनधान्याधिपतये अनामिकाभ्यां नमः।
धनधान्य समृद्धिं में कनिष्ठकाभ्यां नमः।
देहि दापय स्वाहा करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।
षडंगन्यासः-
करन्यास के उपरांत षडंगन्यास करें-
यक्षाय हृदयाय नमः।
कुबेराय शिरसे स्वाहा।
वैश्रवणाय शिखायै वषट्।
धनधान्याधिपतये कवचाय हुम्।
धनधान्य समृद्धि में नेत्रत्रयाय वौषट्।
देहि दापय स्वाहा अस्त्राय फट्।
कुबेर का ध्यानः-
इनके मुख्य ध्यान श्लोक में इन्हें मनुष्यों के द्वारा पालकी पर अथवा श्रेष्ठ पुष्पक विमान पर विराजित दिखाया गया है। इनका वर्ण गारुडमणि या गरुडरत्न के समान दीप्तिमान् पीतवर्णयुक्त बतलाया गया है, और समस्त निधियां इनके साथ मूर्तिमान् होकर इनके पार्श्वभाग में निर्दिष्ट हैं।
ये किरीट मुकुटादि आभूषणों से विभूषित हैं। इनके एक हाथ में श्रेष्ठ गदा तथा दूसरे हाथ में धन प्रदान करने की वरमुद्रा सुशोभित है। ये उन्नत उदरयुक्त स्थूल शरीर वाले हैं। ऐसे भगवान् शिव के परम मित्र सुहृद् भगवान् कुबेर का ध्यान करना चाहिए-
मनुजवाह्यविमानवरस्थितं
गरुडरत्ननिभं निधिनायकम्।
शिवसखं कमुकुरादिविभूषितं वरगदे दधतं भज तुन्दिलम्।।
सम्पन्नता के लिये कुबेर मंत्र-
यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्य समृद्धिं में देहि दापय स्वाहा।
वैसे तो इस मंत्र की जप संख्या एक लक्ष (एक लाख) कही गयी है। परंतु धन त्रयोदशी की रात्रि में जितना हो सके विधि विधान से इस मंत्र का जप करना ही प्रयाप्त होता है। मंत्र का जप सम्पन्न होने पर तिल और शुद्ध घी से दशांश हवन करना चाहिये।
Teligram : 9810143516
Dr.R.B.Dhawan Guruji कुबेर साधना।महाराज वैश्रवण कुबेर की उपासना से संबंधित मंत्र, यंत्र, ध्यान एवं उपासना आदि की सारी प्रक्रियायें श्रीविद्यार्णव, मंत्र महार्णव, मंत्र महोदधि, श्रीतत्त्व निधि तथा विष्णुधर्मोत्तरादि पुराणों में विस्तार से निर्दिष्ट हैं। इन ग्रंथों के अनुसार इनके अष्टाक्षर, षोडशाक्षर तथा पंचत्रिंशदक्ष-रात्मक छोटे-बड़े अनेक मंत्र प्राप्त होते हैं। मंत्रों के अलग-अलग ध्यान भी बताए…